tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post2543423399854607343..comments2024-03-28T13:01:33.068+05:30Comments on समय के साये में: चेतना श्रृंखला का समाहार और दर्शन का संश्लेषक कार्यAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-78308578060636492852011-09-12T16:56:43.920+05:302011-09-12T16:56:43.920+05:30पूरी श्रृंखला पढ़ गया। बार बार पढ़ने की चीज हैं और...पूरी श्रृंखला पढ़ गया। बार बार पढ़ने की चीज हैं और बार बार सोचने की जब तक चिंतन में एक नया द्वार नहीं खुल जाता। बहुत धन्यवाद इसके लिए। मैं यह तो नहीं कह सकता कि सब समझ गया पर कोशिश की और कई बार और बिना पढ़े काम नहीं चलने वाला।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-77566211643041029442010-05-02T13:39:25.227+05:302010-05-02T13:39:25.227+05:30हिन्दी में दर्शन पर इतना सब कुछ ! अति सुन्दर ; अति...हिन्दी में दर्शन पर इतना सब कुछ ! अति सुन्दर ; अति उपयोगी!अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-58544682103080803632010-05-01T23:17:36.206+05:302010-05-01T23:17:36.206+05:30सुंदर समाहार। इस श्रंखला की भाषा कुछ कठिन नहीं हो ...सुंदर समाहार। इस श्रंखला की भाषा कुछ कठिन नहीं हो गई। समय के हिसाब से। समय के हिसाब से इसे कुछ आसान नहीं किया जा सकता?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com