tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post4430174788259463893..comments2024-03-28T13:01:33.068+05:30Comments on समय के साये में: योग्यताओं की नियतिनिर्दिष्ट अवधारणा की आधारहीनताAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-69786509178652641332012-04-14T20:20:39.065+05:302012-04-14T20:20:39.065+05:30मेरी टिप्पणी गायब हो गई! स्पैम में हो शायद।मेरी टिप्पणी गायब हो गई! स्पैम में हो शायद।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-75173116047939855632012-04-14T20:17:08.690+05:302012-04-14T20:17:08.690+05:30मानव-योग्यताओं के जन्मजात स्वरूप के विचार ने प्लेट...मानव-योग्यताओं के जन्मजात स्वरूप के विचार ने प्लेटो के समय में ही जन्म ले लिया था... ... ... <br /><br />अफ़लातून सहित अरस्तू से लेकर मध्यकाल तक और आधुनिक काल में भी बीसवीं शताब्दी तक जन्मजात योग्यता यानी प्रत्ययवादी धारणा विद्यमान रही है... आज भी जनसाधारण में धर्म के प्रभाव और भाववाद के कारण यही माना जाता है, शायद 95 % से अधिक लोग यही मानते हैं कि जन्मजात होती हैं योग्यताएँ... <br /><br />युंग ने संस्कार के बारे में कह कर एकदम भारतीय धार्मिक परंपरा सा बयान दे दिया... क्या युंग का संस्कार यही प्रत्ययवाद कहा जा सकता है कि मनुष्य में बहुत कुछ योग्यताएँ आदि जन्म के साथ ही होती हैं... जहाँ युंग सामाजिक अचेतन की बात करते हैं, वहाँ क्या प्रत्यययवाद ही है ? हमें ऐसा लगता है। ... बाकी आप बतायेंगे ही... <br /><br /><br />सरल-सहज लेख! ... ...चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.com