हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक अभिलक्षणों को समझने की कड़ी के रूप में सक्रियता की व्यक्तिगत शैली को समझने की कोशिश की थी, इस बार हम स्वभाव और शिक्षा पर चर्चा करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
स्वभाव और शिक्षा
स्वभाव की विशेषताओं के तौर पर क्रियाशीलता, संवेगात्मकता और गतिशीलता
बच्चों के प्रति वैयक्तिक, मनोविज्ञानसम्मत उपागम अपनाने के लिए उनके स्वभाव की विशेषताएं जानना
बहुत ज़रूरी है। बच्चे के साथ अल्पकालिक संपर्क से उसके मानस के गतिक पक्ष
की आंशिक और थोड़ी-बहुत ही स्पष्ट जानकारी पाई जा सकती है, जो उसके स्वभाव
के सही मूल्यांकन के लिए कतई पर्याप्त नहीं है। छात्र की सांयोगिक आदतों व
तौर-तरीक़ों का उसके स्वभाव की बुनियादी विशेषताओं से भेद करने के लिए
शिक्षक के वास्ते यह जानना जरूरी है कि उस छात्र का विकास किन
परिस्थितियों में हुआ है। उसे विभिन्न परिस्थितियों में छात्र के व्यवहार
तथा कार्यों की तुलना भी करनी चाहिए। एक जैसी परिस्थितियों में छात्रों के
व्यवहार तथा सक्रियता का तुलनात्मक अध्ययन उनके मानस की गतिक
अभिव्यक्तियों को जानने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
छात्र के स्वभाव का भेद निर्धारित करने के लिए शिक्षक को पहले उसकी क्रियाशीलता, संवेगात्मकता, गतिशीलता को आंकना चाहिए।
१. क्रियाशीलता : इसे
नई जानकारियों, कार्यों तथा वस्तुओं के लिए बच्चों की ललक की प्रबलता से,
परिवेश को बदलने तथा बाधाओं को पार करने की उसकी इच्छा की तीव्रता (
intensity ) से आंका जाता है।
२. संवेगात्मकता : इसे
संवेगात्मक प्रभावों के प्रति बच्चे की संवेदनशीलता और संवेगात्मक
प्रतिक्रिया के लिए बहाना खोजने की उसकी प्रवृत्ति ( tendency ) से आंका
जाता है। संवेगों की अभिप्रेरण-क्षमता और एक संवेगात्मक अवस्था से दूसरी
अवस्था में संक्रमण की रफ़्तार भी इस संबंध में बड़ा महत्त्व रखती हैं।
३. गतिशीलता : बच्चे
की गतिशीलता की विशेषताएं अपने को पेशीय क्रियाओं की गति, आकस्मिकता, लय,
विस्तार और कई अन्य बातों में व्यक्त करती हैं ( उनमें से कुछ वाचिक
गतिशीलता के भी अभिलक्षण हैं )। स्वभाव की इन अभिव्यक्तियों को अन्य
अभिव्यक्तियों की अपेक्षा आसानी से देखा और आंका जा सकता है।
यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि स्वभाव की आयुगत विशेषताएं भी
हैं और हर अवस्था में क्रियाशीलता, संवेगात्मकता तथा गतिशीलता अपने को अलग
ढंग से व्यक्त करती हैं। उदाहरण के लिए, निचली कक्षाओं के बच्चों की
क्रियाशीलता की विशेषताएं हैं रुचि का सहज ही जागृत हो जाना, बाह्य
क्षोभकों के प्रति उच्च संवेदनशीलता, किसी बात पर ध्यान देर तक केंद्रित
ना रख पाना। इनका कारण बच्चे के तंत्रिका-तंत्र की आपेक्षिक दुर्बलता और
अत्यधिक संवेदनशीलता है। निचली कक्षाओं के बच्चों की संवेगात्मकता तथा
गतिशीलता भी किशोरों के इन गुणों से बहुत भिन्न हैं। बच्चे की स्वभावगत
विशेषताओं को उसकी आयु से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि उनकी
अभिव्यक्तियां हमेशा बच्चे के विकास से जुड़ी होती हैं।
स्वभाव की विशेषताएं और शिक्षा
हर प्रकार का स्वभाव अपने को सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों तरह के मानसिक अभिलक्षणों में
