tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post391787931865507985..comments2024-03-29T14:39:00.237+05:30Comments on समय के साये में: टिप्पणियों के अंशों से दिमाग़ को कुछ खुराक - ३Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-55844794423911751002011-08-03T00:40:29.275+05:302011-08-03T00:40:29.275+05:30साईं ब्लाग वाले लेख में कुछ खास नहीं लगा और साफ कह...साईं ब्लाग वाले लेख में कुछ खास नहीं लगा और साफ कहें तो विषय ही पसन्द नहीं आया।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-46405535345922737512011-08-03T00:38:50.872+05:302011-08-03T00:38:50.872+05:30आदरणीय समय,
बहुत कुछ देखा, सुना, जाना इस बार। कुछ...आदरणीय समय,<br /><br />बहुत कुछ देखा, सुना, जाना इस बार। कुछ कहने की इच्छा है।<br /><br />शुरु करते हैं राम सेतु से। यह सेतु अनावश्यक विषय है। धर्मग्रंथों के अनुसार या बाल्मीकि रामायण के अनुसार भी यह पुल सही नहीं ठहर सकता। उसमें इसकी लम्बाई 30 नहीं हजारों किमी बताई गई है। यह व्यर्थ का तमाशा कई साइटों और ब्लागों पर दिखा। कुछ लोग विज्ञान का आड़ लेकर अपनी बात को जबरदस्ती साबित करना चाहते हैं।<br /><br />दूसरी बात संचिका के कई लिंक नहीं खुले।<br /><br />तीसरी बात ज्योतिष की। वह एक अटकलबाजी है और इसके प्रसिद्ध होने का मात्र एक कारण है। जब भविष्यवाणी सही होती है तब दस लोग इसे विज्ञापन करने के कारण जानते हैं लेकिन गलत होने पर कोई नहीं कहता और एक भी नहीं जानता कि गलत थी और इसी कारण अधिक प्रसार है इसका। भविष्य जानने की कल्पना भी सुखद और रोमांचक है। जैसे पुनर्जन्म की कल्पना कई बार सुखद लगती है लेकिन काश ये सब होता! अफ़सोस कि ये सब बस अज्ञानता और आदमी की कमजोरी के प्रतीक हैं।<br /><br />एक बात कहूंगा शब्दों के बारे में। आपके लेखों को लगातार पढ़ने के क्रम में कई जगह शब्दों को लेकर कुछ कहा गया है। मेरा निवेदन होगा कि आप अपने इस्तेमाल किए जाने वालों शब्दों का एक कोश उपलब्ध करा दें तो बेहतर हो क्योंकि मनोविज्ञान के शब्द सामान्य शब्दकोश से वह अर्थ देने में अधिक समर्थ नहीं हैं। इसलिए या तो आप पीडीएफ़ में उपलब्ध करा दें या लिंक दे दें जहाँ इनके सही और आपके अभिप्राय स्पष्ट करने वाले अर्थ समझे जा सकें।<br /><br />आइंस्टाइन की बात जब ज्योतिषी करेगा तब गड़बड़ तो होगी ही। अब भौतिकी के उच्च सिद्धान्तों का भी बकवास अर्थ लगा लिया जाना वैसे ही है जैसे कुरुक्षेत्र में लाल जमीन देखकर कहा जाता है कि यहाँ युद्ध हुआ था और रक्त के कारण लाल जमीन है। तब जहाँ काली जमीन है वहाँ क्या हुआ है? या पीली जमीन है वहाँ क्या हुआ है? आइंस्टाइन सिद्धान्तों का प्रतिपादक है और उससे गहरा अर्थ अलौकिकता में विश्वास करने वाले लोग लगा लेते हैं। उसने कहीं इसे मानव के भविष्य से, जैसा कि ज्योतिष करने का बहाना करता है, जुड़ा हुआ नहीं कहा था। हाँ टाइम मशीन जैसी बातें स्टीफ़न हॉकिंग के समय का संक्षिप्त इतिहास में आई हैं। पढ़ने को मिला था वह ग्रंथ। उसे पढ़कर शायद आप यकीन न करें, मुझे बुखार आ गया था। रात को दिमाग में या सपने में बस तारे-ग्रह घूमते थे।<br /><br />इसलिए बिना सिद्धान्तों को जाने उनका अनुचित और अतार्किक इस्तेमाल न किया जाय।<br /><br />अच्छा तो यहीं से इतिहास की बात कही थी आपने!चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-66093262373486823822009-10-26T21:47:55.215+05:302009-10-26T21:47:55.215+05:30गिरिजेश जी,
