शनिवार, 21 नवंबर 2009

अजैव जगत में परावर्तन

हे मानवश्रेष्ठों,
पिछली बार हमने पदार्थ के मूलभूत गुण के रूप में, परावर्तन ( Reflection, a reflex action, an action in return ) की चर्चा शुरू की थी।
इसी को आगे बढ़ाने और समझने के लिए आज हम अजैव जगत में परावर्तन के कुछ रूपों की चर्चा करेंगे।
समय यहां अद्यतन ज्ञान को सिर्फ़ समेकित कर रहा है।
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हमने जाना था कि, परावर्तन हर भौतिक वस्तु ( परावर्तन के विषयी ) का अपने साथ अंतर्क्रियाशील अन्य भौतिक वस्तुओं ( विषयों ) के प्रभाव के प्रति अनुक्रिया करने का एक विशेष गुण है।

परावर्तन का सरलतम रूप अजैव जगत में पाया जाता है, जो भूतद्रव्य ( Matter ) की गति के यांत्रिक, रासायनिक, भौतिक तथा कुछ अन्य रूपों में अपने आपको अभिव्यक्त करता है।

अजैव जगत में परावर्तन के इन रूपों की विशेषता को समझने के लिए हम चंद उदाहरणों पर ग़ौर करते हैं:

१. हम बिलियर्ड के बल्ले से गेंद पर चोट करते हैं। गेंद एक निश्चित दिशा में और एक निश्चित दूरी तक ऐसी रफ़्तार से लुढ़कती है, जो गेंद पर किये गए आघात बल पर निर्भर होती है।

२. दो प्राथमिक भौतिक कण, ऋण आवेश युक्त इलैक्ट्रॉन तथा धन आवेश युक्त पोज़ीट्रॉन निश्चित दशाओं में एक दूसरे से टकराते हैं और नष्ट हो जाते हैं, यानि दो फ़ोटोनों में अर्थात प्रकाश के क्वांटमों में तबदील हो जाते हैं।

३. जब क्षरण से अरक्षित लोहे की किसी वस्तु पर पानी गिर जाता है, तो ऑक्सीकरण की क्रिया से उस वस्तु में जंग लग जाता है।

४. कठोरतम चट्टानों से निर्मित पहाड़ भी धूप, पानी और रेत के कणों, वायु तथा कंकरों के प्रभाव से शनैः शनैः टूटता है, उसमें दरारें पड़ जाती हैं और वह घिस-पिटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में और अंततः बालू में परिणत हो जाता है।

इन उदाहरणों में हम भूतद्रव्य की गति के विविध रूपों ( यांत्रिक, भौतिक, रासायनिक और तथाकथित भूवैज्ञानिक जो कि वास्तव में इन्हीं तीनों का सम्मेल है ) को देखते हैं।

पहले उदाहरण में में गेंद का सरल विस्थापन होता है। इस परावर्तन का विषयी ( गेंद ) स्वयं परिवर्तित नहीं होता। अन्य तीन उदाहरणों में बाह्य क्रिया का विषयी ( एक प्राथमिक कण, लोहे की वस्तु, पहाड़ ) वस्तुगत कारकों के प्रभाव के प्रति एक निश्चित ढ़ंग से अनुक्रिया हे नहीं करता, बल्कि उनके असर से विखंड़ित होकर किसी अन्य वस्तु में परिवर्तित हो जाता है ( एक फ़ोटोन, जंग, बालू में )।

इन सारे मामलों में परावर्तन का विषयी, बाह्य प्रभाव के प्रति एक निश्चित ढ़ंग से अनुक्रिया करता है। उनके साथ होने वाले परिवर्तन, बाह्य प्रभाव के स्वभाव के अनुरूप होते हैं।

यदि लोहे की वस्तु को बिलियर्ड़ के बल्ले से ठोकर मारी गई होती, तो उस पर जंग नहीं लगती और हाथी दांत की गेंद को पानी में भिगोया गया होता, तो वह अपने स्थान से विस्थापित न होती। परावर्तन का विषयी बाहरी प्रभाव के प्रति कैसी अनुक्रिया करता है, यह केवल विषय के स्वभाव पर ही नहीं, बल्कि विषयी के अपने अनुगुणों पर, उसकी भौतिक, यांत्रिक और रासायनिक विशेषताओं पर भी निर्भर करता है।

अजैव जगत में परावर्तन के उपरोक्त सभी उदाहरण, विविध विज्ञानों के दृष्टिकोण से, पदार्थ की गति के भिन्न रूपों से की अभिव्यक्ति से संबंधित हैं। दर्शन के दृष्टिकोण से ये उदाहरण एक विशेषता से एकीकृत हैं, अर्थात यह कि विषयी, विषय के प्रभाव के प्रति एक खास ढ़ंग से अनुक्रिया करता है, यानि परावर्तन की प्रक्रिया में भाग लेता है।

इस तरह, यह या तो स्थान परिवर्तित करता है ( उदाहरण-१ ), या किसी अन्य वस्तु में परिवर्तित होते हुए गहन गुणात्मक परिवर्तन से होकर गुजरता है ( मूल कण प्रकाश के क्वांटमों में, लोहा जंग में, पहाड़ बालू-मिट्टी में )। परावर्तन के दौरान विषयी का विनाश या गुणात्मक रूपांतरण अजैव जगत में परावर्तन की लाक्षणिक विशेषता है।
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आज इतना ही।
अगली बार जैव जगत में संक्रमण के दौरान परावर्तन के रूपों के जटिलीकरण पर एक नज़र ड़ालेंगे, और थोड़ा विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।
आलोचनात्मक संवाद और जिज्ञासाओं का स्वागत है।

समय

2 टिप्पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

भूली हुयी भौतिकी याद हो आयी !

L.Goswami ने कहा…

जैव जगत में परावर्तन के विवेचन की प्रतीक्षा रहेगी.

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