शनिवार, 28 अगस्त 2010

जीवों द्वारा उपार्जित व्यवहार के रूप

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने यहां अनुकूलित संबंध और सहज-क्रियाओं पर चर्चा की थी इस बार जीवों द्वारा उपार्जित व्यवहार के कुछ अन्य रूपों पर एक नज़र ड़ालेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
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जीवों द्वारा उपार्जित व्यवहार के रूप

उच्चतर जीवों, विशेषतः स्तनपायियों में व्यवहार के नये, अधिक लचीले रूप पाये जाते हैं। एक ही जाति के भीतर विभिन्न सदस्यों के बीच अस्थायी संबंधों के निर्माण में ही व्यष्टिक भेद होते हैं, वे सहजवृत्ति-जन्य भेदों की तुलना में ज़्यादा स्पष्ट बन जाते हैं। कुछ व्यष्टिक सदस्य जीवों में अनुकूलित संबंध दूसरों के मुकाबले पहले पैदा हो सकते हैं। कशेरुकी, निम्नतर जीवों की अपेक्षा कहीं ज़्यादा अनुकूलित संबंध विकसित कर सकते हैं। यह स्पष्टतः देखा गया है कि विकासक्रम में जो जीव जितनी ही ऊंची सीढ़ी पर होगा, उसके अनुकूलित संबंध उतने ही पेचीदे और लचीले होंगे।

मछलियां प्रकाश, रंग, आकार, ध्वनि और स्वाद की अनुक्रियास्वरूप अपेक्षाकृत आसानी से अनुकूलित संबंध बना लेती हैं। किंतु ये संबंध ज़्यादा लचीले नहीं होते। उदाहरण के लिए, छोटी मछली को देखते ही पाइक मछली में तेज़ी से जो शिकारमूलक प्रतिक्रिया विकसित होती है, उसे ख़त्म कर पाना कठिन होता है। एक प्रयोग में छोटी मछलियों को कांच की पारदर्शी दीवार द्वारा पाइक से अलग किया गया, मगर पाइक फिर भी काफ़ी समय तक दीवार से टक्कर मारती रही और यह स्थिति तब तक जारी रही, जब तक एक नया अनुकूलित संबंध नहीं बन गया। अपनी बारी में यह नया संबंध भी तब भी जारी रहा, जब कांच की दीवार को हटा दिया गया। अब पाइक की अपने आसपास तैर रही छोटी मछलियों में कोई दिलचस्पी ही नहीं रह गई।

अनुकूलित संबंध काफ़ी कड़े हो सकते हैं और बदलते हुए परिवेश में अवयवी के व्यवहार पर उनका नगण्य-सा ही प्रभाव पड़ता है। जैव उदविकास में परावर्तन की अगली अवस्था व्यवहार की नयी कसौटी के स्वतंत्र विकास पर आधारित लचीले व्यवहार के अधिक परिष्कृत रूपों का प्रकट होना है। व्यवहार में नमनीयता लाने के लिए जीव के लिए परिवेश के अलग-अलग गुणों ( तापमान, रंग, गंध इत्यादि ) का ही नहीं, समस्त वस्तुपरक स्थितियों का विश्लेषण और संश्लेषण करना आवश्यक है।

यदि हम मुर्गी के सामने कुछ दानें बिखेरें और दानों तथा मुर्गी के बीच एक जालीदार चौखटा खड़ा कर दें, तो मुर्गी जाली को तोड़कर दानों तक पहुंचने की कोशिश करेगी। मगर ऐसी ही स्थिति में विकास के उच्चतर स्तर पर स्थित पक्षी ( उदाहरणार्थ, कौआ या मैगपाई ) दूसरे ढ़ंग से व्यवहार करेंगे। वे जाली के पार से दानों को सीधे उठाने की कुछ असफ़ल कोशिशों के बाद, जाली की बगल से जाकर दाने उठा लेंगे।