इतिहास के इस मामले में, आपकी मानसिक उ...गिरिजेश जी,<br /><br />इतिहास के इस मामले में, आपकी मानसिक उलझन को थोड़ा-बहुत महसूस कर पा रहा हूं।<br />दरअसल इतिहास के लेखन और व्याख्याओं की कई धाराओं की समांतर उपस्थिति, अध्येता पाठक की चेतना से कई तरीको से टकराती है।<br /><br />एक ओर ब्रिटिश प्रशासकों और विद्वानों का आधिकारिक लेखन है, जिनके योगदान की महत्तवपूर्णता को स्वीकार करते हुए भी, ब्रिटिश साम्राज्य की हितानुकूलता और पूर्वाधारों की ठोस कमी के कारण पैदा हुई संकीर्णता को आसानी से देखा जा सकता है। इन्हीं का अनुसरण करते हुए कुछ भारतीय लोगों ने भी इसी तरह सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य से कटे हुए राजनैतिक इतिहास की गहराइयों में खूब ड़ुबकी लगाई।<br /><br />भारतीय इतिहास लेखन की एक सशक्त प्रवृति सांप्रदायिक परंपरा के साथ विकसित हुई। इस प्रवृति के तहत इतिहास की अपने-अपने हितानुकूल सांप्रदायिक व्याख्याएं की गई और खासकर बारहवीं सदी के बाद के इतिहास को तो हिंदू-मुस्लिम संघंर्षों की कहानी में तब्दील कर दिया गया। अपने-अपने नायकों को महामंडि़त किया और विरोधियों पर प्रहार किये गये।<br /><br />इसी के साथ-साथ एक अंध-राष्ट्रवादी प्रवृत्ति भी रही जिसका कि मूल उद्देश्य भारत को विश्व की आर्य सभ्यता के केन्द्र बिंदु के रूप प्रस्तुत करना रहा है। भारत को आर्यों का मूल उद्गम और भारतीय सभ्यता को प्राचीनतम ठहराने का उपक्रम बखूबी किया गया।<br /><br />यहां इतिहास को द्वंदात्मक विधियों और वस्तुगत इतिहास दृष्टियों के साथ देखने का कार्य बहुत बाद में शुरू हुआ। इस धारा में पुराने इतिहास लेखन की आलोचना के साथ-साथ उसकी यथार्थवादी व्याख्याओं के कई संधान हुए हैं। इनमें रजनी पाम दत्त, दामोदर धर्मानंद कोसांबी, आर.एस.शर्मा, देवीप्रसाद चट्टोपध्याय, मो.हबीब, इरफ़ान हबीब आदि-आदि कई मूर्धन्य इतिहासकार शामिल हैं। समय को इनकी व्याख्याएं और दृष्टिकोण अधिक तार्किक और वस्तुगत लगता है।<br /><br />अब होता यह है कि इतिहास के सामान्य अध्येता पाठक की पहुंच जिस तरह के लेखन तक हो पाती है, उसकी वैसी ही प्राथमिक मान्यताएं और धारणाएं आकार लेने लगती हैं। चूंकि यह क्षेत्र सामान्यतयः आम मनुष्य के लिए नया रहता है, साथ ही उसके पास परिवेशगत और परंपरागत प्राप्त एक सामान्य दृष्टिकोण इनके आधार में पहले से ही रहता है, अतः वह इनसे गहराई से प्रभावित होता है और इन्हें ही वस्तुगत सत्य समझने लगता है।<br /><br />हमको अपनी मान्यताएं उपरोक्त सभी तरह के लेखन और व्याख्याओं के अध्ययन के पश्चात ही बनानी चाहिएं। अतीत का वस्तुगत विष्लेषण, वर्तमान के साथ उसकी संबद्धता, और इसके जरिए प्राप्त नियमसंगतियों के सही और यथार्थ आधार पर ही एक मानवोचित भविष्य की नींव रखी जा सकती है।<br /><br />समय यही प्रयास कर रहा है, और चूंकि आप भी एक गंभीर अध्येता हैं, आपसे भी ऐसे ही गंभीर और विस्तृत अध्ययन की आशा रखता है।