हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में कल्पना पर चल रही चर्चा में कल्पना और खेल पर बात की थी, इस बार हम कलात्मक तथा वैज्ञानिक सृजन में कल्पना पर विचार करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में कल्पना पर चल रही चर्चा में कल्पना और खेल पर बात की थी, इस बार हम कलात्मक तथा वैज्ञानिक सृजन में कल्पना पर विचार करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
कलात्मक तथा वैज्ञानिक सृजन में कल्पना
( imagination in artistic and scientific creation )
( imagination in artistic and scientific creation )
कल्पना, कला तथा साहित्य से संबंधित सृजनात्मक सक्रियता ( creative activity ) का एक आवश्यक अंग है। कलाकार या साहित्यकार की सक्रियता में भाग लेने वाली कल्पना अत्यधिक संवेगात्मक होती है। साहित्यकार के मस्तिष्क में उभरा बिंब, स्थिति अथवा घटनाओं का अप्रत्याशित ( unexpected ) मोड़ एक तरह के ‘संघनित्र’ ( condenser ) से, यानि सृजनशील व्यक्तित्व के संवेगात्मक क्षेत्र से गुजरता है। कुछ निश्चित भावनाएं अनुभव करके और उन्हें कलात्मक बिंबों में ढ़ालकर साहित्यकार, कलाकार और संगीतकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं को भी वैसा ही दुख या आह्लाद अनुभव करने को बाध्य करते हैं। कुछ महान साहित्यकारों, कलाकारों और संगीतकारों की रचनाएं, उनमें व्यक्त उद्दाम भावनाओं ( boisterous emotions ) को, लंबे समय तक उनसे साबका रखने वाले व्यक्तियों में जगाती रहती हैं।
कुछ रचनाकार काल्पनिक स्थितियों को बड़ी उत्कटता ( intensity ) से अनुभव करते हैं और उनके पात्र जिन-जिन अनुभूतियों ( feelings ) से गुज़रते हैं, उनसे वे स्वयं भी अप्रभावित नहीं रहते। बेशक साहित्यकार का अपने कार्य के दौरान ऐसे निश्छल अनुभवों से गुज़रना साधारण बात नहीं है, फिर भी कलात्मक सृजन में कल्पना और गूढ़ मानवीय संवेगों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
कुछ रचनाकार काल्पनिक स्थितियों को बड़ी उत्कटता ( intensity ) से अनुभव करते हैं और उनके पात्र जिन-जिन अनुभूतियों ( feelings ) से गुज़रते हैं, उनसे वे स्वयं भी अप्रभावित नहीं रहते। बेशक साहित्यकार का अपने कार्य के दौरान ऐसे निश्छल अनुभवों से गुज़रना साधारण बात नहीं है, फिर भी कलात्मक सृजन में कल्पना और गूढ़ मानवीय संवेगों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
वैज्ञानिक खोजों के इतिहास में कल्पना द्वारा शोध-कार्यों ( research works ) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाये जाने के मिसालों की भरमार है। इस संबंध में तापजन ( थर्मोजन ) का उल्लेख किया जा सकता है, जो एक ऐसा काल्पनिक द्रव था जिसने १८वीं शताब्दी में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। तापीय परिघटनाओं के सार को व्यक्त करने का ऐसा सिद्धांत बचकाना सिद्ध हुआ, फिर भी उसके द्वारा कतिपय भौतिकीय तथ्यों का वर्णन तथा व्याख्या की जा सकी और तापगतिकी ( thermodynamics ) के क्षेत्र में कई नई बातें मालूम हो सकीं। इसी ‘तापीय द्रव्य’ के मॉडल को आधार के तौर पर इस्तेमाल करके तापगतिकी के दूसरे सिद्धांत की खोज की गई, जो आज की भौतिकीय संकल्पनाओं में बुनियादी भूमिका अदा करता है। ऐसा ही एक अन्य काल्पनिक संकल्पना ‘अंतरिक्षीय ईथर’ ( space ether ) का इतिहास है। कहा जाता था कि सारा ब्रह्मांड इस विशिष्ट तत्व से भरा हुआ है। आगे चलकर सापेक्षता-सिद्धांत ने इस मॉडल का खंड़न कर दिया, पर फिर भी वैज्ञानिक उसकी बदौलत ही प्रकाश की तरंगमयता के सिद्धांत का प्रतिपादन कर सके।
