शनिवार, 10 मई 2014

परिमाण से गुण में रूपांतरण का नियम - पहला भाग

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने द्वंद्ववाद के नियमों के अंतर्गत दूसरे नियम की दिशा में परिमाण तथा छलांग की संकल्पना पर चर्चा की थी, इस बार हम दूसरे नियम ‘परिमाण से गुण में रूपांतरण के नियम’ पर चर्चा करेंगे ।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



२. परिमाण से गुण में रूपांतरण का नियम - पहला भाग
( परिमाणात्मक परिवर्तनों से गुणात्मक परिवर्तनों में संक्रमण )

परिमाण से गुण में रूपांतरण का नियम ( law of transformation from quantity to quality ) विकास के तरीक़े को, उस प्रक्रिया की क्रियाविधि को दर्शाता है। यह वस्तुओं और प्रक्रियाओं के परिणामात्मक ( quantitative ) व गुणात्मक ( qualitative ) पक्ष जैसे विरोधियों ( opposites ) के अंतर्संबंध ( interrelation ) को व्यक्त करता है। हम यहां पहले भी ‘क्रमविकास क्या होता है’ के अंतर्गत इन परिवर्तनों पर काफ़ी चर्चा कर ही चुके हैं। एक बार पुनः उसका समाहार कर लेते हैं।

किसी भी चीज़ के परिमाणात्मक और गुणात्मक पहलू घनिष्ठता से अंतर्संबंधित होते हैं। इस संबंधों का रूप द्वंद्वात्मक ( dialectical ) होता है। अपनी अटूट एकता में वे किसी भी चीज़ या घटना के दो पक्षों के रूप में एक दूसरे पर आश्रित ( dependent ) होते हैं। किसी एक वस्तु या घटना के परिमाणात्मक और गुणात्मक पक्षों की एकता को परिमाप कहते हैं। परिमाप की संकल्पना का यह तात्पर्य है कि कोई एक निश्चित परिमाण ही एक गुण के तदनुरूप होता है। गुण में परिवर्तन के बग़ैर परिमाण केवल कुछ निश्चित सीमाओं तक ही बदल सकता है, जो वस्तु की परिमाप होती हैं। जब परिमाण में परिवर्तन उन परिमापों तक पहुंच जाते हैं, तो परिमाप गडबड़ा जाता है और वस्तु का गुण बदलने लगता है। मसलन, सामान्य वायुमंडलीय दबाब के अंतर्गत ० डिग्री से १०० डिग्री तक का तापमान पानी की तरलावस्था का परिमाप है। जब तापमान शून्य से नीचे जाता है, तो पानी जमकर बर्फ़ बन जाता है, ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। और जब पानी को १०० डिग्री से अधिक तापमान तक गर्म किया जाता है, तो वह वाष्प बन जाता है, यानि गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।

सामाजिक-आर्थिक विरचनाओं ( socio-economic formations ) का अनुक्रमण ( succession ) भौतिक नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक प्रक्रिया है, किंतु फिर भी परिमाणात्मक तथा गुणात्मक परिवर्तनों की द्वंद्वात्मक कड़ी उनमें भी पायी जाती है। आदिम-सामुदायिक प्रणाली ( primitive communal system ), उत्पादक शक्तियों के अत्यंत धीमे विकास के प्रभावांतर्गत शनै- शनैः बदली। जब परिमाण में ये परिवर्तन एक विशेष सीमा पर पहुंच गये और उत्पादन संबंधों ( relations ) और उत्पादक शक्तियों ( forces ) के बीच सामंजस्यहीनता ( disharmony ) पैदा हो गयी, तब विकास अवरुद्ध हो गया और गुणात्मक परिवर्तनों की प्रक्रिया शुरू हुई, इसके फलस्वरूप सामुदायिक-गोत्रीय ( communal-clan ) प्रणाली के सारे सामाजिक संयोजन और संबंध टूट गये। पुराना आधार तथा उस पर निर्मित अधिरचना खंड-खंड हो गयी और समाज में गुणात्मक परिवर्तन हो गये, और निजी स्वामित्व वाले उत्पादन संबंधों और विरोधी वर्गों के आधार वाली एक नयी दास-प्रथात्मक सामाजिक अधिरचना प्रकट हुई। इतिहास की दृष्टि से यह पहली सामाजिक क्रांति ( social revolution ) है। इसी तरह आगे दासप्रथात्मक समाज से, एक नयी गुणात्मक अवस्था, सामंती ( feudal ) समाज अधिरचना में रूपांतरण संभव हुआ। उत्पादन संबंधों और उत्पादक शक्तियों के नये अंतर्विरोधों ( contradictions ) की तीव्रता तथा बढ़ती ने सामंती समाज पर असर डाला और परिमाणात्मक परिवर्तनों में संपरिवर्तन ( conversion ) की प्रक्रिया फिर हुई और बुर्जुआ क्रांतियों के रूप में पूंजीवादी ( capitalist ) विरचनाओं का जन्म हुआ। पूंजीवादी समाज में अंतर्निहित अंतर्विरोधों की परिमाणात्मक वृद्धि ने एक क्रांतिकारी, गुणात्मक संक्रमण ( transition ) यानी नयी, समाजवादी ( socialist ) विरचनाओं को जन्म दिया। समाज के रूपांतरण की यह प्रक्रिया अभी भी जारी है और शनैः शनैः सामाजिक-सामुदायिक हितों के अनुकूल नियोजित आर्थिक प्रणाली और समतामूलक समाज की स्थापना का लक्ष्य निकटतर होता जा रहा है।

