tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post6536103392572331094..comments2024-03-29T14:39:00.237+05:30Comments on समय के साये में: मानसिक कार्यकलाप के भौतिक अंगरूप में, मस्तिष्कAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-86043270496756206822011-09-21T20:09:01.862+05:302011-09-21T20:09:01.862+05:30@ चंदन जी,
किसी बाह्य उद्दीपन से संबंधित नियमित प...@ चंदन जी,<br /><br />किसी बाह्य उद्दीपन से संबंधित नियमित प्रतिक्रिया को प्रतिवर्त कहते हैं। अननुकूलित यानि जिसका अनुकूलन नहीं किया गया है, यानि प्रतिक्रियाओं, व्यवहार के ऐसे स्वरूप जो विरासत में मिलते हैं, सहजवृत्तियां आदि। अनुकूलित यानि जिनका बाद में अनुकूलन हुआ है या किया गया है, यानि प्रतिक्रियाओं, व्यवहार के ऐसे स्वरूप जो बाद में, अनुभवों के प्रभाव स्वरूप विकसित होते हैं।<br /><br />इसे आप थोड़ा विस्तार से समझना चाहते हैं, तो यहां साइड़ बार में ऊपर की ओर दिए हुए लिंकों में मनोविज्ञान के भाग एक का अंतिम हिस्सा और भाग तीन को पढ़ना और समझना चाहिए। वहां आपको अधिक इशारे मिल सकते हैं।<br /><br />फिलहाल के विषय से बाहर की जिज्ञासा को अभी छोड़ ही दिया जाए तो ठीक रहेगा। यह तो कहा ही जा सकता है कि चीज़ों को समझने के लिए उनकी ऐतिहासिकता को ध्यान में रखा जाना अत्यावश्यक होता है। यानि उनके कालखण्ड़ और उस काल की सामान्य अभिलाक्षणिकताओं के साथ ही उनका विश्लेषण और संश्लेषण किया जाना चाहिए।<br /><br />अब आप खु़द इसे समझने की कोशिश कर सकते हैं कि होम्योपैथी पद्धति का काल क्या था, उस वक़्त मनुष्य के ज्ञान और समझ की अवस्थाएं क्या थीं, विज्ञान के विकास का आलम क्या था। यानि कि किसी काल खण्ड़ की उपलब्धियों में उतनी ही वैज्ञानिकता हो सकती है जितना कि उस वक़्त के विज्ञान का स्तर था। लगता है यह इशारा काफ़ी है।<br /><br />जहां तक उन उपलब्धियों से समस्याओं के निस्तारण की बात है, तो जिन सामान्य समस्याओं का बखूबी निस्तारण उनसे उस कालखण्ड़ में किया जा सकता था, यदि उस जैसी ही सामान्य समस्याएं आधुनिक कालखण्ड़ में भी हैं तो उनका निस्तारण अभी भी उन्हीं के ज़रिए भी किया ही जा सकता है। व्यावहारिक प्रभाव और संतुष्टि का स्तर उनकी आगे की उपयोगिता या प्रांसगिकता को तय कर ही देगा। कहने या मानने के लिए भले ही कुछ भी हो, परंतु वास्तविक दैनंदिनी जीवन-व्यवहार में तो निश्चित ही इसका असर दिखेगा।<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-45026817654126392772011-09-14T01:15:43.698+05:302011-09-14T01:15:43.698+05:30आदरणीय समय जी,
अफ़सोस कि फिर समस्या हुई लेकिन खुश...आदरणीय समय जी,<br /><br />अफ़सोस कि फिर समस्या हुई लेकिन खुशी कि आप कुछ कहेंगे और कुछ बातें जानने-समझने को मिलेंगी। आपके उत्तर के पहले और दूसरे अनुच्छेद के साथ तीसते अनुच्छेद के शुरू के दो वाक्य तक तो समझ आता रहा लेकिन उदाहरण आते ही फिर मुझे अनुकूलित प्रतिवर्त ने परेशान किया।<br /><br />'प्रकृति में इस प्रकार के अनुकूलित प्रतिवर्त जानवर को पर्यावरण की तेजी से बदलती हुई दशाओं के प्रति अपने को अनुकूलित करने में मदद देते हैं।'---यह वाक्य भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा। अननुकूलित प्रतिवर्त तक मामला ठीक रहता है। अनुलूलित प्रतिवर्त आते ही समझ नहीं आ रहा। एक जिज्ञासा है, लेकिन विषय से बाहर। होमियोपैथी को अवैज्ञानिक और झूठा कहा जाता है। इसका सत्य क्या है?…प्रतीक्षारत आपके दिशा-निर्देश के लिए।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-41157714249564069312011-09-13T20:12:09.968+05:302011-09-13T20:12:09.968+05:30@ चंदन जी,