कल्पना वैज्ञानिक समस्याओं के अध्ययन के आरंभिक चरणों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और प्रायः असाधारण खोजों ( exceptional discoveries ) का मार्ग प्रशस्त करती है। किंतु इसके द्वारा निदेशित होने के बाद वैज्ञानिकों द्वारा जब किन्हीं महत्त्वपूर्ण नियमसंगतियों का अध्ययन करके उन्हें सुस्पष्ट रूप दे दिया जाता है और जब इस नियम की व्यवहार में पुष्टि हो जाती है तथा उसे पहले से विद्यमान संकल्पनाओं ( concepts ) के साथ जोड़ दिया जाता है, तो संज्ञान की प्रक्रिया एक नये स्तर पर, सिद्धांत और कठोर वैज्ञानिक चिंतन के स्तर पर पहुंच जाती है। इस उच्चतर स्तर पर किसी प्रकार की कल्पनाओं का सहारा लेना व्यर्थ होता है और अनिवार्यतः त्रुटियों की ओर ले जाता है।
कल्पना वैज्ञानिक समस्याओं के अध्ययन के आरंभिक चरणों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और प्रायः असाधारण खोजों ( exceptional discoveries ) का मार्ग प्रशस्त करती है। किंतु इसके द्वारा निदेशित होने के बाद वैज्ञानिकों द्वारा जब किन्हीं महत्त्वपूर्ण नियमसंगतियों का अध्ययन करके उन्हें सुस्पष्ट रूप दे दिया जाता है और जब इस नियम की व्यवहार में पुष्टि हो जाती है तथा उसे पहले से विद्यमान संकल्पनाओं ( concepts ) के साथ जोड़ दिया जाता है, तो संज्ञान की प्रक्रिया एक नये स्तर पर, सिद्धांत और कठोर वैज्ञानिक चिंतन के स्तर पर पहुंच जाती है। इस उच्चतर स्तर पर किसी प्रकार की कल्पनाओं का सहारा लेना व्यर्थ होता है और अनिवार्यतः त्रुटियों की ओर ले जाता है।
वैज्ञानिक सृजन का मनोविज्ञान समकालीन मनोविज्ञान की एक सर्वाधिक संभावना युक्त शाखा है। इस क्षेत्र में किए गए बहुसंख्य अनुसंधानों में वैज्ञानिक तथा प्रोद्योगिक सृजन की प्रक्रियाओं में कल्पना की भूमिका पर बड़ा ध्यान दिया गया है। यह वैज्ञानिक खोजों के इतिहास को प्रमुखता प्रदान कर देता है। यदि हम ऐसी विज्ञान-शाखाओं के इतिहास पर दृष्टिपात करें, जो विकास के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी हैं, तो हम पाएंगे कि आरंभिक चरणों में इन सभी शाखाओं में अटकलों और अनुमानों का प्राधान्य था, जो वैज्ञानिक ज्ञान में मौजूद रिक्तियों को भरते थे। विज्ञान के विकास के साथ कल्पना पृष्ठभूमि में चली जाती है और उसका स्थान ठोस, सकारात्मक ज्ञान ले लेता है।
किंतु स्थायित्व देर तक नहीं बना रहता। वैज्ञानिक जानकारी का संचय बढ़ने और शोध-प्रणालियों में आगे सुधार होने के कारण सर्वाधिक ‘विश्वसनीय’ सिद्धांत भी देर-सबेर ऐसे तथ्यों से टकराते हैं, जो सामान्य स्वीकृत मान्यताओं से मेल नहीं खाते और जिनकी अभी कोई व्याख्या नहीं की जा सकती। ऐसे में कल्पना की, अत्यंत साहसिक कल्पना की आवश्यकता पुनः पैदा हो जाती है। कल्पना विज्ञान में क्रांति संभव बनाती है, नई दिशाओं में शोध का मार्ग प्रशस्त करती है और सदा वैज्ञानिक प्रगति की अगली क़तारों में रहती है।
इससे स्पष्ट है कि मानव जीवन में कल्पना की भूमिका अत्यंत बड़ी है।
किंतु स्थायित्व देर तक नहीं बना रहता। वैज्ञानिक जानकारी का संचय बढ़ने और शोध-प्रणालियों में आगे सुधार होने के कारण सर्वाधिक ‘विश्वसनीय’ सिद्धांत भी देर-सबेर ऐसे तथ्यों से टकराते हैं, जो सामान्य स्वीकृत मान्यताओं से मेल नहीं खाते और जिनकी अभी कोई व्याख्या नहीं की जा सकती। ऐसे में कल्पना की, अत्यंत साहसिक कल्पना की आवश्यकता पुनः पैदा हो जाती है। कल्पना विज्ञान में क्रांति संभव बनाती है, नई दिशाओं में शोध का मार्ग प्रशस्त करती है और सदा वैज्ञानिक प्रगति की अगली क़तारों में रहती है।
इससे स्पष्ट है कि मानव जीवन में कल्पना की भूमिका अत्यंत बड़ी है।
इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
1 टिप्पणियां:
अब ये कल्पना कौन है ?:) कल्पनाशीलता विज्ञान अथवा साहित्य दोनों के लिए ईधन है ....
विज्ञान की पद्धति में प्रश्न -कौतूहल ,विचार .संकल्पना आदि का रोल कितना महत्वपूर्ण है !
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