हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में लक्ष्य और धारण अवधि के अनुसार स्मृति के भेदों पर विचार किया था, इस बार हम स्मृति की प्रक्रियाओं पर चर्चा करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में लक्ष्य और धारण अवधि के अनुसार स्मृति के भेदों पर विचार किया था, इस बार हम स्मृति की प्रक्रियाओं पर चर्चा करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
स्मृति की प्रक्रियाएं
( memory processes )
( memory processes )
जब हम स्मृति को किसी शीर्ष के अंतर्गत वर्गीकृत करते हैं, तो हम स्मृति के निश्चित स्थिर गुणधर्मों और पहलुओं को इसके लिए आधार बनाते हैं, चाहे सक्रियता में उनकी भूमिका सामग्री के स्थायीकरण ( स्मरण ), धारण या प्रत्यास्मरण ( पुनर्प्रस्तुति ) में से कोई भी क्यों न हो। वहीं स्मृति की प्रक्रियाओं के वर्गीकरण के लिए मनुष्य के जीवन और सक्रियता में स्मृति द्वारा संपन्न किये जानेवाले प्रकार्यों ( functions ) को कसौटी बनाया जाता है। स्मृति की प्रक्रियाएं निम्न हैं : सामग्री का स्मरण ( memorization) ( याद करना, स्मृति में अंकन अथवा स्थायीकरण करना ), पुनर्प्रस्तुति ( retrieval, recall ) ( प्रत्यास्मरण, नवीकरण ), धारण ( hold )( याद रखे रहना ) और विस्मरण ( oblivion ) ( भुला देना )। उपरोक्त प्रक्रियाएं स्पष्टतः दिखाती हैं कि स्मृति सक्रियता से घनिष्ठतः संबद्ध है और उसकी क्रियाएं स्वतंत्र क्रियाओं के रूप में संपन्न होती हैं।
स्मृति की विभिन्न प्रक्रियाओं की तुलना उनके प्रकटतः विरोधी प्रकार्यों को तुरंत स्पष्ट कर देती हैं। फिर भी इन प्रक्रियाओं को उनकी एकता में देखा जाना चाहिए। उनकी यह एकता उनके स्पष्ट बाह्य संबंध और अन्योन्यनिर्भरता ( mutual dependence ) में ही नहीं दिखाई देती ( उदाहरण के लिए, पुनर्प्रस्तुति संबंधी विशेषताएं काफ़ी हद तक सामग्री के स्मरण, धारण और विस्मरण के विशिष्ट स्वरूप से निर्धारित होती हैं ), बल्कि उसे विभिन्न प्रक्रियाओं की परस्पर-व्याप्ति ( mutually penetrant ) तथा एक प्रक्रिया के दूसरी प्रक्रिया में द्वंद्वात्मक संक्रमण ( dialectical transition ) जैसे संबंधों में भी देखा जा सकता है।
नवीकरण ( renewal ) की प्रक्रिया सामग्री का स्वचालित पठन मात्र नहीं है, अपितु सामग्री का सचेतन गठन और यहां तक कि पुनर्गठन भी है। इसलिए पुनर्प्रस्तुति की प्रक्रिया में अनिवार्यतः अल्पकालिक स्मरण और धारण की प्रक्रियाएं भी शामिल रहती हैं। इतना ही नहीं, पुनर्प्रस्तुति की प्रक्रिया सदा दीर्घकालिक स्मरण के साथ चलती है। सामग्री का सारकथन वास्तव में उसकी पुनर्प्रस्तुति ही है, हालांकि यह इसके सीखने की एक प्रक्रिया भी है।
स्मृति की विभिन्न प्रक्रियाओं की तुलना उनके प्रकटतः विरोधी प्रकार्यों को तुरंत स्पष्ट कर देती हैं। फिर भी इन प्रक्रियाओं को उनकी एकता में देखा जाना चाहिए। उनकी यह एकता उनके स्पष्ट बाह्य संबंध और अन्योन्यनिर्भरता ( mutual dependence ) में ही नहीं दिखाई देती ( उदाहरण के लिए, पुनर्प्रस्तुति संबंधी विशेषताएं काफ़ी हद तक सामग्री के स्मरण, धारण और विस्मरण के विशिष्ट स्वरूप से निर्धारित होती हैं ), बल्कि उसे विभिन्न प्रक्रियाओं की परस्पर-व्याप्ति ( mutually penetrant ) तथा एक प्रक्रिया के दूसरी प्रक्रिया में द्वंद्वात्मक संक्रमण ( dialectical transition ) जैसे संबंधों में भी देखा जा सकता है।
नवीकरण ( renewal ) की प्रक्रिया सामग्री का स्वचालित पठन मात्र नहीं है, अपितु सामग्री का सचेतन गठन और यहां तक कि पुनर्गठन भी है। इसलिए पुनर्प्रस्तुति की प्रक्रिया में अनिवार्यतः अल्पकालिक स्मरण और धारण की प्रक्रियाएं भी शामिल रहती हैं। इतना ही नहीं, पुनर्प्रस्तुति की प्रक्रिया सदा दीर्घकालिक स्मरण के साथ चलती है। सामग्री का सारकथन वास्तव में उसकी पुनर्प्रस्तुति ही है, हालांकि यह इसके सीखने की एक प्रक्रिया भी है।
