हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में चिंतन के सामाजिक स्वरूप पर चर्चा की थी, इस बार हम चिंतन के कुछ विशिष्ट नियमों विश्लेषण और संश्लेषण पर विचार करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में चिंतन के सामाजिक स्वरूप पर चर्चा की थी, इस बार हम चिंतन के कुछ विशिष्ट नियमों विश्लेषण और संश्लेषण पर विचार करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
विश्लेषण और संश्लेषण
( analysis and synthesis )
संक्रियात्मक दृष्टि से चिंतन तार्किक संक्रियाओं ( logical operations ) की एक पद्धति है, जिनमें से प्रत्येक संक्रिया, संज्ञान ( cognition ) की प्रक्रिया में एक निश्चित भूमिका अदा करती है और अत्यंत जटिल ढ़ंग से अन्य संक्रियाओं - विश्लेषण ( analysis ), संश्लेषण (synthesis ) तथा सामान्यीकरण ( generalization ) - आदि से जुड़ी होती है।
विश्लेषण वस्तु का उसके विभिन्न घटकों में विभाजन और उसके विभिन्न पहलुओं, तत्वों, गुणधर्मों, संबंधों, आदि का समष्टि ( collectivity, totality ) से अपाकर्षण ( abstraction, अमूर्तकरण ) करने को कहते हैं। उदाहरण के लिए, किसी मशीन या यंत्र के काम करने के सिद्धांत को जानने के लिए हम पहले उसके विभिन्न घटकों, पुर्जों की पहचान करते हैं और फिर उसे अलग-अलग हिस्सों में बांटकर देखते हैं। संज्ञान की हर प्रक्रिया में हर वस्तु के साथ भी हम मुख्य रूप से ऐसे ही करते हैं।
विश्लेषण के दौरान वस्तु के गुणधर्म, जो उसके सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, आवश्यक और दिलचस्प गुणधर्म है, अत्यंत प्रबल क्षोभक सिद्ध होते हैं और इसलिए वे प्रमुख बन बैठते हैं। ये क्षोभक उत्तेजन ( stimulation, excitation ) की सक्रिय प्रक्रिया आरंभ करते हैं ( विशेषतः प्रांतस्था में ) और प्रेरण के शरीरक्रियात्मक नियम के अनुसार उस वस्तु के अन्य गुणधर्मों के, जो दुर्बल क्षोभक हैं, विभेदन ( discrimination ) को अवरुद्ध कर डालते हैं। अतः मस्तिष्क के उच्चतर भागों में उत्तेजन और अवरोधन के बीच एक निश्चित संबंध विश्लेषण की मानसिक प्रक्रिया की नींव है।
संश्लेषण, विश्लेषण द्वारा अलग-अलग किये गये भागों से समष्टि के, पूर्ण के निर्माण को कहते हैं। संश्लेषण की प्रक्रिया में वस्तु के अलग किये हुए तत्वों का समेकन ( consolidation ) और सहसंबंधन ( correlation ) किया जाता है। उदाहरण के लिए, मशीन या यंत्र के विभिन्न पुर्जों को आपस में मिलान करके उनके बीच मौजूद संबंध और उनकी अन्योन्यक्रिया का ढ़ंग मालूम किये जा सकते हैं। संश्लेषण का शरीरक्रियात्मक आधार प्रांतस्था के कालगत तंत्रिका-संबंधों का आपस में जुड़ना है।
विश्लेषण और संश्लेषण सदा अन्योन्याश्रयी ( interdependent ) होते हैं। उनकी एकता अपने को सहसंबंधन की संज्ञानात्मक प्रक्रिया में ही प्रकट कर देती है। बाह्य विश्व के संज्ञान की आरंभिक अवस्था में मनुष्य मुख्यतया तुलना ( comparison ) के ज़रिए विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करता है। दो या कई वस्तुओं की हर तुलना उन्हें एक दूसरी से संबद्ध ( relate ) करने, यानि संश्लेषण से आरंभ होती है। इस संक्रिया के दौरान मनुष्य संबंद्ध परिघटनाओं, वस्तुओं, घटनाओं, आदि का विश्लेषण करता है, अर्थात वह पता चलाता है कि उनके बीच क्या समान है और क्या असमान। उदाहरण के लिए, बच्चा विभिन्न स्तनपायी जीवों की तुलना करता है और शिक्षक की मदद से शनैः शनैः उनकी समान विशेषताओं को पहचानना सीखता है। इस तरह तुलना सामान्यीकरण की ओर ले जाती है।
विश्लेषण वस्तु का उसके विभिन्न घटकों में विभाजन और उसके विभिन्न पहलुओं, तत्वों, गुणधर्मों, संबंधों, आदि का समष्टि ( collectivity, totality ) से अपाकर्षण ( abstraction, अमूर्तकरण ) करने को कहते हैं। उदाहरण के लिए, किसी मशीन या यंत्र के काम करने के सिद्धांत को जानने के लिए हम पहले उसके विभिन्न घटकों, पुर्जों की पहचान करते हैं और फिर उसे अलग-अलग हिस्सों में बांटकर देखते हैं। संज्ञान की हर प्रक्रिया में हर वस्तु के साथ भी हम मुख्य रूप से ऐसे ही करते हैं।