<br /><br />यहां समग्रता में इतिहास के विस्तार में जाना संभव नहीं है। फिर भी अद्यानूतन पूर्वाधारों और अध्ययन विधियों के साथ प्रमाणों के वस्तुगत विश्लेषण से साबित कर दी गई कुछ मान्यताएं ही समय ने यहां प्रस्तुत करने की हिमाकत की थी। आप चाहें तो इनके आधार भी यहां प्रस्तुत किए जा सकते हैं, परंतु आप द्वारा संदर्भित सूचनाओं की प्राप्ति से पहले यह समीचीन नहीं होगा।<br /><br />नयी खोजें और प्राप्त जानकारी के नवीन विश्लेषण ऐतिहासिक लेखन को और समृद्ध करते हैं और मानवजाति की समझ और ज्ञान को और आगे बढ़ाते हैं इसलिए अपनी ऊपर कही गई बात का अनुसरण करते हुए समय भी अंतर्जाल पर आप द्वारा दी गई सूचनाओ को ढूंढ़ कर उनसे गुजरने की मंशा रखता है, ताकि उनकी उपादेयता पर तुलनात्मक चिंतन किया जा सके।<br /><br />आपको पता चले तो बताएं, और आप भी उपरोक्त नामों द्वारा लिखी गई इतिहास की पुस्तकों को खंगालें। सार्विक दृष्टिकोण के विकास के लिए अच्छा रहता है।<br /><br />संवाद के लिए शुक्रिया।<br /><br />समयAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-84222239124352068562009-10-25T13:13:27.116+05:302009-10-25T13:13:27.116+05:30गिरिजेश जी कहना क्या चाह रहें हैं, मैं समझ नही पा ...गिरिजेश जी कहना क्या चाह रहें हैं, मैं समझ नही पा रही ..न ही उनकी टिप्पणी से आपकी (समय ) टिप्पणी के मर्म को रिलेट कर पा रही हूँ ...अगर आप समझ गए हों तब मुझे कृपया मेल करके समझा दें समय ..नहीं तो आलसी भाई से अनुरोध है, जरा स्पस्ट लिखे वे कहना क्या चाह रहे हैं और उसका समय की आस्था और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली टिप्पणी से क्या सम्बन्ध है.<br /><br />कोई तो मुझ अल्पज्ञानी की मदद करे.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-25117185528987137602009-10-25T08:50:38.722+05:302009-10-25T08:50:38.722+05:30@ आपका कवि अधिक सजग है।
मतलब कि दुसरका पर लापरवाह...@ आपका कवि अधिक सजग है।<br /><br />मतलब कि दुसरका पर लापरवाही से ब्लॉगिग करते हैं। ये कैसी तोहमत लगा रहे हैं? हम तो समझते थे कि आलसी आलस के कारण अधिक सजग रहता है।<br />__________________________________<br /><br />आपत्ति नहीं, ये मान्यताएँ ही गलत साबित हो चुकी हैं:<br />- भारतीय सन्दर्भ में आर्य जैसी किसी विशिष्ट मानव प्रजाति का होना या बाहर से भारत आना।<br />- आर्य और द्रविड़ जैसे विभेद<br />- सिन्धु सभ्यता के पहले यहाँ किसी उन्नत सभ्यता का न होना। <br /><br />बहुत पहले नेट पर ही एक शोधपरक पी डी एफ डॉकुमेंट मिला था तमाम लिंकों के साथ। एक अलग ही दुनिया उद्घाटित थी। पोर्टेबल हार्ड डिस्क में सेव किया था। खराब हो गई। डाटा रिकवर करने पर भी वह फाइल खुल नहीं पाई। आप को कोई लिंक बता नहीं पाऊँगा, यही दु:ख है लेकिन लब्बो लुआब वही था जो उपर लिखा है। मुझे उम्मीद है कि आप ढूढ़ निकालेंगे। .... न भी पाए तो क्या हुआ, एक अलग दृष्टि पर सोचा कि आप को बता दूँ।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-9496145210815498572009-10-24T23:38:40.851+05:302009-10-24T23:38:40.851+05:30ब्लॉगिंग में इस तरह का गंभीर ग्यान एक अलग शुरुआत ह...ब्लॉगिंग में इस तरह का गंभीर ग्यान एक अलग शुरुआत है ।<br /><br />आर्यों और सिन्धु सभ्यता विषयक आपकी मान्यताओं से मेरी सहमति है।