पहले मामले में व्यवहार सहजवृत्तिमूलक प्रोग्राम पर आधारित है, जबकि दूसरे मामले में स्थिति के विश्लेषण पर। यह दूसरे प्रकार का व्यवहार स्तनपायियों में विशेष स्पष्टता के साथ दिखायी देता है, जब जीव पूरी स्थितियों को जानकर तथा उनका विश्लेषण करके अपने को बदलती अवस्थाओं के अनुकूल बनाने और व्यवहार का नियमन करने लगता है। सहजवृत्ति पर आधारित व्यवहार-संरूपों के साथ-साथ उच्चतर जीव अन्य प्रकार के व्यवहार भी दिखाते हैं, जो अलग-अलग जीवों में अलग-अलग होते हैं। ये व्यवहार-संरूप हैं आदतें और बौद्धिक क्रियाएं

आदतों से आशय जीवों की उन क्रियाओं से है, जो अनुकूलित संबंधों पर आधारित हैं और स्वतः की जाती हैं। सहजवृत्तियों की भांति आदतें विकास के निम्नतर चरण में भी पायी जाती हैं, किंतु उनकी स्पष्ट अभिव्यक्ति वे केवल उन जीवों के व्यवहार में पाती हैं, जिनमें प्रमस्तिष्कीय प्रातंस्था विकसित हो चुकी है। जीव-जंतुओं की आदतों के प्रेरक घटकों में जाति के अनुभव को पुनर्प्रस्तुत करने वाली सहज हरकतें और सांयोगिक हरकतों की पुनरावृत्ति के जरिए मजबूत बनें अनुकूलित प्रतिवर्त शामिल हो सकते हैं। नीचे दिये गये उदाहरणों से हरकतों के इन रूपों का स्वरूप जाना जा सकता है।

जानवरों को साधने वाला आसानी से ख़रगोश को ढ़ोल बजाना सिखा सकता है। यह एक विशिष्ट हरकत है : साल में एक निश्चित समय पर सभी खरगोश जंगल में ठूंठों या गिरे हुए पेड़ो के तनों, आदि को ढ़ोल जैसे बजाते हैं। दूसरी प्रकार की हरकतों की मिसाल चेन से बंधे कुत्ते की प्रेक प्रतिक्रियाएं हैं। एक प्रयोगकर्ता ने कुत्ते के सामने गोश्त का टुकड़ा रखा, किंतु वह कुत्ते की पहुंच से बाहर था। गोश्त एक रस्सी से बंधा हुआ था और रस्सी कुत्ते की पहुंच में थी। उत्तेजना के कारण पंजों से खरोंचने की कुछ असफल हरकतें करने के बाद कुत्ते ने संयोगवश रस्सी खींच ली और गोश्त को पकड़ लिया। बार-बार किये जाने पर्यह हरकर आदत बन गई और कुत्ते ने खाने को बिना किसी कठिनाई के पाना सीख लिया। इसके बाद गोश्त को कुत्ते के अगले पैरों की पहुंच से बाहर रखा गया। पुराने तरीके से गोश्त को पाने में असफल रहकर कुत्ते ने पीठ फेरी और पिछले पैर से रस्सी खीच ली, और उसे गोश्त मिल गया।
 ( साथ का चित्र देखें )


यह प्रयोग दिखाता है कि जानवर द्वारा सीखी हुई आदतों से, बदली हुई स्थितियों में भी काम लिया जा सकता है। दत्त मामले में प्रयोग की परिस्थितियां और पेचीदी हो गई थीं, किंतु कुत्ते ने अपने वांछित लक्ष्य को पाने के लिए आदत को आगे के पैरों से पिछले पैरों में अंतरित करके परिवर्तन के अनुरूप प्रतिक्रिया दिखाई।

इस तरह आदतें एक दूसरी से तात्विकतः भिन्न हो सकती हैं साथ ही एक ओर वे सहजवृत्तियों से मिलती-जुलती ( अपने स्वचालित स्वरूप के कारण ) हो सकती हैं वहीं दूसरी ओर, व्यवहार के बौद्धिक रूपों से समानता रखने वाली हो सकती हैं।

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इस बार इतना ही। अगली बार हम पशुओं में बौद्धिक व्यवहार के कुछ रूपों पर चर्चा करेंगे।

जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।

शुक्रिया।

समय

1 टिप्पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

लगातार ज्ञानवर्धन कर रही है यह श्रंखला।

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