चिंतन ( thought ) और चेतना ( consciousness ) के विकास में भी परिमाण और गुण के द्वंद्वात्मक संबंध भी सामने आते हैं। एक नवजात शिशु में बोलने, सोचने और सुस्पष्ट भाषण द्वारा अपने विचार व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती। उसके जीवन के पहले वर्षों के दौरान समुचित आदतों का क्रमिक संचयन ( gradual accumulation ) होता है। पहली गुणात्मक छलांग ( leap ) इस अवधि के बाद लगती है और सुस्पष्ट भाषण में व्यक्त होती है - बच्चा अलग-अलग शब्दों का उच्चारण करने लगता है। बाद में उसके चिंतन में इतना परिवर्तन होता है कि बच्चा अपनी कामनाओं , भावनाओं और बाह्य जगत के बारे में अपने प्राप्त ज्ञान को व्यक्त करने के लिए कमोबेश सम्मिश्र तार्किक युक्तियों या अनुमानों का संबंधित अनुक्रमिक ढंग ( sequential manner ) से उच्चारण करने लगता है और, इस तरह, चिंतन की रचना की एक मूलतः नयी अवस्था में प्रवेश करता है।

इस तरह हम देखते हैं कि जब परिमाणात्मक परिवर्तनों से परिमाप गड़बड़ा जाता है, तब पुराना गुण नये परिमाण के तदनुरूप नहीं रहता है और उनके बीच एक अंतर्विरोध पैदा हो जाता है। यह अंतर्विरोध बढ़ता चला जाता है और अंत में नये गुण की रचना तथा नये परिमाप के आविर्भाव से उसका समाधान ( solution ) होता है। इसे ही परिमाणात्मक परिवर्तन का गुणात्मक परिवर्तन में रूपांतरित होना कहते हैं। परिमाणात्मक तथा गुणात्मक परिवर्तन के बीच का संपर्क एक प्राकृतिक नियमनुवर्तिता है। परिमाण के गुण में रूपांतरित होने का यह नियम सार्विक ( universal ) है। जैसा हम देख चुके हैं, यह वस्तुजगत में भी काम करता है और मानव संज्ञान में भी। प्रकृति के बारे में हमारे ज्ञान के शनैः शनैः संचय से ही मानवजाति, विज्ञान और दर्शन के विकास की नयी गुणात्मक अवस्थाओं में पहुंच सकी है।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।

समय

1 टिप्पणियां:

Rashmi Swaroop ने कहा…

मैंने बहुत महत्वपूर्ण और गहरी बातें सीखी इस बार… :) और साथ ही साथ फ़िर से याद कर लिये हिन्दी के वे शब्द जो नियमित प्रयोग के अभाव में भूल से जाते हैं और फ़िर आवश्यकता पड़ने पर दिमाग पर ज़ोर डालना पड़ता है!
बहुत धन्यवाद।

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