tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post2770952733311419304..comments2024-03-29T08:04:38.866+05:30Comments on समय के साये में: क्या कंप्यूटर सोच-विचार कर सकता है?Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-50463383443509856652011-08-18T21:45:20.111+05:302011-08-18T21:45:20.111+05:30एक फिल्म आई थी मैट्रिक्स जिसमें मशीनें धरती पर ही ...एक फिल्म आई थी मैट्रिक्स जिसमें मशीनें धरती पर ही आक्रमन कर बैठती हैं। और मानव को हराने का लक्ष्य ले लेती हैं। ऐसी ही सनक आई थी रोबोट-हिन्दी में। लेकिन यह एक परम सत्य है कि निकटतर ही नहीं शायद कभी भी निर्जीव में चेतना का संचार हो सके। कम्प्यूटर सोच सकता है बहुत हद तक लेकिन वह सब सीमित है। हमसे लाख गुना जल्दी और ज्यादा भी सोच या कर सकता है लेकिन यह सब खेल है, चेतना नहीं। <br /><br />कृत्रिम बुद्धिमत्ता में हमने पढ़ा था कि रोबोट ट्रक चला सकते हैं और एक नैवलब नाम का उदाहरण भी मौजूद है जो सामान्य भीड़ में रोबोट चला सकता है। लेकिन सबके बावजूद लकड़ी से बच्चा पैदा नहीं हो सकता। मनुष्य द्वारा प्रदत्त सीमित चेतना का इस्तेमाल ही रोबोट कर सकते हैं। <br /><br />कम्प्यूटर में सुख दुख नहीं जोड़ और सिर्फ़ जोड़ होता है, घटाव भी नहीं जैसा कि एक जन ने कहा है। भले हमें बताया जाता है कि जोड़-घटाव के चार रूप होते हैं लेकिन परिपथ और यांत्रिक कार्यों और प्रक्रियाओं में मात्र जोड़ के लिए ही परिपथ आदि हैं।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-78864767088328238902010-04-23T12:00:53.872+05:302010-04-23T12:00:53.872+05:30कंम्प्यूटरों का फैलाव मानव चिंतन के और अधिक विकास ...कंम्प्यूटरों का फैलाव मानव चिंतन के और अधिक विकास को बढ़ावा दे रहा है। एक सही और सामाजिक प्रतिबद्धता से सम्पन्न व्यवस्था में इसके सदुपयोग के द्वारा लोगों की शिक्षा और संस्कृति और उनकी रचनात्मक क्षमताओं के विकास में छलांगनुमा प्रगति ही होगी।......<br /><br />लेकिन ये बताईये की ..सच्चाई ,इमानदारी,दया ,समर्पण और त्याग जैसी जीवन की मूल भावनाओं में किस तरह छलांगनुमा प्रगति होगी।......निर्झर'नीरhttps://www.blogger.com/profile/16846440327325263080noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-84824380675506805242010-04-23T07:13:10.447+05:302010-04-23T07:13:10.447+05:30http://www.ted.com/talks/lang/eng/jill_bolte_taylo...http://www.ted.com/talks/lang/eng/jill_bolte_taylor_s_powerful_stroke_of_insight.html<br /> It may worthful to watch.Rakeshhttps://www.blogger.com/profile/14731136313596298868noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-9478347194076694812010-04-20T22:19:47.292+05:302010-04-20T22:19:47.292+05:30निशांत ने जो बात उठाई है उसमे सजीव और निर्जीव के ब...निशांत ने जो बात उठाई है उसमे सजीव और निर्जीव के बीच के भेद को उन्होने रेखांकित किया है । यह सही है कि सजीव और निर्जीव दोनो के अलग गुण है और दोनो मे इस तरह की तुलना नही हो सकती । कम्प्यूटर से कह ले या इस तकनीक के विकास से चिंतन को कोई खतरा नहीं है बल्कि चिंतन को जो खतरा है वह चिंतन से ही है और इस के सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव हम लगातार देख ही रहे है । कम्प्यूटर से यह खतरा अवश्य हो सकता है कि वह इस तरह के