हे मानवश्रेष्ठों,
अधिरचना की प्रणाली में राज्य - ३
( the state in the system of the superstructure - 3 )
यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार यहां समाज की अधिरचना की प्रणाली में राज्य पर चर्चा चल रही थी, इस बार हम उसी चर्चा को और आगे बढ़ाएंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस शृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
अधिरचना की प्रणाली में राज्य - ३
( the state in the system of the superstructure - 3 )
उत्पादन के सुप्रचलित संबंधों से राज्य का प्रकार (type) निर्धारित होता है, इसके विपरीत, राज्य का रूप
(form) ऐतिहासिक विकास की किसी भी अवस्था पर, वर्ग शक्तियों (class
forces) के संबंधों, समाज के इतिहास की विशेषताओं और उसकी परंपराओं तथा
ठोस घरेलू व विदेशी राजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर होता है।
सबसे ज़्यादा आम क़िस्म के शोषक राज्य, राजतंत्र (monarchy) ( यानी एक व्यक्ति का शासन ), कुलीनतंत्रीय (aristocratic) या अल्पतंत्रीय (oligarchic) गणतंत्र ( जिनमें कुलीन जातियों या अत्यंत अमीर नागरिकों के छोटे-से समूह का नेतृत्व होता है ) और जनवादी गणतंत्र
(democratic republic), जिसमें विधिक व कार्यकारी निकायों का चुनाव
मतदाताओं की कमोबेश बड़ी संख्या द्वारा होता है। आज अधिकांश पूंजीवादी
देशों में बुर्जुआ गणतंत्र की कई क़िस्में हैं। ग्रेट ब्रिटेन, स्वीडन तथा
कुछ अन्य पूंजीवादी देशों में संरक्षित संवैधानिक राजतंत्र
(constitutional monarchies), उनसे सिर्फ़ अपने बाहरी पारंपरिक रूपों में
ही भिन्न हैं। उनमें गणतंत्र के राज्याध्यक्ष के कार्य एक वंशानुगत राजा (
या रानी ) द्वारा किये जाते हैं किंतु उनकी सत्ता नाम मात्र की होती है।
बुर्जुआ जनवाद (bourgeois democracy), पूंजी की सत्ता के उपयोग के लिए सबसे ज़्यादा सुविधाजनक है। वह मेहनतकशों (working people) को औपचारिक मताधिकार तो देता है, परंतु
उनके चुने जाने के अवसरों तथा राज्य के प्रशासन में भाग लेनें की संभावना
को अधिकतम सीमा तक घटा देता है। समसामयिक
पूंजीवादी समाज में क़ानून के सामने औपचारिक समानता तो जाहिर की जाती है
परंतु इसको वास्तविक आर्थिक समानता से पूरित नहीं किया जाता।
जब वर्गों (classes) के बीच अंतर्विरोध (contradictions) बहुत तीक्ष्ण हो जाते हैं, तो पूंजीपति वर्ग ऐसे नरम जनवाद (moderate democracy) को भी किनारे कर देता है और खुली सैनिक-पुलिस (open military-police) या फ़ासिस्ट तानाशाही (fascist dictatorship) के रूप ग्रहण कर लेता है। इस सदी के पूर्वार्ध में इटली तथा जर्मनी में फ़ासिस्ट राज्यों के उत्थान, उनके द्वारा छेड़े नये दूसरे विश्वयुद्ध का इतिहास विश्वसनीय ढंग से दर्शाता है कि ऐसे तानाशाही शासन बड़े इजारेदार पूंजीपतियों (monopoly capitalists) का हित-साधन करते हैं। कुछ देशों में, जहां बुर्जुआ जनवाद के मामूली तरीक़े काम नहीं देते, विद्यमान सैनिक-पुलिस राज्य भी उन्हीं अंचलों की सेवा करते हैं।
बुर्जुआ जनवाद की सारी क़िस्मों से भिन्न, समाजवादी जनवाद (socialist democracy) मेहनतकशों को व्यापक अधिकार ही नहीं देता, बल्कि समाज के प्रशासन के सारे स्तरों में उनकी भागीदारी के अवसरों की गारंटी भी करता है,
जो जनगण का समाजवादी स्वशासन है। असली समाजवादी जनवाद इस बात में व्यक्त
होता है कि प्रत्येक सचेत, सक्रिय नागरिक केवल विधिनिर्माण के, समाज के
प्रशासन तथा उद्योग के प्रबंध में ही भाग नहीं लेता, बल्कि कार्यकारी
निकायों के क़ानूनी कार्यों तथा निर्णयों पर भी सक्रियता से बहस करता है।
समाजवादी जनवाद, समाजवादी राज्यत्व के विकास का रूप होने के कारण,
साम्यवादी स्वशासन के रूपों में संक्रमण (transition) करने का रास्ता भी
तैयार करता है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
शुक्रिया।
समय अविराम
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