हे मानवश्रेष्ठों,
अब फिर से कुछ गंभीर हुआ जाए, हालांकि आप निश्चित ही गंभीर अध्येता हैं इसमें कोई दोराय नहीं है। इस बार से यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में दिये जाने की योजना है। चेतना की उत्पत्ति वाली श्रृंखला में मन, मस्तिष्क तथा मनुष्य और पशु पर कुछ संक्षिप्त चर्चाएं यहां हो चुकी हैं। कभी संक्षिप्तिकरण करते हुए, कभी विस्तार देते हुए हम यहां, मनुष्य की गहन दिलचस्पी के इस विषय पर मानवजाति के अद्युनातन ज्ञान को, उसकी ऐतिहासिकता के साथ जानने और समझने का प्रयत्न करेंगे।
इस बार यहां खु़द मनोविज्ञान और उसके कार्यक्षेत्रों के संबंध में चर्चा की जा रही है। अगली बार यहां इसके विकास का संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया जाएगा, और श्रृंखला चल निकलेगी।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
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अब फिर से कुछ गंभीर हुआ जाए, हालांकि आप निश्चित ही गंभीर अध्येता हैं इसमें कोई दोराय नहीं है। इस बार से यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में दिये जाने की योजना है। चेतना की उत्पत्ति वाली श्रृंखला में मन, मस्तिष्क तथा मनुष्य और पशु पर कुछ संक्षिप्त चर्चाएं यहां हो चुकी हैं। कभी संक्षिप्तिकरण करते हुए, कभी विस्तार देते हुए हम यहां, मनुष्य की गहन दिलचस्पी के इस विषय पर मानवजाति के अद्युनातन ज्ञान को, उसकी ऐतिहासिकता के साथ जानने और समझने का प्रयत्न करेंगे।
इस बार यहां खु़द मनोविज्ञान और उसके कार्यक्षेत्रों के संबंध में चर्चा की जा रही है। अगली बार यहां इसके विकास का संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया जाएगा, और श्रृंखला चल निकलेगी।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
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मनोविज्ञान जिन परिघटनाओं का अध्ययन करता है, उनके विशिष्ट लक्षणों को परिभाषित करना थोड़ा कठिन होता है क्योंकि इन परिघटनाओं की व्याख्या काफ़ी हद तक अनुसंधान में लगे व्यक्तियों के विश्व-दृष्टिकोण पर, नज़रिए पर निर्भर करती है।
सर्वप्रथम कठिनाई यह है कि मनोविज्ञान जिन परिघटनाओं की जांच करता है, वे मानव-मस्तिष्क द्वारा बहुत पहले ही विशेष परिघटनाओं के रूप में पहचानी और जीवन की अन्य अभिव्यक्तियों से अलग की जा चुकी हैं। वास्तव में बिल्कुल स्पष्ट है कि कंप्यूटर का हमारा बोध अथवा प्रत्यक्ष एक ऐसी चीज़ है, जो बहुत ही विशिष्ट है और हमारे सामने मेज़ पर रखी वास्तविक वस्तु से भिन्न है। हम बाहर खाने के लिए जाना चाहते हैं, किंतु हमारी यह इच्छा खाने के लिए वस्तुतः बाहर जाने से भिन्न चीज़ है। नये साल की पार्टी की हमारी याद और नये साल की वास्तविक पार्टी, दोनों एक ही चीज़ नहीं हैं।
इस तरह लोगों ने धीरे-धीरे उनके बीच भेद करना सीखा, जिन्हें हम मानसिक परिघटनाएं ( मानसिक कार्य, गुण, प्रक्रियाएं, अवस्थाएं, आदि ) कहते हैं। लोगों की नज़रों में उनकी विशिष्टता यह थी कि वे मनुष्य के बाह्य परिवेश की बजाए अंतर्जगत से संबंध रखती हैं। उन्हें वास्तविक घटनाओं और तथ्यों से भिन्न मानसिक जीवन का अंग माना गया और ‘प्रत्यक्षों’, ‘स्मृति’, ‘चिंतन’, ‘इच्छा’, ‘संवेगों’, आदि के रूप में वर्गीकृत किया गया। ये सभी मिलकर ही मन, मानस, मनुष्य का अंतर्जगत, आदि कहे जाते हैं।