नकारात्मक चिंतन को कई गुना मल्टीप्लाय करके मानव जाति का विनाश कर सके लेकिन मनुष्य के पास वह क्षमता है कि वह इसमे से भी रास्ता निकाल लेगा । <br />छापेखाने से लेखन बन्द हो जायेगा यह तो खैर हस्यास्पद कल्पना थी । ओरहान पामुक ने अपने लेख "मैं क्यों लिखता हूँ " मे लिखने के जो कारण गिनाये है उनमे से एक यह भी है कि उन्हे लिखते समय फाउंटेन पेन की स्याही की गन्ध अच्छी लगती है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-38274826375204313362010-04-18T22:25:23.298+05:302010-04-18T22:25:23.298+05:30कृपया अगली पोस्ट में न्यूरल नेटवर्क के बारे में बत...कृपया अगली पोस्ट में न्यूरल नेटवर्क के बारे में बताएँ।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-73608488030662194062010-04-18T20:59:32.509+05:302010-04-18T20:59:32.509+05:30समय जी आपने अन्जाने मे ही बहुत दिनों से शिथल पडे ...समय जी आपने अन्जाने मे ही बहुत दिनों से शिथल पडे विचार को पुन: जाग्रत कर दिया है। शीघ्र ही इस चर्चा को आगे बढाऊगा। :-) श्रेष्ठ व सार्थक सवाद होगा :-)Swapnil Bhartiyahttp://swapnilbhartiya.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-14241413636616831522010-04-18T15:15:28.484+05:302010-04-18T15:15:28.484+05:30क्योंकि मित्र काफी कुछ कह गएँ हैं ..मेरे कहने के ...क्योंकि मित्र काफी कुछ कह गएँ हैं ..मेरे कहने के लिए कुछ भी शेष नही है. फिर भी कुछ तो कहूँगी ही - कम्प्यूटर का काम सिर्फ दी गई समस्या को उसकी मेमोरी में पहले से लोड निर्देश (किस परिस्थिति में क्या करना है )के आधार पर निर्णय लेना होता है.. अगर किसी कारन वश कोई ऐसी समस्या आती है जिसके लिए कोई निर्देश पहले से नही दिया गया है उस परिस्थिति में या तो वह काम करना बंद करेगा या फिर जैसी उसकी प्रोग्रामिंग की गई होगी उस आधार पर रिस्पोंड करेगा..यानि की जैव जगत की मूल विशेषता अधिगम का उसमे आभाव होता है... और जब आधार अनुपस्थित हो तब तार्किकता किस प्रकार उपस्थित होगी ?<br /><br />सीधी सी बात है ऐसा सोंचना हास्यापद है की कम्प्यूटर में चेतना डाली जा सकती है.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-10765176688283984112010-04-18T13:18:51.671+05:302010-04-18T13:18:51.671+05:30निशांत जी,
आपने बेहतर कहा है और गंभीर चिंतन के साथ...निशांत जी,<br />आपने बेहतर कहा है और गंभीर चिंतन के साथ खड़े हैं। शुक्रिया।<br /><br />चेतना की दार्शनिक संकल्पना और उसे सजीवों के सम्दर्भ में समझने के लिए आपकी मेधा शायद इन पोस्टों से कुछ इशारे पा सके।<br /><br />चेतना की संकल्पना और विवेचना: http://main-samay-hoon.blogspot.com/2009/08/blog-post.html<br /><br />जैव जगत में संक्रमण के दौरान परावर्तन: http://main-samay-hoon.blogspot.com/2009/11/blog-post_29.html<br /><br />सक्रिय और निष्क्रिय परावर्तन: http://main-samay-hoon.blogspot.com/2009/12/blog-post_19.html<br /><br />मन, चिंतन और चेतना : http://main-samay-hoon.blogspot.com/2010/01/blog-post.html<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-59037645857438843262010-04-18T12:08:32.940+05:302010-04-18T12:08:32.940+05:30यदि आप विज्ञापनों में दिखनेवाले चलत-चपल रोबोट्स की...