यहीं से पुनः इनकी परिभाषाओं या व्याख्य...@ चंदन जी,<br /><br />यहीं से पुनः इनकी परिभाषाओं या व्याख्या को रख देते हैं। इसमें कोई समस्या हो तो बताएं।<br /><br />"जानवरों के व्यवहार के अनेक रूप, क्रमविकास के लाखों वर्षों के दौरान विकसित होते हैं और आनुवंशिकता द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचारित होते हैं। व्यवहार के इन अंतर्जात ( inborn, inbred ) रूपों को सहजवृत्ति कहते हैं और वे अत्यंत जटिल हो सकती हैं।"<br /><br />"जब बाहरी वस्तुएं संवेद अंगों के तंत्रिकीय अंतांगों ( nerve endings ) पर क्रिया करती हैं, तो तंत्रिका प्रणाली के जरिए नियंत्रित जैव-विद्युत आवेग ( संकेत ) मस्तिष्क को प्रेषित किये जाते हैं। वे कई जटिल भौतिक-रासायनिक परिवर्तनों को उभारते हैं, जिनके दौरान प्राप्त संकेत परिवर्तित होता है और अंगी की जवाबी प्रतिक्रिया को जन्म देता है। इस संकेत के आधार पर मस्तिष्क तदनुरूप आंतरिक अंग या चलन-अंगों को एक जवाबी आवेग ( reflex ) प्रेषित करता है, जिससे सर्वाधिक सोद्देश्य क्रिया संपन्न होती है। जब एक जानवर भोजन को देखता है तो उसकी लार टपकने लगती है, जब आदमी किसी बहुत गर्म वस्तु को छूता है तो वह अपने हाथ को तुरंत पीछे हटा लेता है। इस प्रक्रिया को अननुकूलित प्रतिवर्त ( unconditioned reflex ) या सहजवृत्ति ( instinct ) कहते हैं।"<br /><br />"जो संकेत अननुकूलित प्रतिवर्त उत्पन्न करते हैं, वे अंगी के समस्त क्रियाकलाप के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय और प्रक्रियाएं है। अनुकूलित प्रतिवर्त ( conditioned reflex ), अननुकूलित प्रतिवर्तों से बनते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक कुत्ते को खिलाने से पहले हमेशा घंटी बजायी जाए, तो समय बीतने पर उसका शरीर खाना न दिये जाने पर भी केवल घंटी बजाने पर ही लार टपकाने लगेगा। प्रकृति में इस प्रकार के अनुकूलित प्रतिवर्त जानवर को पर्यावरण की तेजी से बदलती हुई दशाओं के प्रति अपने को अनुकूलित करने में मदद देते हैं। उपरोक्त उदाहरण में घंटी भोजन का एक ‘स्थानापन्न’ ( substitute ) बन गयी तथा एक महत्वपूर्ण कार्य का एक अनुकूलित संकेत थी।"<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-16975931499303029442011-09-12T10:27:06.539+05:302011-09-12T10:27:06.539+05:30अननुकूलित और अनुकूलित प्रतिवर्त, प्रतिवर्त, सहजवृत...अननुकूलित और अनुकूलित प्रतिवर्त, प्रतिवर्त, सहजवृत्ति आदि समझने में कुछ कठिनाई हुई। क्या अयह अच्छा न होता कि आप वाक्यों के साथ हर जगह उदाहरण दे देते तो कक्षा का आनन्द आता और आसानी से समझ में भी। वैसे इन शब्दों के अर्थ जानने के लिए कोई शब्दकोश सुझा देते तो आसानी होती। इस बार थोड़ी क्लिष्टता लगी लेकिन शब्दों से कभी परेशानी नहीं हुई, जैसा कि पहले भी कहता आया हूँ। हालांकि कई शब्द मेरे लिए नये हैं और समझ में नहीं आते, फिर भी कोशिश करता हूँ। ऐसा कोई आनलाइन शब्दकोश भी नहीं मिल पा रहा जहाँ यह सब स्पष्ट हो। मनोविज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली प्रकाशित तो है लेकिन उपलब्ध नहीं हो पाई है अभी तक। …इस बार शुरू में कहे विषयों पर थोड़ा विस्तार देने की कृपा करें।