tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post2203537894028567859..comments2024-03-29T08:04:38.866+05:30Comments on समय के साये में: राष्ट्र की अवधारणाAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-26162927248601898682012-10-20T13:44:46.427+05:302012-10-20T13:44:46.427+05:30राष्ट्रवाद को संकीर्ण अर्थों में ना लेकर, इसे सभी ...राष्ट्रवाद को संकीर्ण अर्थों में ना लेकर, इसे सभी धार्मिक, क्षेत्रीय, भाषाई सवालों से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय चेतना के निर्माण, राजनीतिक तथा आर्थिक आत्मनिर्भरता पाने, सृजनात्मक शक्तियों का विकास करने, साझी संस्कृति का उत्थान करने की दिशा में लक्षित होना चाहिए। जो कि अंततः अंतर्राष्ट्रीयकृत साम्राज्यवाद के विरुद्ध लक्षित संघर्षों के अंतर्राष्ट्रीयकरण से हमसाया हो सके, और एक शोषण रहित अंतर्राष्ट्रीय मानव संस्कृति का निर्माण संभव हो सके। amen<br /><br /> Bhawna Kukretihttps://www.blogger.com/profile/01524665656092886448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-69002630963242903072012-10-13T23:52:36.490+05:302012-10-13T23:52:36.490+05:30सही है, लेकिन मुझे लगता है कि राष्ट्रवाद का जितना ...सही है, लेकिन मुझे लगता है कि राष्ट्रवाद का जितना सकारात्मक उपयोग हो सकता था हो चुका है। अब तो उस का दुरुपयोग ही हो रहा है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com