विश्लेषण के दौरान वस्तु के गुणधर्म, जो उसके सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, आवश्यक और दिलचस्प गुणधर्म है, अत्यंत प्रबल क्षोभक सिद्ध होते हैं और इसलिए वे प्रमुख बन बैठते हैं। ये क्षोभक उत्तेजन ( stimulation, excitation ) की सक्रिय प्रक्रिया आरंभ करते हैं ( विशेषतः प्रांतस्था में ) और प्रेरण के शरीरक्रियात्मक नियम के अनुसार उस वस्तु के अन्य गुणधर्मों के, जो दुर्बल क्षोभक हैं, विभेदन ( discrimination ) को अवरुद्ध कर डालते हैं। अतः मस्तिष्क के उच्चतर भागों में उत्तेजन और अवरोधन के बीच एक निश्चित संबंध विश्लेषण की मानसिक प्रक्रिया की नींव है।
संश्लेषण, विश्लेषण द्वारा अलग-अलग किये गये भागों से समष्टि के, पूर्ण के निर्माण को कहते हैं। संश्लेषण की प्रक्रिया में वस्तु के अलग किये हुए तत्वों का समेकन ( consolidation ) और सहसंबंधन ( correlation ) किया जाता है। उदाहरण के लिए, मशीन या यंत्र के विभिन्न पुर्जों को आपस में मिलान करके उनके बीच मौजूद संबंध और उनकी अन्योन्यक्रिया का ढ़ंग मालूम किये जा सकते हैं। संश्लेषण का शरीरक्रियात्मक आधार प्रांतस्था के कालगत तंत्रिका-संबंधों का आपस में जुड़ना है।
विश्लेषण और संश्लेषण सदा अन्योन्याश्रयी ( interdependent ) होते हैं। उनकी एकता अपने को सहसंबंधन की संज्ञानात्मक प्रक्रिया में ही प्रकट कर देती है। बाह्य विश्व के संज्ञान की आरंभिक अवस्था में मनुष्य मुख्यतया तुलना ( comparison ) के ज़रिए विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करता है। दो या कई वस्तुओं की हर तुलना उन्हें एक दूसरी से संबद्ध ( relate ) करने, यानि संश्लेषण से आरंभ होती है। इस संक्रिया के दौरान मनुष्य संबंद्ध परिघटनाओं, वस्तुओं, घटनाओं, आदि का विश्लेषण करता है, अर्थात वह पता चलाता है कि उनके बीच क्या समान है और क्या असमान। उदाहरण के लिए, बच्चा विभिन्न स्तनपायी जीवों की तुलना करता है और शिक्षक की मदद से शनैः शनैः उनकी समान विशेषताओं को पहचानना सीखता है। इस तरह तुलना सामान्यीकरण की ओर ले जाती है।
सामान्यीकरण विभिन्न वस्तुओं की तुलना और विश्लेषण का परिणाम है। सामान्यीकरण से तुलनागत वस्तुओं की साझी विशेषताओं का अपाकर्षण किया जाता है। ये विशेषताएं दो प्रकार की हो सकती हैं : साम्यमूलक ( similarity based ) और बुनियादी ( basic )। उदाहरण के लिए, हम ऐसी कोई चीज़ पा सकते हैं, जो बहुत विविध वस्तुओं में देखी जाती है। जैसे कि, साझे रंग को कसौटी बना कर हम चेरी के फूल, रक्त, कच्चे मांस, आदि को एक समूह या श्रेणी में शामिल कर सकते हैं। फिर भी यह समानता ( साझी विशेषता ) उपरोक्त वस्तुओं के वास्तव में बुनियादी गुणधर्मों को प्रतिबिंबित नहीं करती। दत्त प्रसंग में उनकी समानता बहुत ही सतही और गौण विशेषता पर आधारित है। ऐसे उथले, सतही विश्लेषण के आधार पर किये गए सामान्यीकरण बहुत कम मूल्य रखते हैं और निरंतर ग़लतियों का कारण बनते हैं। उदाहरण के लिए, ह्वेल की बाह्य विशेषताओं के सतही विश्लेषण पर आधारित सामान्यीकरण से हमें भ्रम हो सकता है कि ह्वेल स्तनपायी जीव नहीं, बल्कि मछली है। इन जीवों की ऊपर बताये ढ़ंग से तुलना करके हम साम्यमूलक लक्षणों ( बाह्य आकृति, मछली जैसा शरीर ) के आधार पर वर्गीकरण करते हैं, न कि बुनियादी लक्षणों के आधार पर। इसके विपरीत यदि हम विश्लेषण के ज़रिए उन विशेषताओं का पता लगाएं, जो बुनियादी हैं, तो हम निश्चय ही ह्वेल को स्तनपायी जीवों में शामिल करेंगे।
इस तरह सभी समजातीय वस्तुओं में साझी बुनियादी विशेषता होती है, किंतु हर साझी साम्यमूलक विशेषता का बुनियादी विशेषता भी होना अनिवार्य नहीं है। साझी बुनियादी विशेषताओं के गहन विश्लेषण तथा संश्लेषण के दौरान और उनके परिणामस्वरूप ही पहचाना जा सकता है।
विश्लेषण, संश्लेषण और सामान्यीकरण के नियम चिंतन के मुख्य विशिष्ट नियम हैं और केवल उनके आधार पर ही उसकी सभी बाह्य अभिव्यक्तियों की व्याख्या की जा सकती है।
इस तरह सभी समजातीय वस्तुओं में साझी बुनियादी विशेषता होती है, किंतु हर साझी साम्यमूलक विशेषता का बुनियादी विशेषता भी होना अनिवार्य नहीं है। साझी बुनियादी विशेषताओं के गहन विश्लेषण तथा संश्लेषण के दौरान और उनके परिणामस्वरूप ही पहचाना जा सकता है।
विश्लेषण, संश्लेषण और सामान्यीकरण के नियम चिंतन के मुख्य विशिष्ट नियम हैं और केवल उनके आधार पर ही उसकी सभी बाह्य अभिव्यक्तियों की व्याख्या की जा सकती है।
इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
1 टिप्पणियां:
भाषा थोड़ी संस्कृतनिष्ठ ज्यादा है, समझने में दिक्कत हो रही है।
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