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-70324658599361273232010-01-26T10:40:09.175+05:302010-01-26T10:40:09.175+05:30समय जी का आलेख एवं तदुपरांत उसकी विवेचना दोनो ही अ...समय जी का आलेख एवं तदुपरांत उसकी विवेचना दोनो ही अत्यंत ज्ञानवर्धक है । मनोविज्ञान के विषय कभी पुराने नहीं होते इस पर सतत शोध चलते ही रहते हैं इस तरह ज्ञान का संवर्धन होता रहता है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-67018189028817004572010-01-26T09:11:10.635+05:302010-01-26T09:11:10.635+05:30आदरणीय समय .,
अब देखिये न कितनी सहज सरल प्रांजल भा...आदरणीय समय .,<br />अब देखिये न कितनी सहज सरल प्रांजल भाषा में आपने उत्तर दिया है -और बात भी इसलिए सहज ही बुद्धिगम्य हो गयी -निश्चित ही सहज वृत्ति कई बाह्य उद्दीपनों से उद्वेलित सतत/संकलित अनुवर्ती प्रतिक्रियाओं का प्रस्फुटन है .सहमत हूँ -यह नैसर्गिक/आनुवंशिक ही है .<br />आपका चिर कृतग्य हूँ -मेरे अशालीन क्षणिक अकादमीय आवेशों को भी सहजता से ले लेते हैं -यह कुछ ऐसा ही है "वर्षा की बूंदों को जिस तरह हिम शैल सहन करते हैं वैसे ही खल की बातों को संत जन "<br />सादर,Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-30075350193158395002010-01-26T00:53:15.471+05:302010-01-26T00:53:15.471+05:30*tarminology = terminology*tarminology = terminologyL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-54490285915773387712010-01-26T00:28:10.636+05:302010-01-26T00:28:10.636+05:30विषयांतर के कारन tarminology में अंतर स्वाभाविक ...विषयांतर के कारन tarminology में अंतर स्वाभाविक होता है ..दर्शन का मुझे बहुत ज्ञान नही है ..पर मनोविज्ञान में इस सहज बोध (instinct) को repeated behavior से जोड़ कर देखा जाता है, लेखमाला निपटने के बाद इसपर कुछ लिखूंगी.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-75692733160505114442010-01-26T00:08:45.729+05:302010-01-26T00:08:45.729+05:30आदरणीय मिश्रा जी,
बहुत दिनों बाद आपकी आलोचना से स...आदरणीय मिश्रा जी,<br /><br />बहुत दिनों बाद आपकी आलोचना से सामना हुआ। बीच में आपकी इस कृपा दृष्टि से महरूम रहे, इसे प्रचलित भाषा में हमारा दुर्भाग्य कह लें।<br /><br />यह वाकई किताबी भाषा है, और आपको चिढ़ पहुंचाने का हमेशा खेद रहता है। परंतु इस कार्य के कुछ इससे भी महती उद्देश्य हैं। जाहिर है आपसे और आपकी मेधा से मुआफ़ी मांगते हुए बर्दाश्त करने की गुजारिश की जा सकती है। आपकी सहिष्णुता के लिए शायद हमेशा यह परीक्षा की तरह रहती हो।<br /><br />नाचीज़ ने रिफ्लेक्श एक्शन से मतलब परावर्तन (रिफ्लेक्शन) लगाया, और उसी संदर्भ में यह लिखा कि सहजवृत्तियां, परावर्तन का ही एक रूप हैं। हम उसी में उलझ गये।