शनिवार, 30 जुलाई 2016

वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उसके परिणाम - २

हे मानवश्रेष्ठों,

समाज और प्रकृति के बीच की अंतर्क्रिया, संबंधों को समझने की कोशिशों के लिए यहां पर प्रकृति और समाज पर एक छोटी श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और समाज की संरचना के अंतर्गत उसके परिणामों पर चर्चा  की थी, इस बार हम उसी चर्चा को आगे बढ़ाएंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के युग में प्रकृति और समाज
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उसके परिणाम - २
( scientific and technological progress and its consequences - 2 )

(२) मनुष्यजाति की एक सबसे महत्वपूर्ण भूमंडलीय समस्या है ऊर्जा के नये स्रोतों की रचना और उपयोग। अभी तक ऊर्जा तकनीक की प्रमुख उपलब्धि परमणु ऊर्जा को उपयोग में लाना रही है, परंतु इसमें कई ख़तरे और अंतर्विरोध निहित हैं। एक तरफ़, परमाणु ऊर्जा सस्ती बिजली हासिल करना और क़ुदरती ईंधन की बचत करना संभव बनाती है। दूसरी तरफ़, यह लगातार रेडियो सक्रिय प्रदूषण का ख़तरा पैदा कर रही है। किंतु इसमें कोई शक नहीं कि सबसे बड़ा ख़तरा नाभिकीय अस्त्रों के निर्माण में निहित है।

आधुनिक वैज्ञानिक खोजें यह उम्मीद बंधाती हैं कि निकट भविष्य में नियंत्रित तापनाभिकीय क्रिया उपलब्ध कर ली जायेगी, जिससे लगभग असीमित ऊर्जा संसाधनों की प्राप्ति होने की संभावना है। इससे अनेक खनिजों का संरक्षण करना तथा तेल, कोयला व प्राकृतिक गैस के उपयोग को केवल रासायनिक उद्योग तक ही सीमित रखना संभव हो जायेगा।

(३) आधुनिक रासायनिक उद्योग ऐसी नयी कृत्रिम सामग्री हासिल करना संभव बना रहा है, जो प्रकृति में नहीं पाये जाते। इनसे प्राकृतिक चमड़े, लकड़ी, रबर, ऊन तथा कुछ धातुओं, आदि को प्रतिस्थापित किया जा रहा है। रसायन के अनुप्रयोग ( application ) से अत्यंत कारगर उर्वरकों, दवाओं और कीटनाशी पदार्थों का उत्पादन हो रहा है। इन सबसे प्राकृतिक संपदा के बेहतर उपयोग को बढ़ावा मिल रहा है, कृषि की उत्पादकता बढ़ रही है और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार व उम्र में वृद्धि हो रही है। परंतु साथ ही रासायनिक अपशिष्ट ( waste ) वायुमंडल, जल, मिट्टी, सागर-तल को दूषित भी कर रहे हैं। सारे संसार में पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम पर विराट संसाधन लगाये जा रहे हैं।

(४) वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति अपशिष्टरहित तकनीकी की रचना करना संभव बना रही है। आधुनिक उद्योग और कृषि विज्ञान की उपलब्धियों के उपयोग से तकनीकी प्रक्रिया को इस तरह से व्यवस्थित कर सकते हैं कि जिससे उत्पादन जन्य अपशिष्ट वायुमंडल को दूषित करने के बजाय द्वितीयक कच्चे माल के रूप में फिर से उत्पादन चक्र में प्रविष्ट हो जाएंगे। जैव तकनीकी, रसायन का उपयोग तथा अपशिष्टरहित तकनीकी अनेक प्रकृति संरक्षण विधियों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है और साथ ही साथ मनुष्य के कृत्रिम निवास स्थल में उल्लेखनीय सुधार करने में मदद कर रही है।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय अविराम

शनिवार, 23 जुलाई 2016

वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उसके परिणाम - १

हे मानवश्रेष्ठों,

समाज और प्रकृति के बीच की अंतर्क्रिया, संबंधों को समझने की कोशिशों के लिए यहां पर प्रकृति और समाज पर एक छोटी श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति पर चर्चा  की थी, इस बार हम वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और समाज की संरचना के अंतर्गत उसके परिणामों पर बात शुरू करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के युग में प्रकृति और समाज
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उसके परिणाम - १
( scientific and technological progress and its consequences - 1 )

अब वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की सामान्य विशेषताओं व लक्षणॊं से परिचित होने के बाद हम पूछ सकते हैं कि क्या प्रकृति और समाज की अंतर्क्रिया ( interaction ), समसामयिक ( contemporary ) वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति पर निर्भर करती है और अगर ऐसा है, तो किस हद तक, और इसके परिणाम तथा नतीज़ों को सामाजिक-आर्थिक प्रणाली ( socio-economic system ) किस तरह निश्चित करती है?

वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की वज़ह से उत्पादक शक्तियों ( productive forces ) का तूफ़ानी विकास मनुष्य की शक्ति में बढ़ती कर रहा है। किंतु इस शक्ति का किस तरह से उपयोग हो रहा है? किसके लिए हो रहा है? मनुष्य की लगातार बढ़ती हुई शक्ति से कौन लाभ उठा रहा है? इस विचार-विमर्श को अधिक सारवान बनाने के लिए हमें इस प्रगति की मुख्य दशा-दिशाओं पर दृष्टिपात करना चाहिए।

(१) हम इसकी चर्चा कर चुके हैं कि किस तरह एक विशेष तकनीक, सूचना तकनीक, वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की समसामयिक अवस्था पर उत्पादन तथा प्रबंध के कार्यकलाप के उत्प्रेरक की निर्धारक भूमिका अदा करती है। अब मानवजाति ऐसे सुपर कंप्यूटर बनाने की क्षमता से संपन्न है जो दसियों अरब संक्रियाएं प्रति सेकंड कर सकते हैं और उनकी स्मृति दसियों लाखों पुस्तकों में विद्यमान सूचना के बराबर जानकारी का भंडारण करने में समर्थ है और उनका आकार भी निरंतर कमतर होता जा रहा है।

आज कृत्रिम मस्तिष्क की रचना करने का काम जारी है। कृत्रिम मस्तिष्क युक्त कंप्यूटर अत्यंत जटिल तार्किक युक्तियां ( logical arguments ) संपन्न करने में समर्थ होंगे और उनकी मदद से वैज्ञानिक अनुसंधान, मशीनों की डिज़ाइनिंग तथा उद्यमों तक की डिज़ाइनिंग करना संभव हो सकेगा। वे लचीली ( flexible ) तकनीकों का नियंत्रण करने में समर्थ होंगे। और शायद व्यक्तिगत कंप्यूटरों की मदद से आधुनिक घरेलू उत्पादन इकाइयां बनाना, श्रम की उत्पादकता में तीव्र बढ़ती करना और शिक्षण के स्वरूप को बदलना संभव हो सकेगा। बच्चों और वयस्कों को नयी सूचना को दसियों गुना अधिक तेज़ी से आत्मसात करने का अवसर मिल सकता है, केवल विशेषज्ञों को उपलब्ध ज्ञान करोड़ों लोगों के लिए सुलभ किया जा सकता है। लोगों की जीवन पद्धति और पारस्परिक संसर्ग बदल जायेंगे और भाषा की बाधाएं भंग हो जायेंगी। कोशिश की जा रही हैं कि कंप्यूटर वैज्ञानिक साहित्य और दस्तावेज़ों को एक भाषा से दूसरी में क़रीब-क़रीब मनुष्य की सहायता के बिना ही अनूदित कर लेंगे। मनुष्य की भाषा को समझने में तथा रंगों व त्रि-आयामी दृश्य को देखने में समर्थ नयी पीढ़ी के रोबोटों का विकास जारी है। इस सबके क्या परिणाम होंगे?

पूंजीवादी समाज में, यहां तक कि विकसित देशों में भी ऐसे लोगों की विशाल संख्या है जो वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादन क्रियाकलाप के बाहर कर दिये गये हैं। कुछः नये रोज़गार उत्पन्न होने के बावजूद रोबोटीकरण तथा कंप्यूटरीकरण के कारण बननेवाली बेरोज़गारों की फ़ौज लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी वज़ह यह है कि पूंजीवादी उद्यम, सूचना तकनीक को मुख्यतः मुनाफ़े कमाने का तरीक़ा समझते हैं। फलतः इस तकनीक के फैलाव के नकारात्मक परिणाम स्वयं कंप्यूटरों तथा रोबोटों के अनुप्रयोग ( application ) नहीं, बल्कि उनके पूंजीवादी उपयोग के दुष्परिणाम हैं। अतएव ज़रूरत इस बात की है कि इस वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के लक्ष्य को सर्वथा भिन्न बनाया जाये। इसका उपयोग मुनाफ़ा कमाने के अधीन नहीं, बल्कि मनुष्य और समाज के हित में नियोजित ( planned ) किया जाये। समाजवादी ढांचे के अंतर्गत नयी तकनीकों के विकास की योजनाएं इस तरह से बनायी जायें कि सारी श्रम समर्थ आबादी सामाजिक दृष्टि से उपयोगी काम करती रहे।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय अविराम

