हे मानवश्रेष्ठों,
साम्यवादी विरचना - १
(The Communist Formation - 1)
समय अविराम
यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने यहां सामाजिक-आर्थिक विरचनाओं के सिद्धांत के अंतर्गत पूंजीवादी विरचना पर चर्चा की थी, इस बार हम साम्यवादी विरचना को समझने की कोशिश करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस शृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
साम्यवादी विरचना - १
(The Communist Formation - 1)
प्रत्येक नयी सामाजिक-आर्थिक विरचना (socio-economic formation) वस्तुगत ऐतिहासिक नियमों का परिणाम होती है। इस अर्थ में साम्यवादी विरचना
का आना वैसे ही अनिवार्य और आवश्यक है जैसे की पूर्ववर्ती विरचनाएं। किंतु
इसकी उत्पत्ति की विशेषता उसका यह महत्वपूर्ण विभेदक लक्षण (distinguish
feature) है कि यह एक सचेत प्रक्रिया (conscious
process) होती है। इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें सामाजिक सत्व (social
being) अपनी निर्धारक भूमिका गंवा देता है। नये समाज के स्वभाव तथा
पूर्ववर्ती समाजों से उसके मौलिक अंतर की वजह से इसकी रचना की एक
महत्वपूर्ण शर्त वैज्ञानिक समाजवाद को (जो समाज के विकास के वस्तुगत
नियमों तथा उसे रूपांतरित करने के तरीक़ों को उद्घाटित करता है) मज़दूर
वर्ग तथा आम मेहनतकशों के क्रांतिकारी संघर्ष के साथ जोड़ना है। इस शर्त की
पूर्ति कम्यूनिस्ट और मज़दूर पार्टियों के काम की अंतर्वस्तु (content) है।
साम्यवादी
विरचना कैसे उत्पन्न तथा विकसित होती है? वैज्ञानिक समाजवाद के संस्थापकों
ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यह प्रमाणित किया है कि यह विरचना दो
मुख्य क्रमावस्थाओं से होकर गुजरती है।
पहली क्रमावस्था है समाजवाद (socialism)। यह पूंजीवादी विरचना से साम्यवादी विरचना के संक्रमण (transition) की अवस्था है।
यह सामाजिक क्रांति के फलस्वरूप उत्पन्न होता तथा रूप ग्रहण करता है।
सामाजिक क्रांति की विजय के साथ मेहनतकशों का राज्य, सर्वहारा का
अधियानकत्व (dictatorship of the proletariat) स्थापित किया जाता है।
पदच्युत शोषकों का दमन करते हुए, सर्वहारा अधियानकत्व अपने मुख्य
प्रयत्नों को, नियोजन (planning) तथा समाजवादी आधार और अधिरचना (superstructure) के सोद्देश्य निर्माण पर संकेन्द्रित करता है।
साम्यवादी
विरचना की यह पहली क्रमावस्था अपने विकास की कई अवस्थाओं से होकर गुज़रती
है। इन अवस्थाओं का निर्धारण, विशिष्ट ऐतिहासिक परिस्थितियों, देश के अंदर
तथा बाहर वर्ग शक्तियों के संतुलन और राष्ट्रीय व सांस्कृतिक परंपराओं से
होता है। इसलिए विभिन्न प्रदेशों तथा अलग-अलग देशों में समाजवाद के निर्माण के भिन्न-भिन्न मार्ग तथा रूप हो सकते हैं। हालांकि इन विशिष्टताओं तथा व्यष्टिक (individual) लक्षणों के अलावा इस प्रक्रिया की कुछ सामान्य (general) नियमितताएं होती हैं।
उनमें शामिल हैं : मज़दूर वर्ग की प्रमुख भूमिका सहित मेहनतकशों की सत्ता की स्थापना ; समाज के विकास में कम्युनिस्ट और मज़दूर पार्टियों की नेतृत्वकारी भूमिका ; उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सामाजिक स्वामित्व (social ownership) की स्थापना और जनगण के हित में अर्थव्यवस्था का विकास ; ‘प्रत्येक से उसकी योग्यतानुसार, और प्रत्येक को उसके श्रम के अनुसार’ उसूल (principle) का कार्यान्वयन ; समाजवादी जनवाद (socialist democracy) का विकास ; राष्ट्रीयताओं तथा उपराष्ट्रीयताओं की समानता
और मैत्री ; वर्ग शत्रुओं से समाजवादी विरचना की रक्षा। समाजवाद के
निर्माण के दौरान आत्मगत कारक (subjective factor) की, यानी समाजवादी
चेतना, वैचारिकी और शैक्षिक कार्य की भूमिका में बहुत तेज़ी से बढ़ती होती
है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।समय अविराम
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