tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post8529432073809904079..comments2024-03-29T14:39:00.237+05:30Comments on समय के साये में: अपने समय के साथ होनाAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-44876586384534996072013-02-15T11:31:57.492+05:302013-02-15T11:31:57.492+05:30लेख अच्छा लगा । आप का लेख पढ़ कर मुझे एक एनीमेशन फि... <br /><br /> <br /><br /> <br />लेख अच्छा लगा । आप का लेख पढ़ कर मुझे एक एनीमेशन फिल्म जो बाद में धारावाहिक भी बना की याद आई शायद उसका नाम "रिग रेट " था उसमे कुछ, एक साल से कम के बच्चे होते है जो बड़ो की बातो दुनिया के सामान्य चीजो को जब अपनी नजर से देखते है तो उन्हें वो कुछ और ही नजर आता है उसे लेकर वो एक अलग ही कल्पना बनाते है , जबकि उनमे एक बच्ची दो साल की होती है जो बच्चो और बड़ो दोनों की भाषा और बाते समझ पाती है , उसका भी अपना एक अलग ही नजरिया होता है । anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-58955669290482371942011-07-24T21:03:08.504+05:302011-07-24T21:03:08.504+05:30इस बार तो बहुत सुन्दर लगा। आश्चर्य है कि सब कुछ पह...इस बार तो बहुत सुन्दर लगा। आश्चर्य है कि सब कुछ पहले से मालूम है लेकिन एक व्यवस्थित तरीके से ऐसा है तो अच्छा लगा। समय का जिक्र भी पसन्द आया कि कौन आदमी किस समय में है। <br /><br />"प्रत्येक मनुष्य ज्ञान और समझ के स्तर पर शून्य से शुरू होते हैं, और अपनी परिवेशी परिस्थितियों के अनुरूप धीरे-धीरे इसका विकास करते हैं, निरंतर इसका परिष्कार करते हैं। इसीलिए अलग-अलग मनुष्य, एक ही समय में ज्ञान और समझ के समय-सापेक्ष विभिन्न स्तरों पर होते हैं, कुछ इनके विकास की प्रक्रिया में रहते हैं और कहीं यह प्रक्रिया रुक भी जाती है।"<br /><br />यह तो सत्य है और मैं मानता हूँ कि सब कुछ शून्य से शुरु से होता है और पुनर्जन्म का सिद्धान्त नकली है। मेरे पिता रामानुजन को अलौकिक मानते हैं और मैं एकदम सामान्य और एक क्रमबद्ध जीवन जीने वाला और गणित का अध्येता और शोधकर्ता मानता हूँ।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-59869047737102773802009-05-04T22:26:00.000+05:302009-05-04T22:26:00.000+05:30मनुष्य समय के साथ नहीं आ जाता, मानव जाति के ऐतिहास...मनुष्य समय के साथ नहीं आ जाता, मानव जाति के ऐतिहासिक ज्ञान, विज्ञान व तकनीकि द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का उपभोग करना सीख कर ही वह आधुनिक नहीं हो जाता। दरअसल वह सही अर्थों में तभी आधुनिक हो सकता है, तभी अपने समय के साथ हो सकता है जब वह अपने ज्ञान, समझ और विवेक के स्तर को विकसित करके उसे संपूर्ण मानव जाति के ज्ञान, समझ और विवेक के अद्यतन स्तर तक नहीं ले आता।<br />-------------------<br />मेरे विचार से आदमी अगर स्वयं को ही दृष्टा की तरह देखे तो उसे वह गुण दोष अपने आप में ही दिखाई देंगे जो वह दूसरों में देखता है। पूरे दिन ही इस धरती पर आने वाले उतार चढ़ाव को ध्यान से देखकर अध्ययन कर ले तो उससे वह इतिहास को समझ लेगा।जीवन की मृत्यु तय है पर महत्व इस बात का है कि कौन कैसे जिया। आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा।<br />दीपक भारतदीपदीपक भारतदीपhttps://www.blogger.com/profile/06331176241165302969noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-43239300286344908872009-05-03T11:21:00.000+05:302009-05-03T11:21:00.000+05:30आपकी बात से सहमत हूं कि किसी मनुष्य को प्रकृति की ...आपकी बात से सहमत हूं कि किसी मनुष्य को प्रकृति की सामान्य शक्तियां रहस्यमयी और चमत्कारी लगती हैं, तो वह आदिम युग में यानि लाखों वर्ष पूर्व के समय में अवस्थित है। यदि ये शक्तियां उसके मस्तिष्क में अलौकिक देव-शक्तियों के रूप में प्रतिबिंबित होती हैं जिन्हें खुश करके नियंत्रित किया जा सकता है तो वह दसियों हजार साल पहले के समय में अवस्थित है।संदीपhttps://www.blogger.com/profile/01871787984864513003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-52549325788040134942009-05-03T06:56:00.000+05:302009-05-03T06:56:00.000+05:30narayan narayannarayan narayanगोविंद गोयल, श्रीगंगानगर https://www.blogger.com/profile/04254827710630281167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4323557767491605220.post-15816244679715016102009-05-02T23:41:00.000+05:302009-05-02T23:41:00.000+05:30पहले से पची पचाई है जी।पहले से पची पचाई है जी।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com