<br /><br />बहुत पहुंचे हुए लोग लोग आत्मा और पुनर्जन्म का समर्थन कर गये हैं । कम से कम भारत के सभी धर्म पुनर्जम को स्वीकाए करते हैं ।<br /><br />लेकिन जब अपने को पता नहीं चलता तो हवा में लट्ठ क्यों भांजे ।<br /><br />धर्मों की सारी नैतिकता ही स्वर्ग-नर्क या पुनर्जन्म पर टिकी हुई है ।अर्कजेशhttp://arkjesh.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-34170919929168948432009-10-23T20:48:29.527+05:302009-10-23T20:48:29.527+05:30समय आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ। जिस क्षेत्र मे क...समय आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ। जिस क्षेत्र मे कार्य कर रहा हूँ वहाँ तो चुनौतिया और भी दुरूह हैं -- माइक्रोसाफ़्ट के क्रूर जाल से लोगो को निकालना। यहाँ तो कार्पोरेट भी है और सुविधा भी। लक्ष्य बहुत दूर है, पर एक एक ईट जोडी जा रही है। समय लगेगा। ब्लागिग का संसार थोडा अलग है, लेकिन जैसे मैने पहले कहा, सत्य की उपस्तिथि आवश्यक है... एक् दीपक भले ही रात को दिन ना बना दे लेकिन रात्रि मे भी रोशनी का वजूद तो देता ही है -- सबेरा तो हो कर ही रहेगा।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12767868578201017200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-75298443592632372732009-10-23T19:47:57.281+05:302009-10-23T19:47:57.281+05:30@ गिरिजेश राव
भाई गिरिजेश जी,
आपकी आपत्ति वाले ह...@ गिरिजेश राव<br /><br />भाई गिरिजेश जी,<br /><br />आपकी आपत्ति वाले हिस्से का खुलासा करें।<br />अपनी समझ को अद्यतन करने का महती कार्य तो हमारे सामने है ही।<br /><br />आपके खुलासे से समय की जुंबिश सटीक हो पाएगी।<br /><br />वरना अंतर्जाल का महा-माया-जाल तो उलझाकर ही रख देगा। यहां सही और सटीक को प्राप्त कर पाना अपने आप में एक दुरूह और लंबा कार्य है।<br /><br />आपकी कविताओं से गुजरना हुआ था। प्रभावित करती हैं। आपका कवि अधिक सजग है।<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-70376091450634737252009-10-23T19:43:34.132+05:302009-10-23T19:43:34.132+05:30@ स्वप्निल
भाई स्वप्निल,
विचारधाराओं के पीछे मनु...@ स्वप्निल<br /><br />भाई स्वप्निल,<br /><br />विचारधाराओं के पीछे मनुष्य की अपनी पूरी उम्र का अनुकूलन होता है। व्यवस्था के हितानुकूल विचारधाराएं सहज रूप से ही जीवन का अंग बन जाती है, परंपराएं इनके साथ घुलमिलकर प्रभाव जमाती हैं, साथ ही जिजीविषा की व्यवस्थागत समझौतापरस्ती इन्हें और पुख़्ता करती जाती है।<br /><br />अब दो मिनट की जुंबिश में किसी की इतनी लंबी अनुकूलनता को बदल ड़ालने का इच्छित स्वप्नजीविता ही है। वैज्ञानिक नहीं वरन् प्रत्ययवादी (Idealistic)दृष्टिकोण जैसा ही है।<br /><br />वास्तविक भौतिक परिस्थितियां मनुष्य के विचार और विचारधाराओं को पैदा करती हैं। अतएव इनमें सुधार या बदलाव भी उसकी इन्हीं वास्तविक भौतिक परिस्थितियों में बदलाव के ऊपर ही निर्भर करता है। वैचारिक विमर्शों से चित्त में होने वाली हलचल और तत्कालीन निष्कर्ष भी मन की गहराइयों में पैठी वास्तविक अनुभवों की कठोर चट्टानों से टकराकर ही पुख़्ता हो पाते हैं।