tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post8462672993504092121..comments2024-03-28T13:01:33.068+05:30Comments on समय के साये में: प्रेम और इसके प्राकृतिक एवं सामाजिक अंतर्संबंधAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-82366193482450235172011-07-24T22:52:54.642+05:302011-07-24T22:52:54.642+05:30अब प्रेम भी विवादित है! मैं इसे दुनिया का सबसे विव...अब प्रेम भी विवादित है! मैं इसे दुनिया का सबसे विवादास्पद विषय मानता हूँ। प्रेम पर आपसे कुछ बात की जा सकती है। लेकिन अभी आगे पढ़ना है…चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-81848827843678549412011-02-13T15:58:43.217+05:302011-02-13T15:58:43.217+05:30aap ka kathan satya hai.aap ka kathan satya hai.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-6572782069444252432009-09-01T23:35:49.519+05:302009-09-01T23:35:49.519+05:30मेरे भाई,
शब्दों का मतलब एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिय...मेरे भाई,<br />शब्दों का मतलब एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया में तय होता है, हालांकि हम स्वतंत्र होते हैं उन्हें जैसा चाहे समझने के लिए परंतु प्रामाणिक रूप से जब इन पर बात करने का अवसर होता है तो इन्हें वही आशय व्यक्त करना चाहिए जो इनसे प्रामाणिक और व्यवहारिक रूप से व्यक्त होता है।<br /><br />जहां तक प्रेम शब्द का प्रयोग है, सामान्यतयाः प्रामाणिक और व्यवहारिक रूप से इसका आशय यौन प्रेम से ही होता है। आप इस शब्द की विस्तृत परास तक पहुंच गये हैं और अच्छा लगा कि इसे पूरे मानवसमाज की परिधि और बल्कि इससे परे पूरी सृष्टि तक आयामित कर रहे हैं। ये बात दीगर है कि मनुष्य ने इसकी कई और छवियों के लिए अलग-अलग शब्द अपनी भाषा के शब्द भंडार में रखे हुए हैं। स्नेह, ममता, वात्सल्य, दया, सहानुभूति, लगाव, अपनापन आदि।<br /><br />आपने सही कहा कि मैंने आपके द्वारा प्रयुक्त शब्द प्रेम से वस्तुतः यौन प्रेम का ही आशय लिया था और इसीलिए आपसे समय की बकवास पढ़कर संवाद स्थापित करने की इच्छा जाहिर करने की गुस्ताख़ी की थी।<br /><br />आपने शायद ‘प्रेम एक भौतिक अवधारणा है’ वाला आलेख नहीं पढ़ा। उसके कुछ अंश दे रहा हूं:<br /><br />‘मनोविज्ञान में ‘प्रेम’ शब्द को इसके संकीर्ण और व्यापक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। अपने व्यापक अर्थों में प्रेम एक प्रबल सकारात्मक संवेग है, जो अपने लक्ष्य को अन्य सभी लक्ष्यों से अलग कर लेता है और उसे मनुष्य अपनी जीवनीय आवश्यकताओं एवं हितों का केंद्र बना लेता है। मातृभूमि, मां, बच्चों, संगीत आदि से प्रेम इस कोटि में आता है।<br />अपने संकीर्ण अर्थों में प्रेम मनुष्य की एक प्रगाढ़ तथा अपेक्षाकृत स्थिर भावना है, जो शरीरक्रिया की दृष्टि से यौन आवश्यकताओं की उपज होती है। यह भावना, मनुष्य में अपनी महत्वपूर्ण वैयक्तिक विशेषता द्वारा दूसरे व्यक्ति के जीवन में इस ढंग से अधिकतम स्थान पा लेने की इच्छा में अभिव्यक्त होती है कि उस व्यक्ति में भी वैसी ही प्रगाढ़ तथा स्थिर जवाबी भावना रखने की आवश्यकता पैदा हो जाये।’<br /><br />०००००<br />यह आपने ठीक कहा कि दूसरे प्रारूपों पर विस्तृत विवेचना यहां नहीं की गयी है, पर इशारे जरूर किए गए हैं। क्योंकि यहां समय का उद्देश्य मूलतः यौन प्रेम को ही व्यापकता देने की कोशिश भर था।<br /><br />आपकी दूसरी बात भी बहुत महत्वपूर्ण है।<br />अन्य जीवों में प्रेम संबंधी।