यदि आप विज्ञापनों में दिखनेवाले चलत-चपल रोबोट्स की बातें भूल जाएँ तो वास्तव में रोबोट्स एक धागे में सुई भी नहीं डाल सकते. मुझे तब हंसी आती है जब मैं बीस साल से यह अफवाह सुन रहा हूँ कि जापान में एक रोबोट ने अपने मालिक का आदेश पालन करते हुए उसका गला दबाकर उसे मार डाला.<br />कम्प्युटर हों या कैलकुलेटर, ये केवल गणितीय सिद्धांतों पर चलते हैं. अधिक गहराई में जाने की ज़रुरत नहीं है, ये केवल जोड़-घटान जैसे कार्यों के लिए बने हैं. तार्किकता की उपस्तिथि या अनुपस्तिथि पर. बस. 1+1=2, 1-1=0, ये बस इतना ही जानते हैं.<br />बहुत लम्बे समय से वैज्ञानिक मशीनों को मानव मष्तिष्क और तंत्रिकाओं से जोड़कर इस जुगत में लगे हैं कि उनमें तालमेल हो जाये. साईनैप्टिक क्लेफ्ट में सूचना (या चेतना) का प्रवाह इलेक्ट्रोंस के माध्यम से ही होता है. मशीनों में वैसा प्रवाह होता है लेकिन गणितीय स्तर पर. इसमें बहुत लम्बा समय लगेगा.<br />अब मैं आपके प्रश्न के मूल की ओर आता हूँ. कृत्रिम बुद्धि और रचनात्मकता की बात छोड़ दें तो बड़ा प्रश्न उठता है चेतना के मौलिक अस्तित्व का, जो सजीव प्राणियों में मुखर होती है. एक अमीबा भी स्वयं को ताप, दाब, प्रीडेटर आदि से बचने की क्षमता रखता है जबकि उसे केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है. यह चेतना उसमें कैसे आती है? आहार-भय-निद्रा-मैथुन-और धर्म (केवल मनुष्यों में) सजीव प्राणियों के गुण हैं. पौधों में भी इनकी उपस्तिथि के संकेत मिलते हैं.<br />बाईसेंटेनियल मैन फिल्म में रॉबिन विलियम्स रोबोट है जो केवल इसलिए मनुष्य बनना चाहता है क्योंकि उसे पूर्णता प्राप्त करनी है. लेकिन मनुष्य होने की कीमत उसे मृत्यु से चुकानी पड़ती है. रोबोट्स अमर होंगे जब तक उनकी ऊर्जा का स्रोत चुक न जाये. उनकी चेतना(?) बैटरी तक सीमित है. और मनुष्य की?<br />चेतना ही चिंतन के मूल में है. मशीनों के सन्दर्भ में आप शायद अगली पोस्ट में उसकी चर्चा करें. वर्तमान पोस्ट एक पौपुलर प्रश्न पर केन्द्रित लग रही है.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-85060661641944054372010-04-18T05:27:50.436+05:302010-04-18T05:27:50.436+05:30अच्छा आलेख !अच्छा आलेख !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-91232999402478359342010-04-17T23:22:57.328+05:302010-04-17T23:22:57.328+05:30acha
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot...acha<br /><br /><br />shekhar kumawat <br /><br />http://kavyawani.blogspot.com/Shekhar Kumawathttps://www.blogger.com/profile/13064575601344868349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-9647642538115473742010-04-17T22:04:36.435+05:302010-04-17T22:04:36.435+05:30अविनाश जी,
विश्वासों की दुनियां में जहां कि किसी भ...अविनाश जी,<br />विश्वासों की दुनियां में जहां कि किसी भी चीज़ पर विश्वास किया जा सकता है, चमत्कारिक शक्तियों का अवतरण और आदान-प्रदान तो मामूली ची़ज़ है।<br /><br />यहां बात का सिरा ही छूट जाता है। आपका विश्वास वंदनीय है।<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-44579113200667535272010-04-17T21:53:26.562+05:302010-04-17T21:53:26.562+05:30जब इंसान ही कंप्यूटर बना रहा है तो उसे वैचारिक शक...जब इंसान ही कंप्यूटर बना रहा है तो उसे वैचारिक शक्ति भी प्रदान कर ही देगा एक दिन। मुझे तो पूरा विश्वास है।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.com