शनिवार, 16 जुलाई 2016

वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति क्या है? - २

हे मानवश्रेष्ठों,

समाज और प्रकृति के बीच की अंतर्क्रिया, संबंधों को समझने की कोशिशों के लिए यहां पर प्रकृति और समाज पर एक छोटी श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति पर चर्चा शुरू की थी, इस बार हम उस चर्चा का समापन करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के युग में प्रकृति और समाज
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति क्या है? - २
( what is scientific and technological progress - 2 )

किंतु आधुनिक अर्थ में तकनीक पद कोई भिन्न चीज़ है। इसकी विशिष्टता क्या है? बात यह है कि पिछले कुछ दशकों में हमें उन सब संसाधनों की सीमित प्रकृति का बोध हो गया है, जिन्हें मनुष्य अब तक इस्तेमाल करता रहा। प्राकृतिक, तकनीकी, ऊर्जा, खाद्य, भूमि के, मानवीय तथा वित्तीय संसाधन अत्यधिक, असंयमित उपयोग से समाप्त या नष्ट हो सकते हैं। इसके साथ ही विराट परिमाण में ऊर्जा तथा कच्चे माल व शक्तिशाली मशीनों का उपयोग करनेवाली नयी, शक्तिशाली उत्पादन प्रणालियों का विकास शुरू हो गया है। उत्पादन के ये सभी नये रूप मनुष्य की ज़रूरत के उपयोगी उत्पाद बनाने के साथ ही काफ़ी ज़्यादा अवांछित ( undesirable ) और हानिकारक फल भी उत्पन्न करते हैं। 

उदाहरण के लिए, परमाणविक बिजलीघरों का निर्माण जहां बड़े पैमाने पर सस्ती बिजली हासिल करना, तेल व कोयले की बचत करना संभव बनाता है, वहां इससे रेडियो सक्रिय अपशिष्ट ( waste ) भी बनते हैं और मनुष्य तथा प्रकृति दोनों के लिए ख़तरनाक रेडियो सक्रियता बढ़ जाती है। बड़े रासायनिक कारख़ाने मानव जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिए मूल्यवान सामग्री व अन्य चीज़ों का उत्पादन करते हैं, लेकिन उनसे उत्पन्न होनेवाले अपशिष्टों को विशाल इलाक़ों में जमा कर दिया जाता है या नदियों में डाल दिया जाता है, उनसे ज़मीन और पानी दूषित हो जाते हैं जिससे मनुष्यों और जानवरों के लिए भारी ख़तरा पैदा हो जाता है।  इन सारे तथा अन्य अवांछित परिणामों से बचने के लिए, अपशिष्ट रहित उद्योग का निर्माण करने और स्वयं औद्योगिक अपशिष्टों को पुनर्प्रयोज्य ( re-usable ) सामग्री में रूपांतरित करने तथा नये उत्पादन चक्रों में इस्तेमाल करने के लिए हमारे लिए ज़रूरी है कि तकनीक को ही बदला जाये। अतः अब लोग महज़ नयी मशीनों और उपकरणों के बजाय नयी तकनीक की बातें करते हैं।

नई तकनीकों का विकास हर प्रकार के प्राकृतिक तथा सामाजिक संसाधनों के अधिकतम किफ़ायती ( economic ) उपयोग के ज़रिये समाज और उत्पादन के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों की स्थापना में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इन तकनीकों में सबसे महत्वपूर्ण सूचना तकनीक ( information technology ) है जो अन्य सब पर निर्धारक प्रभाव डाल रही है। इसमें शामिल हैं प्रति सेकंड खरबों संक्रियाएं ( operations ) करने में समर्थ तथा विराट स्मृति ( memory ) से संपन्न आधुनिक कंप्यूटरों का डिज़ाइन बनाना तथा निर्माण करना, ऐसे माइक्रोप्रोसेसर बनाना जो कंप्यूटरों को संहत ( compact ) बनाते हैं, हर प्रकार के कार्यक्रम लिखना और ऐसी विशेष कार्यक्रमीय भाषाओं ( programming languages ) का विकास, जो सूचना के भंडारण, प्रोसेसिंग, पुनर्प्राप्ति ( retrieval ) तथा निबटान ( disposal ) से संबंधित अत्यंत जटिल समस्याओं के समाधान को सुविधापूर्ण बना देती है। इसकी वज़ह से सूचना तकनीक, वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की एक नयी तकनीकी अवस्था का मूलाधार और उत्प्रेरक बनती जा रही है और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक शक्तिशाली क्रांतिकारी कारक ( factor ) में तब्दील होती जा रही है। 