<br /><br />वैसे सहजवृत्ति, प्रतिवर्ती क्रियाओं की श्रृंखला ही होती हैं। सहज व्यवहार के क्रियातंत्र को बाह्य परिस्थितियों द्वारा प्रवर्तित किया जाता है, जो प्रतिवर्ती अनुक्रिया को पैदा करती है। यह अपनी बारी में अगली और वह उससे अगली अनुक्रिया को जन्म देती है। इस तरह जैसा कि पहले कहा गया था, प्रतिवर्तों की श्रृंखला का एक आनुवांशिक प्रोग्राम बन जाती हैं। यही सहजवृत्तियां परिवेशीय परिस्थितियों से संबंधित प्रतिक्रियाओं का एक जटिल जन्मजात या नैसर्गिक रूप होती हैं।<br /><br />जाहिरा तौर पर यह सौदाहरण विस्तार मांगता है, और मनोविज्ञान का विषय है। शायद विस्तृत विवेचन बाद में संभव हो। फिलहाल दर्शन के दायरे में चेतना की उत्पत्ति तथा भूतद्रव्य और चेतना की प्राथमिकता के सवाल के मद्देनज़र यहां इनका सारगर्भित विवेचन मात्र किया जा रहा है, और विस्तार का अवसर नहीं है।<br /><br />पर एक बात देखिए ना। रिफ्लेक्श एक्शन से हम ज्यादा सामान्यीकृत रूप परावर्तन का बोध लेते हैं, आप सहजबोध ( common sense ) और सहजवृत्ति ( instinct ) को पर्यायों की तरह प्रयोग में ले लेते हैं। आपने कुछ सही बातें उठाई हैं, पर इसके लिए आपको भी वही किताबी भाषा इस्तेमाल करने को मजबूर होना पडता है।<br /><br />यानि कि जरूरत तो लगती है, गंभीर विषय प्रवर्तन हेतु एक मानक भाषा का प्रयोग करने की। वरना हो सकता है हमारे द्वारा कई नये भ्रमों का निर्माण संभव हो सकता है।<br /><br />आपकी इस कृपा दृष्टि और आलोचनात्मक विवेक की हमेशा अभिलाषा रहती है।<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-38954861435603794292010-01-25T18:33:21.312+05:302010-01-25T18:33:21.312+05:30मैं एक बार फिर से जोर देकर कहना चाहता हूँ कि मुझे ...मैं एक बार फिर से जोर देकर कहना चाहता हूँ कि मुझे ऐसी किताबी भाषा से बड़ी चिढ होती है जो पठनीयता की बराबर मुंह चिढाती रहे .<br />ये इतनी प्राथमिक जानकारियाँ है कि इनका प्रकाशन हुए भी अर्धशतक तो बीत चुका .<br />गिरिजेश ने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया था -क्या प्रतिवर्ती क्रियायें ही सहज वृत्ति है जैसा की उन्हें आपकी लेखनी से भ्रम हुआ !<br />सहज बोध नैसर्गिक वृत्ति तो है मगर वह प्रतिवर्ती क्रिया नहीं है .एक बात जो चर्चा में नहीं और अनिवार्यतः आनी चाहिए थी -वह यह है की प्रतिवर्ती रिफ्लेक्स में मस्तिष्क बाईपास हो जाता है जैसे बहु उद्धृत .'नी जर्क रिफ्लेक्स' जिसमे ठिहुनी(नी कैप) के ठीक नीचे हल्का सा पुश करने पर पैर आगे बढ़ जाता है -यहाँ मस्तिष्क की भूमिका ही नहीं है -जबकि सहज बोध से जुडी क्रियाओं में मष्तिष्क और जुड़े अंतस्रावी ग्रंथियों तक की भूमिका हो सकती है -विकास के उत्तरोत्तर क्रम में सहज बोध भी गौण होता गया है - पशुओं के नवजात शिशु अपने मान के थन तक बिना बताये पहुँच जाते हैं .यह सहज बोध है .पक्षी प्रवास गमन करते हैं यह सहज बोध है -ये पूरी तरह नैसर्गिक है .यहाँ अधिगम मतलब सीखने की कोई भूमिका नहीं है . मगर मनुष्य में शायद ही कोई सहज बोध का बहुत स्पष्ट सा ऐसा उदाहरण हो जो पूर्णतया नैसर्गिक होता हो -क्योकि यहाँ सहज बोध में सीखने का समावेश होता है .बिना सीखे सहज बोध में मानो जंग सा लग जाता है .Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-85955599026629051062010-01-24T23:22:31.929+05:302010-01-24T23:22:31.929+05:30अच्छी व्याख्या ..