प्रकट कर सकता है। पित्तप्रकृति व्यक्ति की उर्जा और कर्मशक्ति यदि उचित
लक्ष्यों की ओर उन्मुख हों, तो वे मूल्यवान गुण हो सकती हैं, किंतु उसका
संवेगात्मक तथा गतिशीलता संबंधी असंतुलन पालन की कमियों के साथ मिलकर अपने
को उच्छॄंखलता, उद्दंड़ता तथा आपे से बाहर होने की स्थायी प्रवृत्ति में
व्यक्त कर सकते हैं। रक्तप्रकृति ( प्रफुल्लस्वभाव ) मनुष्य की जीवंतता और
सह्रदयता श्रेष्ठ गुण हैं, किंतु समुचित शिक्षा के अभाव में ये गुण
एकाग्रता की कमी, लापरवाही और निरुद्देश्यता की ओर ले जा सकते हैं।
श्लैष्मिक प्रकृति ( शीतस्वभाव ) मनुष्य की शांतचित्तता, आत्म-नियंत्रण और
गंभीरता की सामान्यतः हर कोई प्रशंसा करेगा, किंतु प्रतिकूल परिस्थितियों
में वे उसे निश्चेष्ट, जड़ और ऊबाऊ आदमी में परिवर्तित कर सकते हैं। इसी
तरह वातप्रकृति ( विषादी ) मनुष्य के भावनाओं की गहनता तथा स्थिरता और
संयोगात्मक संवेदनशीलता जैसे गुण उसके बहुत काम आ सकते हैं, किंतु उचित
शैक्षिक प्रभाव के अभाव में ये ही अन्यथा मूल्यवान गुण अतिशय संकोच में
बदल जाएंगे और आत्मपरक अनुभवों की दुनिया में सिमट जाने की प्रवृत्ति को
जन्म देंगे।
इस तरह स्वभाव के बुनियादी गुणधर्म व्यक्तित्व की विशेषताओं का पूर्वनिर्धारण (
predetermination ) नहीं करते और ख़ुद ही मनुष्य के अच्छे या बुरे गुणों
में नहीं बदल जाते। अतः शिक्षक और अभिभावकों का कार्य एक तरह के स्वभाव को
बदलकर दूसरी तरह का स्वभाव विकसित करना नहीं ( ऐसे प्रयास हमेशा विफल
सिद्ध होते हैं ), बल्कि छात्र के स्वभाव के अच्छे पहलुओं को प्रोत्साहित करना साथ ही उसे बुरे, नकारात्मक पहलुओं से छुटकारा पाने में मदद देना है।
जो चीज़ ख़राब शिक्षा या पालन का परिणाम है, उसे आंख मूंदकर स्वभाव से
नहीं जोड़ना चाहिए। उदाहरण के लिए, व्यवहार में संयम व आत्म-नियंत्रण के
अभाव का पित्तप्रकृति ( कोपशील ) स्वभाव से संबंध होना अनिवार्य नहीं है।
वह ग़लत पालन का परिणाम भी हो सकता है। इसी तरह मनुष्य का बिलावजह अपनी
रुचियां व शौक बदलना, उसमें संयम का अभाव, अन्य लोगों के प्रति उदासीनता,
अनावश्यक संकोच, आदि स्वभाव के नहीं, अपितु अवांछनीय प्रभावों के
परिणाम हो सकते हैं। बच्चा स्कूल के भीतर दब्बू, लगभग असहाय प्रतीत हो
सकता है और वातप्रकृति, यानि विषादी प्ररूप का ठेठ प्रतिनिधी होने की
सर्वथा मिथ्या छाप पैदा कर सकता है, किंतु वास्तव में वैसा व्यवहार उसके
पढ़ाई में और सबसे पिछड़ा होने या औरों के बीच घुल-मिल न पाने का परिणाम हो
सकता है।
विभिन्न स्वभावोंवाले लोगों के प्रति वैयक्तिक उपागम
ऊपर जो भी कुछ कहा गया है, उसका यह मतलब नहीं कि स्वभावगत अंतरों को अनदेखा करना चाहिए। बच्चों के स्वभावों का ज्ञान शिक्षक और अभिभावकों को उनके व्यवहार की विशिष्टताओं को बेहतर समझने और लालन-पालन तथा शैक्षिक प्रभाव की प्रणालियों को आवश्यकतानुसार बदलने की संभावना देता है।
छात्रों
की प्रगति पर ख़राब अंकों का प्रभाव मालूम करने के लिए किये गए विशेष
प्रयोगों ने दिखाया है कि पढ़ाई में समान रुचि रखनेवाले, किंतु स्वभाव के
मामले में भिन्न बच्चे उनपर अलग-अलग ढंग से प्रतिक्रिया करते हैं : प्रबल
तंत्रिका-तंत्रवाले अपने को संभाल लेते हैं और दुर्बल तंत्रिका-तंत्रवाले