इसका महत्व लगातार बढ़ रहा हैं, क्योंकि यह संसाधनों का एक ही ऐसा प्रकार है, जिसे मानवजाति अपने ऐतिहासिक विकास के दौरान ख़र्च नहीं करती, बल्कि इसके विपरीत उसे संवर्द्धित करती और बढ़ाती रहती है। यही नहीं, वैज्ञानिक सूचना के परिमाण की, प्रकृतिवैज्ञानिक, तकनीकी तथा मानवीय ज्ञान के सारे प्रकारों सहित वृद्धि, उन सारे ख़तरों को मिटाने की बुनियाद डाल रही है जिनका जिक्र निराशावादी और आशावादी के संवाद में किया गया है। एक ऐसी संभावना भी प्रकट हो रही है, जिससे उन संसाधनों को संरक्षित ही नहीं, बल्कि नवीकरण ( restoring ) तथा संवर्द्धित भी किया जा सकेगा, जिन्हें मनुष्यजाति ने अब तक इतने अविवेकपूर्ण ढंग से बर्बाद किया है। परंतु इस संभावना को व्यावहारतः कार्यान्वित करने के लिए कुछ विशेष दशाओं तथा निश्चित प्रकार के सामाजिक विकास की दरकार है

सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सभी प्रक्रियाओं की तरह वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति भी जटिल और अंतर्विरोधी ( contradictory ) है। सरल, असंदिग्ध समाधान ख़ुद-ब-ख़ुद हासिल नहीं होते। यह प्रगति, प्रकृति और समाज के बीच संबंधों में एक नयी अवस्था है। वैज्ञानिक-तकनीकी क्रांति की पृष्ठभूमि में श्रम प्रक्रिया, अधिकाधिक नयी प्राकृतिक संपदा, ऊर्जा साधनों, पृथ्वी के अविकसित भूक्षेत्रों, विश्व महासागरों और अंतरिक्ष से भी संबंधित होती है। इसलिए दो सर्वथा विरोधी संभावनाएं प्रकट हो रही हैं। इनमें से एक प्रकृति व समाज के बीच अधिकाधिक अंतर्विरोधों की तरफ़ ले जाती है; और दूसरी उनके बीच मूलतः नयी अंतर्क्रिया ( interaction ) की, उनके बीच अधिक सामंजस्यपूर्ण संबंधों तथा सर्वाधिक कठिन अंतर्विरोधों के उन्मूलन ( elimination ) की ओर ले जाती है। इनमें से कौनसी संभावना ऊपर उभरेगी तथा वास्तविकता बनेगी - यह प्रश्न भूमंडलीय पैमाने पर समाज के आमूल सामाजिक रूपांतरणों ( radical social transformations ) पर निर्भर है।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय अविराम

शनिवार, 9 जुलाई 2016

वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति क्या है? - १

हे मानवश्रेष्ठों,

समाज और प्रकृति के बीच की अंतर्क्रिया, संबंधों को समझने की कोशिशों के लिए यहां पर प्रकृति और समाज पर एक छोटी श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने मनुष्य के कृत्रिम निवास स्थल पर चर्चा की थी, इस बार से हम वर्तमान वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के युग में प्रकृति और समाज के संबंधो को समझने की कोशिश शुरू करेंगे और इसी क्रम में आज देखेंगे कि वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति से क्या तात्पर्य है

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के युग में प्रकृति और समाज
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति क्या है? - १
( what is scientific and technological progress - 1 )

आज भौतिक संपदा का उत्पादन तथा सेवा क्षेत्र इतनी तेज़ी से विकसित हो रहे हैं कि उत्पादित वस्तुओं की क़िस्में तथा उन्हें बनाने की तकनीक और लोगों की उत्पादन कुशलताएं एक ही पीढ़ी में तीव्रता से बदल जाती है। पूर्ववर्ती अवस्थाओं में से अनेक में स्थिति नितांत भिन्न थी। एक ही उत्पाद को तैयार करने के लिए एक ही तकनीक को कई पीढ़ियों तक इस्तेमाल किया जाता था और पीढ़ी-दर-पीढी काम के संगठन की एक ही विधि का उपयोग होता था। तकनीक में द्रुत ( rapid ) परिवर्तन के साथ होनेवाले उत्पादन के वर्तमान रूप को, वस्तुओं के उत्पादन के पारंपरिक रूप के विपरीत, अनवरत वैज्ञानिक-तकनीकी क्रांति कहा जा सकता है। इस अक्सर वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति भी कहा जाता है। इसके विशिष्ट लक्षण क्या हैं?