<br /><br />इस संबंध में एक इशारा था इस आलेख में:<br /><br />‘यदि जैविक प्रकृति के नज़रिए से देखें तो हर जीव अपनी जैविक उपस्थिति को बनाए रखने के लिए प्रकृति से सिर्फ़ जरूरत और दोहन का रिश्ता रखता है, और अपनी जैविक जाति की संवृद्धि हेतु प्रजनन करता है। प्रजनन की इसी जरूरत के चलते कुछ जीवों के विपरीत लिंगियों को साथ रहते और कई ऐसे क्रियाकलाप करते हुए देखा जा सकता है जिससे उनके बीच एक भावनात्मक संबंध का भ्रम पैदा हो सकता है, हालांकि यह सिर्फ़ प्रकॄतिजनित प्रतिक्रिया/अनुक्रिया का मामला है। कुछ विशेष मामलों में जरूर यह अहसास हो सकता है कि कुछ भावविशेषों तक यह अनुक्रियाएं पहुंच रही हैं।’<br />०००००<br /><br />आप यदि मनोविज्ञान के अध्ययन से गुजरे हों तो वहां आपको एक शब्द मिलता है। सहजवृत्ति।<br /><br />अन्य जीवों की एक विशेषता उनमें सहजवृत्तियों की मौजूदगी होती है। सहजवृत्तियां परिवेशीय परिस्थितियों से संबंधित प्रतिक्रियाओं का एक जटिल जन्मजात रूप हैं। उनका रूप श्रृंखलागत होता है और उनकी बदौलत ही जीव एक के बाद एक अनुकूलनात्मक क्रियाएं करता जाता है।<br /><br />संतान को पालने, जनने, खिलाने, बचाने, आदि से संबंधित बड़ी जटिल सहजवृत्तियां अधिकांश कशेरुकियों में पाई जा सकती हैं। पक्षियों और स्तनपायियों में नीड़-निर्माण और शिशुओं की देखभाल की सहजवृत्ति बहुत ही कार्यसाधक प्रतीत होती है। सहजवृत्ति-जन्य क्रियाओं की एक पूरी श्रृंखला को जन्म देने वाली निश्चित परिस्थितियों में किंचित सा परिवर्तन आने पर सारा विशद कार्यक्रम गड़बड़ा जाता है। पक्षी अपने शावकों को छोड़ सकते हैं और स्तनपायी अपने बच्चों को दांतों से काटकर मार सकते हैं।<br /><br />बचपन में हो सकता है आपको भी घर के बुजुर्गों ने घौंसलों से छेड़छाड़ करने से, नवजातों को छूने से मना किया हो। क्योंकि यह बात वे जानते हैं कि इससे हो सकता है पक्षी उन्हें ऐसे ही छोड़ जाए, तड़पते हुए मरने के लिए।<br /><br />जाहिर है समय सिर्फ़ इस विषय पर इशारे कर रहा है, जहां अभी जानने को बहुत कुछ बाकी है। हमें इसका संधान करना चाहिए। सत्य तक पहुंचना चाहिए, क्योंकि इनके जरिए हम अपना नज़रिया, अपना दृष्टिकोण बना रहे होते हैं।<br />०००००<br />संवाद को आगे बढ़ाएं।<br />बताए कि प्रेम को आप किन व्यापक प्रारूपों के अंतर्गत देखते हैं?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-72899072493568174602009-09-01T20:36:54.137+05:302009-09-01T20:36:54.137+05:30हे समय,
मेरी सीमित समझ के अनुसार आपका ये आख्यान स...हे समय,<br /><br />मेरी सीमित समझ के अनुसार आपका ये आख्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ स्त्री-पुरुष संबंधों के द्वारा उत्पन्न प्रेम या उसकी दशा में किए गए प्रयासों तक ही सीमित है। प्रेम के और भी प्रारूप हैं और आपको उनके ऊपर भी दृष्टि डालनी चाहिए।<br /><br />दूसरी बात जो मैंने समझी है वो ये कि आपके अनुसार मनुष्यों के अलावा कोई और जीव प्रेम करने में सक्षम नहीं है। जिस बात को मैं एक हद तक स्वीकार करता हूँ, क्योंकि अन्य जीवों में प्रेम-प्रलाप केवल प्रजनन क्रिया के लिए ही सीमित है। और इसके लिए वो अपने साथी बदलने से भी नहीं चूकते। परंतु अगर अन्य प्रारूपों की तरफ़ देखें तो जीवों में भी प्रेम पनपता दिख सकता है। उदहारण के तौर पर माँ का अपने शिशुओं के प्रति।<br /><br />बहरहाल, आपके लेख ने अपने आप से न्याय किया है।<br /><br />पुनश्च: - मेरे चिट्ठे पर पधारने के लिए धन्यवाद।Pratyush Garghttps://www.blogger.com/profile/04136857458272842736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-61478537910408260452009-05-16T03:03:00.000+05:302009-05-16T03:03:00.000+05:30सुन्दर चिन्तन एवं आख्यान!!
आभार!सुन्दर चिन्तन एवं आख्यान!!<br /><br />आभार!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com