धारण और विस्मरण की प्रक्रियाओं का एक ही ढंग से विश्लेषण किया जा सकता है, बेशक हम उन्हें प्रक्रियाओं के तौर पर लें। इस तरह धारण को स्मृति में संचित सामग्री के मनुष्य की सक्रियता में भाग लेने का कार्य समझा जा सकता है। यह सहभागिता अचेतन हो सकती है, किंतु मनुष्य की हर क्रिया हमेशा उसके जीवन के अनुभव से प्रभावित होती है। इस दृष्टि से सामग्री के किसी अंश को भूलने का मतलब, उसका मनुष्य की सक्रियता से हट जाना है। दूसरे शब्दों में, विस्मरण कभी पूर्ण नहीं होता। मनोवैज्ञानिकतः इसका मतलब यही है कि मस्तिष्क में स्थित किसी सामग्री को अल्पकालिक स्मृति के क्षेत्र में अंतरित करने में कठिनाई पैदा हुई है ( या यह असंभव बन गया है )। सामान्य भाषा में हम भूलने की अवधारणा को इस विस्मृति की मात्रा के अर्थ में ही इस्तेमाल करते हैं। फिर भी एक प्रक्रिया के रूप में विस्मरण मूलतः तब शुरू होता है, जब कर्ता का ध्यान किसी अन्य वस्तु की ओर हट जाता है। वस्तु ‘क’ से कर्ता के ध्यान का हटकर वस्यु ‘ख’ पर टिकने का मतलब एक तरह से वस्तु ‘क’ को भूलना है।
हम इसलिए न सिर्फ़ उसे भूल जाते हैं जिसे पुनर्प्रस्तुत करना कठिन या असंभव है, बल्कि अपने अनुभव की उस अंतर्वस्तु ( content ) को भी विस्मृत कर डालते हैं, जो दत्त क्षण में हमारी चेतना में नहीं है या जिसका हमें अहसास नहीं है। इस तरह विस्मरण, स्मृति की प्रक्रियाओं समेत सभी मानसिक प्रक्रियाओं का एक पहलू है। किसी वस्तु पर चेतना के टिकने की प्रक्रिया के तौर पर स्मरण में भी अनिवार्यतः किसी सामग्री का अस्थायी विस्मरण शामिल रहता है। यह परस्पर-विपरीत स्मृति-प्रक्रियाओं की एकता की एक अभिव्यक्ति है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि स्मृति एक अत्यंत जटिल, किंतु समेकित ( consolidated ) तथा अविच्छिन्न प्रक्रिया है। चेतना की ऐसी कोई अवस्था नहीं है कि जिसमें स्मृति की कोई न कोई भूमिका न हो।
स्मृति की प्रक्रियाएं, मनुष्य की सक्रियता और उसकी निश्चित लक्ष्यों के प्रति अभिमुखता ( orientation ) पर निर्भर होती हैं। अलग-अलग स्मृति-प्रक्रियाओं के साधारण विश्लेषण में हम उनके जटिल द्वंद्वात्मक संबंधों को अनदेखा कर देते हैं और किसी एक प्रक्रिया को समग्रता में समझने के लिए उसके मुख्य लक्षणों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं।
हम इसी पद्धति से स्मृति की एक प्रक्रिया स्मरण की अगली बार से थोड़ा विस्तार से विवेचना करेंगे।
हम इसलिए न सिर्फ़ उसे भूल जाते हैं जिसे पुनर्प्रस्तुत करना कठिन या असंभव है, बल्कि अपने अनुभव की उस अंतर्वस्तु ( content ) को भी विस्मृत कर डालते हैं, जो दत्त क्षण में हमारी चेतना में नहीं है या जिसका हमें अहसास नहीं है। इस तरह विस्मरण, स्मृति की प्रक्रियाओं समेत सभी मानसिक प्रक्रियाओं का एक पहलू है। किसी वस्तु पर चेतना के टिकने की प्रक्रिया के तौर पर स्मरण में भी अनिवार्यतः किसी सामग्री का अस्थायी विस्मरण शामिल रहता है। यह परस्पर-विपरीत स्मृति-प्रक्रियाओं की एकता की एक अभिव्यक्ति है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि स्मृति एक अत्यंत जटिल, किंतु समेकित ( consolidated ) तथा अविच्छिन्न प्रक्रिया है। चेतना की ऐसी कोई अवस्था नहीं है कि जिसमें स्मृति की कोई न कोई भूमिका न हो।
स्मृति की प्रक्रियाएं, मनुष्य की सक्रियता और उसकी निश्चित लक्ष्यों के प्रति अभिमुखता ( orientation ) पर निर्भर होती हैं। अलग-अलग स्मृति-प्रक्रियाओं के साधारण विश्लेषण में हम उनके जटिल द्वंद्वात्मक संबंधों को अनदेखा कर देते हैं और किसी एक प्रक्रिया को समग्रता में समझने के लिए उसके मुख्य लक्षणों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं।
हम इसी पद्धति से स्मृति की एक प्रक्रिया स्मरण की अगली बार से थोड़ा विस्तार से विवेचना करेंगे।
इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
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