सबसे पहले यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उत्पादन में विज्ञान निर्णायक शक्ति और निर्धारक कारक है। पहले भी उत्पादक शक्तियों ( productive forces ) की रचना करनेवाले लोगों का ज्ञान और अनुभव, औज़ारों को और उत्पादन क्रिया को परिष्कृत बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रेरक हुआ करता था, किंतु ज्ञान और अनुभव स्वयं उत्पादन के स्वीकृत और स्थापित रूपों और विधियों के सामान्यीकरण ( generalization ) हुआ करते थे। उत्पादन की नयी खोजें तथा अविष्कार विरल घटनाएं थीं। यहां तक कि जब आधुनिक विज्ञान का उद्‍भव होना शुरू हुआ, तो भौतिक उत्पादन - उद्योग और कृषि - की निर्णायक भूमिका थी।

विज्ञान मुख्य रूप से व्यवहार की मांगों तथा अपेक्षाओं का जवाब देने का प्रयत्न करता था, किंतु यह काम हमेशा पूरा नहीं कर पाता था क्योंकि विज्ञान के विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में ज्ञान का संचय और परिष्करण बेहद मंद गति से होता था। २०वीं सदी के मध्य में इस स्थिति में आमूल परिवर्तन हो गया। ज्ञान के परिमाण में विराट बढ़ती हुई और यह बढ़ती तूफ़ानी वेग से जारी है। साठोत्तरी दशक के अंत और सत्तरोत्तरी दशक के प्रारंभ में वैज्ञानिक ज्ञान का परिमाण प्रति पांच-सात वर्षों में दो गुना होने लगा। अब यह लगभग हर साल दो गुना होता जाता है। इसकी वज़ह से स्वयं विज्ञान, उत्पादन का एक बहुत महत्वपूर्ण प्रेरक बल बन गया है। यह वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति का पहला विशिष्ट लक्षण है।

दूसरा विशिष्ट लक्षण यह है कि प्रकृति के गहनतम रहस्यों की खोज पर आधारित बुनियादी अन्वेषण ( research ) की भूमिका लगातार बढ़ रही है। नये प्रकार के उत्पाद व तकनीक, सतर्कतापूर्ण वैज्ञानिक प्रमाणन ( substantiation ) की मांग करते हैं और विज्ञान के सर्वाधिक जटिल बुनियादी नियमों पर आधारित हैं। मसलन, परमाणु ऊर्जा के उपयोग, जीन इंजीनियरी, कृत्रिम भूउपग्रहों, मूलतः नयी सामग्रियों, आदि की याद कीजिये। इनमें से किसी को भी मात्र पूर्ववर्ती अनुभव के आधार पर नहीं रचा जा सकता था, उनके लिए बुनियादी वैज्ञानिक ज्ञान की ज़रूरत थी।

तीसरा लक्षण यह है कि किसी वैज्ञानिक खोज या अविष्कार के होने तथा उद्योग में उसका उपयोग करने के बीच का समयांतराल घटता जा रहा है। जहां पहले नये वैज्ञानिक-तकनीकी विचारों के फैलाव तथा कार्यान्वयन में दसियों वर्ष नहीं, सदियों तक लग जाती थी, वहां अब यह अंतराल चंद वर्षों और यहां तक कि चंद महिनों में नापा जाता है।

अंतिम और चौथा विशिष्ट लक्षण पिछले कुछ वर्षों में वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की एक नयी अवस्था में संक्रमण ( transition ) से संबद्ध है। पारंपरिक उत्पादन में तकनीक क्या है? उत्पादन की किसी भे प्रक्रिया में केवल औज़ार, मशीनें, यांत्रिक विधियां ही आवश्यक नहीं हैं, बल्कि कार्य प्रक्रिया को सही ढंग से संगठित ( organize ) करना भी ज़रूरी है। इसके लिए यह निर्धारित करने में समर्थ होना महत्वपूर्ण है कि ठीक कौनसी संक्रिया ( operation ) कब संपन्न की जाये तथा किस क्रम में की जाये और विभिन्न संक्रियाएं किस रफ़्तार से की जानी चाहिए तथा अमुक-अमुक उत्पाद के विनिर्माण ( manufacturing ) में विभिन्न उपकरणों, यंत्रों और मध्यवर्ती अवस्थाओं द्वारा क्या अपेक्षाएं पूरी की जानी चाहिए। समुचित ज्ञान सहित इन सबको समग्र रूप में तकनीक कहा जाता है



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय अविराम
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