हतोत्साहित हो जाते हैं, आत्मविश्वास खो बैठते हैं और नहीं जानते कि क्या
करें। स्पष्टतः ऐसी विभिन्न प्रतिक्रियाएं शिक्षक द्वारा छात्रों के प्रति अलग-अलग कार्यनीतियां ( strategies ) अपनाए जाने की आवश्कयता पैदा करती है।
शिक्षक
भली-भांति जानते हैं कि स्कूल की समय-तालिका या पाठों के क्रम में
परिवर्तन कक्षा के सामान्य काम में विघ्न पैदा कर देता है। कुछ छात्र ऐसे
परिवर्तनों के जल्दी ही और आसानी से आदी हो जाते हैं, जबकि दूसरे अपने को
नई स्थिति के अनुसार ढ़ाल पाने में कठिनाई अनुभव करते हैं। सामान्यतः
शिक्षक को पित्तप्रकृति ( कोपशील ) तथा वातप्रकृति ( विषादी )
स्वभावोंवाले बच्चों पर विशेष ध्यान देना पड़ता है : पहलों को हमेशा उग्र
प्रतिक्रियाओं से रोकने, अपने और अपनी क्रियाओं पर नियंत्रण करना सिखाने
और शांति के साथ तथा निरंतर कार्य का प्रशिक्षण देने की जरूरत होती है,
जबकि दूसरों को उनका खोया आत्म-विश्वास लौटाना, प्रोत्साहित करना तथा
कठिनाइयों से विचलित न होना सिखाना होता है। कमज़ोर तंत्रिका-तंत्रवाले
बच्चों के लिए कठोर दिनचर्या तथा काम की नपी-तुली गति निर्धारित की जानी
चाहिए।
अच्छी शिक्षा-पद्धति दुर्बल
तंत्रिका-तंत्रवाले बच्चे में भी दृढ़ इच्छाशक्ति का विकास कर सकती है।
इसके विपरीत कृत्रिम परिस्थितियों में दी जानेवाली शिक्षा प्रबल
तंत्रिका-तंत्रवाले बच्चे को भी पहलहीन तथा आत्म-विश्वासरहित बना सकती है।
हर पित्तप्रकृति ( कोपशील ) मनुष्य अपने निश्चय पर अड़िग नहीं रहता और न हर
रक्तप्रकृति ( प्रफुल्लस्वभाव ) मनुष्य सह्रदय होता है। आत्म-नियंत्रण और स्वशिक्षा के द्वारा ये गुण विकसित करने होते हैं।
विकासोन्मुख मनुष्य को शनैः शनैः अपने व्यवहार तथा सक्रियता का सचेतन नियंत्रण करना
सीखना चाहिए। विभिन्न स्वभावोंवाले व्यक्ति इस काम को विभिन्न तरीक़ो से
करते हैं। स्वभावगत भेदों का तकाज़ा है कि छात्रों में आवश्यक मानसिक गुण
संवर्धित ( enhanced ) करने के लिए शिक्षक अलग-अलग बच्चों के साथ अलग-अलग
प्रणालियां इस्तेमाल करे। मनुष्य के स्वभाव की विशेषताएं अपने को विभिन्न
क्षेत्रों में ( उदाहरणार्थ, स्कूल में और घर में ) विभिन्न रूपों में
प्रकट करती हैं। स्वभाव की कुछ अभिव्यक्तियां मनुष्य के विन्यासों तथा
आदतों के प्रभाव से एक निश्चित दिशा में सीमित तथा निदेशित की जा सकती
हैं। दूसरे शब्दों में, स्वभाव व्यवहार के संरूपों को प्रभावित करता है, न कि उन्हें पहले से तयशुदा बनाता है।
यहां शैक्षिक प्रभाव और परिवेश के प्रति विकासोन्मुख मनुष्य ( बच्चा,
किशोर, आदि ) के रवैयों ( attitudes ) की सारी पद्धति सबसे महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं।
स्वभाव
की विशेषताएं, अर्थात मन की गत्यात्मक पद्धति के अभिलक्षण उन अत्यंत
महत्त्वपूर्ण गुणों के विकास की एक पूर्वापेक्षा ही है, जिनसे मनुष्य का चरित्र ( character ) बनता है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं
के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता
है।
शुक्रिया।
समय
0 टिप्पणियां:
एक टिप्पणी भेजें
अगर दिमाग़ में कुछ हलचल हुई हो और बताना चाहें, या संवाद करना चाहें, या फिर अपना ज्ञान बाँटना चाहे, या यूं ही लानते भेजना चाहें। मन में ना रखें। यहां अभिव्यक्त करें।