tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post7966921953962789907..comments2024-03-29T08:04:38.866+05:30Comments on समय के साये में: सौन्दर्यबोध और व्यवहारAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-71641698945640334602011-11-09T17:58:58.684+05:302011-11-09T17:58:58.684+05:30फ़ेसबुक से गुजरते हुए यहाँ प्रेमविषयक सभी आलेख फिर...फ़ेसबुक से गुजरते हुए यहाँ प्रेमविषयक सभी आलेख फिर से पढ़े। …जीवन के हर पहलू में श्रेष्ठता का अर्थ मुझे लग रहा है कि आदमी घर के सामान भी ढंग से, एक अलग अन्दाज में रखता है, किताबों को भी सलीके से पढ़ता है, हर काम वह सिस्टमेटिक, सिलसिलेवार या बेतरतीबी से नहीं, बल्कि सुनियोजित तरीके से करता है…चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-5845778461876437602011-07-27T10:02:22.513+05:302011-07-27T10:02:22.513+05:30"जाहिर है एक उत्तम सौन्दर्यबोध का निर्माण और ..."जाहिर है एक उत्तम सौन्दर्यबोध का निर्माण और विकास, सिर्फ़ एक निश्चित क्रियाकलाप तक अपने आपको सीमित नहीं रख सकता, यह मनुष्य को जीवन के हर पहलू में अपनी श्रेष्ठता के साथ सक्रिय रहने की क्षमता प्रदान करता है।"<br /><br />"अब होता यह है कि प्रभुत्व/सत्ता प्राप्त समूह, चूंकि सारे साधन उनकी पहुंच और प्रभाव में होते हैं, ऐसे विचारों और विचारधाराओं का प्रचार और पक्षपोषण करता है जो उनके हितों के अनुरूप हों या ख़िलाफ़ नहीं जाते हों। अंतत्वोगत्वा समाज में और प्रभुत्व प्राप्ति की इच्छाएं रखने वालों में इन्हीं विचारों का बोलबाला हो जाता है, और सभी क्षेत्रों की सृजनात्मकता और रचनात्मकता इसी प्रभुत्व प्राप्ति के आकांक्षा के साथ गर्भनालबद्ध हो जाती हैं।"<br /><br /><br />इतना समझने के बाद फिलहाल कोई सवाल नहीं है।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-13006670121205892352009-06-08T12:26:32.895+05:302009-06-08T12:26:32.895+05:30सही बात है । ऐसे विरोधाभास आज समाज में जगह-जगह नजर...सही बात है । ऐसे विरोधाभास आज समाज में जगह-जगह नजर आ जाते हैं । ड्राइंग रूम में तो आदमी एथनिक कलेक्शन सजाता है, हैंडीक्राफ्ट दीवारों पर टांगता है, पर खुद अपनी जड़ों से ही जुदा होता जा रहा है । खुद को हाईफाई दिखाने के लिए । यह दोहरापन इतना गहरा है कि अचानक खुद पर नजर डाले तो शायद आदमी खुद को ही न पहचान पाए ।<br />कोलाहल से कौस्तुभkaustubhhttps://www.blogger.com/profile/07137704961577539697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-49759641145349139252009-06-06T07:47:06.035+05:302009-06-06T07:47:06.035+05:30विचारों से भरा आलेख। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
099...विचारों से भरा आलेख। वाह।<br /> <br />सादर <br />श्यामल सुमन <br />09955373288 <br />www.manoramsuman.blogspot.com<br />shyamalsuman@gmail.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.com