शनिवार, 13 सितंबर 2014

कारण और कार्य - ३

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने भौतिकवादी द्वंद्ववाद के प्रवर्गों के अंतर्गत ‘कार्य-कारण संबंध’ के प्रवर्गों पर चर्चा को आगे बढ़ाया था, इस बार हम उसका समापन करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



भौतिकवादी द्वंद्ववाद के प्रवर्ग
कारण और कार्य - ३
( Cause and Effect ) - 3

जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है, कार्य-कारण संबंध की एक लाक्षणिक विशेषता यह है कि कारण और कार्य आपस में स्थान-परिवर्तन कर सकते हैं। कोई घटना, जो एक स्थिति में किसी कारण का परिणाम है, किसी दूसरी स्थिति या काल में एक कारण भी हो सकती है। मसलन, वर्षा निश्चित मौसमी दशाओं का परिणाम होने के साथ ही अच्छी फ़सल का कारण भी हो सकती है और अच्छी फ़सल ख़ुद अर्थव्यवस्था में सुधार का कारण हो सकती है, आदि, आदि।

सारी घटनाओं के, मुख्यतः पेचीदा ( complicated ) घटनाओं के कई कारण होते हैं। लेकिन कारणों के महत्त्व में अंतर होता है। कारण बुनियादी ( basic ), निर्णायक हो सकते हैं या ग़ैर-बुनियादी, सामान्य हो सकते हैं या प्रत्यक्ष। बुनियादी कारणों को अन्य सारे कारणों में से यह ध्यान में रखते हुए खोज निकालना महत्त्वपूर्ण है कि वे आम तौर पर भीतरी होते हैं। वैज्ञानिक संज्ञान ( scientific cognition ) तथा परिवर्तनकामी व्यवहार के लिए उनकी निश्चित जानकारी का बहुत महत्त्व है।

कार्य-कारण संबंधों में एक और बात की जानकारी आवश्यक है, वह इस प्रेक्षण से संबंधित है कि एक ही कारण हर बार एक ही निश्चित कार्य को उत्पन्न कर पाये यह जरूरी नहीं होता। एक कारण कार्य को उत्पन्न कर सके इसके लिए कुछ निश्चित पूर्वापेक्षाएं ( prerequisites ), कुछ निश्चित परिस्थितियों का संयोग आवश्यक हो सकता है, जिन्हें पूर्वावस्थाएं ( preconditions ) कहा जाता है। "कारण" और "कार्य" के प्रवर्ग, "पूर्वावस्था" के साथ घनिष्ठता से संबंधित हैं। पूर्वावस्था, विविध भौतिक घटनाओं और प्रक्रियाओं का ऐसा समुच्चय होती है, जिसके बिना एक कारण, कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकता है। किंतु इसके बावजूद पूर्वावस्थाएं कार्य की उत्पत्ति में सक्रिय ( active ) और निर्णायक ) decisive ) नहीं होती हैं। पूर्वावस्थाओं, कारणों और कार्यों के अंतर्संयोजनों ( interconnections ) की समझ घटनाओं के सही-सही मूल्यांकन ( evaluation ) के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है।

प्रकृति में हर चीज़ प्राकृतिक, वस्तुगत नियमों के अनुसार और ख़ास तौर से घटनाओं की कारणात्मक निर्भरता ( causal dependence ) के अनुसार चलती है। प्रयोजन ( goal, purpose ) केवल वहीं पर उत्पन्न होता है, जहां मनुष्य जैसा बुद्धिमान प्राणी काम करना शुरू करता है, यानी सामाजिक विकास के दौरान। परंतु यद्यपि लोग अपने लिए विभिन्न लक्ष्य नियत करते हैं, तथापि इससे सामाजिक विकास की वस्तुगत, कारणात्मक तथा नियमबद्ध प्रकृति का निराकरण ( obviate ) नहीं हो सकता। हम कार्य-कारण संबंध की सटीक जानकारियों के उपयोग से अपने इच्छित लक्ष्यों की प्राप्ति के पूर्वाधारों के निर्माण के प्रयास कर सकते हैं, अपनी सफलताओं की गुंजाइश बढ़ा सकते हैं।

कार्य-कारण संबंध सार्विक हैं। लेकिन वास्तविकता के सारे संयोजन इसी तक सीमित नहीं हैं, क्योंकि यह सार्विक संयोजनों का एक छोटा अंश मात्र हैं। विश्व में कारणात्मक संबंधों के जटिल जाल ( intricate network ) में आवश्यक और सांयोगिक संयोजन सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। अगली बार हम इन्हीं "आवश्यकता और संयोग" के प्रवर्गों पर चर्चा करेंगे।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।

समय

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