..हालांकि जाहिरा तौर पर सहजवृत्...अच्छी व्याख्या ..<br /><b><br />..हालांकि जाहिरा तौर पर सहजवृत्ति, परावर्तन ( reflex action ) का ही एक आद्य निरूपण है</b> - कभी वक्त मिला इसे मनोविज्ञान में विस्तार दिया जाएगाL.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-64819118943876217522010-01-24T19:45:10.802+05:302010-01-24T19:45:10.802+05:30भाई गिरिजेश जी,
आप मनुष्य के सापेक्ष सहजवृत्ति को...भाई गिरिजेश जी,<br /><br />आप मनुष्य के सापेक्ष सहजवृत्ति को देखना चाह रहे हैं, जाहिर है यह तुरत दिलचस्पी का कारण होता है। वहां तक पहुंचना होगा ही।<br /><br />मनुष्य के मामले में अचेतन जैविक प्रतिक्रियाओं को सहजवृत्ति के रूप में रखा जा सकता है। पर मनुष्य का मामला इतना सरल भी नहीं है। यहां उसका लंबा अनुकूलन कुछ निश्चित आवर्ती सचेत क्रियाओं को भी अवचेतन का हिस्सा बना लेता है, और वे सहजवृत्तियों की ही भांति संपन्न होने लगती हैं। यह अध्ययन मनोविज्ञान विषय के अंतर्गत अपना विस्तार पाता है। फिलहाल इतना ही।<br /><br />यहां के संदर्भ में, सहजवृत्ति और परावर्तन के मामले में यह कहना जरूरी लग रहा है।<br /><br />यहां अननुकूलित प्रतिवर्त ( unconditioned reflexes ) के साथ या लगा कर सहजवृत्ति ( instinct ) लिखा गया है। यानि कि सहजवृत्तियां, अननुकूलित प्रतिवर्तों की श्रृंखलाएं हैं।<br /><br />यह कहना पूरी तरह सही नहीं है कि reflex action सहजवृत्ति है। हालांकि जाहिरा तौर पर सहजवृत्ति, परावर्तन ( reflex action ) का ही एक आद्य निरूपण है। सहजवृत्तियां परिवेशीय परिस्थितियों से संबंधित प्रतिक्रियाओं का एक जटिल जन्मजात रूप हैं। उनका श्रृंखलित स्वरूप होता है और उनकी बदौलत ही जीव एक के बाद एक अनुकूलनात्मक क्रियाएं करता है।<br /><br />सहजवृत्ति-जन्य क्रियाएं कुछ निश्चित परिस्थितियों से जुड़ी होती हैं, और प्रतिवर्तों की श्रृंखला का एक आनुवांशिक प्रोग्राम बन जाती हैं। यही बात इनकी सीमाएं प्रदर्शित करती है, क्योंकि परिस्थितियों के मानक रूप में परिवर्तन आते ही, सहजवृत्तिमूलक क्रियाएं अपनी कार्यसाधकता खो बैठती हैं। अतएव यह कहा जा सकता है कि सहजवृत्तियां, परावर्तन ( reflex action ) क्षमता को सीमित कर देती हैं।<br /><br />परावर्तन को ठीक से समझे जाने की जरूरत है, क्योंकि यही आगे जाकर मानव चेतना के आविर्भाव के रूप में सामने आता है। आप पिछले लेखों के साथ संदर्भित करते रह सकते हैं।<br /><br />इसीलिए ना यहां इन पर इशारे किए जा रहे हैं। आगे शायद इनको और विस्तार से सौदाहरण प्रस्तुत कर पाया जाए।<br /><br />शुक्रिया आपका।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-37853259249156059962010-01-24T18:16:41.411+05:302010-01-24T18:16:41.411+05:30महराज, पढ़े जा रहा हूँ। अधिकतर चुप रहता हूँ क्यों ...महराज, पढ़े जा रहा हूँ। अधिकतर चुप रहता हूँ क्यों कि अभी विद्यार्थी हूँ। <br />एक प्रश्न है<br /> @ जब आदमी किसी बहुत गर्म वस्तु को छूता है तो वह अपने हाथ को तुरंत पीछे हटा लेता है। इस प्रक्रिया को अननुकूलित प्रतिवर्त या सहजवृत्ति ( instinct ) कहते हैं।<br /><br />तो reflex action सहजवृत्ति है?गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.com