हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में
प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक
अभिलक्षणों की कड़ी के रूप में ‘योग्यता’ के अंतर्गत योग्यताओं के नैसर्गिक पूर्वाधारों के रूप में प्रवृत्तियों को समझने की कोशिश की थी, इस बार हम योग्यताएं तथा आनुवंशिकता पर चर्चा करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
योग्यताएं तथा आनुवंशिकता
( abilities and heredity )
यह
तथ्य कि योग्यताओं के नैसर्गिक पूर्वाधारों - प्रवृत्तियों - का
तंत्रिका-तंत्र की संरचना तथा प्रकार्य से सह-संबंध होता है, इस मान्यता
में विश्वास करने का आधार प्रस्तुत करता है कि वे भी समस्त अन्य प्राकृतिक
तथा शरीरक्रियात्मक गुणों की भांति आनुवंशिकता के सामान्य नियमों के अधीन
होते हैं। परंतु प्रवृत्तियों के आनुवंशिक स्वरूप की प्राक्कल्पना ( hypothesis ) को, योग्यताओं के आनुवंशिक स्वरूप के सदृश ( similar ) नहीं माना जाना चाहिए।
लक्षित समस्या का बहुत लंबा इतिहास है। १८७५ में अंग्रेज मनोविज्ञानी फ्रांसिस गाल्टन
ने `आनुवंशिक प्रतिभा' शीर्षक एक पुस्तक लिखी थी। सैकड़ो लोगों की
रिश्तेदारी विषयक संबंधों का अध्ययन करनेवाले लेखक ने यह निष्कर्ष निकाला
कि प्रतिभाएं विरासत के रूप में या तो पिता से अथवा मां से मिलती हैं।
परंतु गाल्टन के निष्कर्ष का कोई वैज्ञानिक मूल्य
नहीं था। वह न्यायिक, राजनीतिक और सैन्य प्रतिभाओं के आनुवंशिक होने के
पक्ष में कोई विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके। गाल्टन की सामग्री
के आधार पर निकाला जा सकनेवाला एकमात्र निष्कर्ष यह है कि दौलतमंद, कुलीन
तथा सुशिक्षित लोगों के परिवारों में बौद्धिक कार्यों में जुटने के लिए अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध
होती हैं। कोई भी ईमानदार अनुसंधानकर्ता गाल्टन की तथ्य-सामग्री के आधार
पर यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि इस या उस व्यवसाय के प्रति मनुष्य में
पहले से ही कोई आनुवंशिक झुकाव होता है।
तथ्यात्मक-सामग्री
से कुछ सामान्य निष्कर्ष निकालना संभव हो जाता है। अधिकांश मामलों में
सचमुच मेधावी लोगों की वंश-वृक्षावली के अनुसंधान से जैविक आनुवंशिकता (
biological heredity ) की नहीं, अपितु जीवन की अवस्थाओं की, यानि उन सामाजिक अवस्थाओं की आनुवंशिकता प्रमाणित होती है, जो योग्यताओं के विकास के लिए अनुकूल रहती हैं।
जाहिर है, यदि परिवार की रुचियां संगीत पर केन्द्रित हों, यदि जीवन के
सारे पहलू बच्चे के मन पर यह छाप छोड़ें कि संगीत का अध्ययन करना आवश्यक
है, यदि हरेक संगीत के प्रति निष्ठा को सर्वोत्तम योग्यता मानता हो, तो
इसमे अचरज की कोई बात नहीं कि इस परिवार में संगीत की प्रतिभा ( talent ) जन्म लेगी। कुछ परिवारों के उदाहरण यह मानने का भी आधार प्रदान करते है कि सांगीतिक प्रवृत्तियां
( tendencies ) कुछ हद तक निस्संदेह वंशानुगत होती हैं। यह संभव है कि इस
परिवार में श्रवणेंद्रिय ( auditory-sense ) की संरचना तथा प्रकार्य में
कुछ विशेषताओं ( यानि आंशिक प्ररूपात्मक विशेषताओं ) को एक पीढ़ी दूसरी
पीढ़ी को सौंपती चली गई हो।
जीवन ऐसे परिवारों के नाना उदाहरण
प्रस्तुत करता है, जिनके सदस्यों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी में मात्र एक ही व्यवसाय
के प्रति निष्ठा रही है और वे उसके लिए आवश्यक योग्यताएं विकसित करते रहे
हैं। रंगमंच और सर्कस के कलाकारों, अनुसंधानकर्मियों, जहाज़ियों,
इस्पातकर्मियों, लकड़ी पर नक़्क़ाशी करनेवालों और दूसरे बहुत-से अत्यंत
उल्लेखनीय कारीगरों के वंश सुविदित हैं। स्वभावतः, ऐसे परिवारों में बेटा
पिता तथा दादा का व्यवसाय अपनाता है और परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाता है।
परंतु इसके साथ ही ऐसे मेधावी लोगों की संख्या अनगिनत है, जिनके बच्चे और
नाती-पोते अपने पूर्वजों की विशेष योग्यताएं प्राप्त नहीं करते और उनके
जीवन का पथ नहीं चुनते।
यह सिद्ध करने के लिए गंभीर तथ्य उपलब्ध नहीं हैं कि योग्यताएं तथा प्रतिभाएं उत्तराधिकार में प्राप्त की जा सकती है। योग्यताओं के आनुवंशिक स्वरूप का विचार, विज्ञानसम्मत सिद्धांत के भी विरुद्ध है।
विज्ञान ने अकाट्य रूप से सिद्ध किया है कि आधुनिक प्रकार के मनुष्य का,
यानि पिछले एक लाख वर्षों से विद्यमान क्रोमेगनान मनुष्य का विकास, उसके
आविर्भाव के समय से लेकर आज तक नैसर्गिक वरण तथा अपने नैसर्गिक संगठन में
परिवर्तनों की आनुवंशिकता के ज़रिए नहीं हुआ - मनुष्य तथा उसकी योग्यताओं का विकास सामाजिक-ऐतिहासिक नियमों से शासित होता आया है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं
के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता
है।
शुक्रिया।
समय
2 टिप्पणियां:
इस विषय पर मैंने कभी पहले नहीं पढा सुना देखा इसलिए कमाल की लगी ये पोस्ट ।बहुत ही बेहतरीन
शानदार लेख.. मनुष्य तथा उसकी योग्यताओं का विकास सामाजिक-ऐतिहासिक नियमों से शासित होता आया है।
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