<br /><br />जैसे अभी जो समय ने ऊपर लिखा है, उसे पढ़कर आप ऐसी ही प्रक्रिया से गुजरेंगे। अगर बात मान्यताओं के बिल्कुल ख़िलाफ़ लगेगी तो मानसिक प्रतिक्रिया नकारात्मक, तर्क और अनुकूल अनुभवों की भूल-भुलैया में भटकेगी और इस मानसिक आक्रमण के प्रतिरोध के रास्ते तलाशेगी।<br /><br />थोड़ा ठीक-ठीक, तार्किक और वाज़िब सी लगेगी तब भी मनुष्य का मानस इसे अपनाने को सहज ही तैयार नहीं होगा, इसके अनुरूप ज़मीन बनने में समय लगता है।<br /><br />और यदि बात बिल्कुल ही विरोधी हो तो आप कल्पना कर सकते हैं कि मनुष्य कैसी-कैसी मानसिक अवस्थाओं और संघर्षों से गुजरने की अवस्थाओं में आ सकता है। और यदि उसका मानसिक धरातल ज्यादा परिपक्व नहीं हुआ साथ ही उसके पास समुचित तर्क या ज्ञान नहीं हुआ तो फिर आप उसकी भावी प्रतिक्रिया का भी अंदाज़ा लगा सकते हैं।<br /><br />ऐसे में आपको परिणामों की ज़्यादा फ़िक्र और जुंबिशों की दृढ़्ता के प्रति ज़्यादा संवेदनशील नहीं होना चाहिए। यह एक लंबी प्रक्रिया है, सिर्फ़ इसी में लगे रहें, और अपने आपको साधते रहें। यह भी काफ़ी महत्वपूर्ण है।<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-56526415151925842692009-10-22T22:45:54.417+05:302009-10-22T22:45:54.417+05:30@ लवली: ओम् शाति: शांति: शाति:
:-)@ लवली: ओम् शाति: शांति: शाति:<br /><br />:-)Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12767868578201017200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-9281610423199742862009-10-22T22:43:23.998+05:302009-10-22T22:43:23.998+05:30@स्वप्निल इतने गुस्से में न आइये मित्र शंति शांति ...@स्वप्निल इतने गुस्से में न आइये मित्र शंति शांति :-)L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-36702984628042227752009-10-22T21:41:18.466+05:302009-10-22T21:41:18.466+05:30वैदिक सभ्यता, सरस्वती और आधुनिक जेनेटिक मैपिंग पर ...वैदिक सभ्यता, सरस्वती और आधुनिक जेनेटिक मैपिंग पर अपने को अद्यतन कर लें। हमलावर अंग्रेजों और वैसी ही यूरोपीय श्रेष्ठता जैसी मानसिकता द्वारा स्थापित बहुत सी स्थापनाएँ ध्वस्त हो चुकी हैं।<br /><br />आप को लिंक देने की गुस्ताखी नहीं कर सकता। आप अद्भुत और निष्ठावान अध्येता हैं, स्वयं ढूढ़ लें। नेट पर अफरात सामग्री उपलब्ध है और देने वाले सभी दक्षिणपंथी या प्रतिक्रियावादी भी नही हैं।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-32740222289439887182009-10-22T20:03:22.269+05:302009-10-22T20:03:22.269+05:30समय से परिचय करवाने के लिये उस मित्र का आभार। समय ...समय से परिचय करवाने के लिये उस मित्र का आभार। समय जी, शायद मै गलत हू पर मेरा अनुभव, जो कि अधिक नही है, कहता है इस तरह की चर्चाये लोगो की विचारधारा नही बदल सकती। वे जो है, वही रहेंगे। पर इस तरह के प्रयास आवश्यक हैं जिससे यह अहसास बना रहे कि कुछ भी गलत विज्ञान की थाली मे परोस कर नही बांटा जा सकता।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12767868578201017200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-5818650336083604732009-10-22T19:53:20.501+05:302009-10-22T19:53:20.501+05:30पुनर्पाठ की सुविधा हेतु आभार !पुनर्पाठ की सुविधा हेतु आभार !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com