सर्वप्रथम कठिनाई यह है कि मनोविज्ञान जिन परिघटनाओं की जांच करता है, वे मानव-मस्तिष्क द्वारा बहुत पहले ही विशेष परिघटनाओं के रूप में पहचानी और जीवन की अन्य अभिव्यक्तियों से अलग की जा चुकी हैं। वास्तव में बिल्कुल स्पष्ट है कि कंप्यूटर का हमारा बोध अथवा प्रत्यक्ष एक ऐसी चीज़ है, जो बहुत ही विशिष्ट है और हमारे सामने मेज़ पर रखी वास्तविक वस्तु से भिन्न है। हम बाहर खाने के लिए जाना चाहते हैं, किंतु हमारी यह इच्छा खाने के लिए वस्तुतः बाहर जाने से भिन्न चीज़ है। नये साल की पार्टी की हमारी याद और नये साल की वास्तविक पार्टी, दोनों एक ही चीज़ नहीं हैं।
इस तरह लोगों ने धीरे-धीरे उनके बीच भेद करना सीखा, जिन्हें हम मानसिक परिघटनाएं ( मानसिक कार्य, गुण, प्रक्रियाएं, अवस्थाएं, आदि ) कहते हैं। लोगों की नज़रों में उनकी विशिष्टता यह थी कि वे मनुष्य के बाह्य परिवेश की बजाए अंतर्जगत से संबंध रखती हैं। उन्हें वास्तविक घटनाओं और तथ्यों से भिन्न मानसिक जीवन का अंग माना गया और ‘प्रत्यक्षों’, ‘स्मृति’, ‘चिंतन’, ‘इच्छा’, ‘संवेगों’, आदि के रूप में वर्गीकृत किया गया। ये सभी मिलकर ही मन, मानस, मनुष्य का अंतर्जगत, आदि कहे जाते हैं।
दूसरों से रोज़मर्रा के संपर्क में लोगों का प्रत्यक्ष वास्ता उनके विभिन्न व्यवहार रूपों ( कार्यों, चेष्टाओं, श्रम-संक्रियाओं, आदि ) से ही पड़ता है। किंतु व्यवहारिक अन्योन्यक्रियाओं की आवश्यकताएं यह तक़ाज़ा करती हैं कि लोग, बाह्य आचरण के पीछे छिपी मानसिक प्रक्रियाओं को भी पहचानें। परिणामस्वरूप मनुष्य के हर कार्य के पीछे उसके इरादों अथवा जिन कारणों से प्रेरित होकर उसने दत्त कार्य किया था, उनके संदर्भों में देखा जाने लगा और विभिन्न घटनाओं के संबंध में उसकी प्रतिक्रिया को उसके स्वभाव तथा चरित्र की विशेषताओं का परिचायक माना गया। इस प्रकार लोगों ने मानसिक प्रक्रियाओं, गुणों तथा अवस्थाओं के वैज्ञानिक विश्लेषण का विषय बनने से बहुत पहले ही, एक दूसरे के बारे में व्यावहारिक मनोवैज्ञानिक ज्ञान संचित कर लिया।
उसे कई कहावतों और लोकोक्तियों में अभिव्यक्ति दी गई और लोगों के बीच अक्सर यह सुना जा सकता है कि ‘एक बार देखना सौ बार सुनने से बेहतर है’ या ‘ आदतें आदमी का दूसरा स्वभाव होती हैं’, वगैरह। मनुष्य का ज़िंदगी द्वारा सिखाया गया ज्ञान भी मानस के बारे में जानने में उसकी काफ़ी हद तक मदद करता है। उदाहरण के लिए, अनुभव से उसे मालूम होता है कि कोई पाठ यदि बार-बार पढ़ा जाए, दोहराया जाए, तो वह बेहतर याद हो जाता है।
व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभव से प्राप्त मनोवैज्ञानिक सूचना को प्राक्-वैज्ञानिक मनोवैज्ञनिक ज्ञान कहा जाता है। उसका दायरा काफ़ी अधिक व्यापक हो सकता है और वह कुछ हद तक आसपास के लोगों के व्यवहार को समझने और निश्चित सीमाओं के भीतर यथार्थ का सही प्रतिबिंब पाने में सहायक हो सकता है। किंतु कुल मिलाकर यह ज्ञान क्रमबद्ध, गहन तथा निश्चयात्मक नहीं होता और इसीलिए वह लोगों के साथ ऐसे किसी शैक्षिक, चिकित्सीय, संगठनात्मक तथा अन्य मानवीय कार्यकलाप के लिए ठोस आधार नहीं बन सकता है, जिसके लिए मानव मस्तिष्क के वैज्ञानिक, अर्थात वस्तुपरक एवं प्रामाणिक ज्ञान की आवश्यकता होती है, यानि ऐसा ज्ञान कि जो किन्हीं प्रत्याशित परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वानुमान करने की संभावना देता है।
तो मनोविज्ञान में वैज्ञानिक अध्ययन की विषय-वस्तु क्या है? सर्वप्रथम, मनुष्य के मानसिक जीवन के ठोस तथ्य, जिनके गुणात्मक और परिमाणात्मक, दोनों ही पहलुओं का वर्णन किया जा सकता है। किंतु वैज्ञानिक मनोविज्ञान अपने को किसी मनोवैज्ञानिक तथ्य का, चाहे वह कितना भी दिलचस्प क्यों ना हो, वर्णन करने तक ही सीमित नहीं रख सकता। वैज्ञानिक संज्ञान के लिए परिघटना के वर्णन से आगे जाकर उसकी व्याख्या करने, अर्थात उस परिघटना के मूल में जो नियम कार्य कर रहे हैं, उन्हें उद्घाटित करने की भी जरूरत होती है। इसलिए मनोविज्ञान में अध्ययन का विषय मनोवैज्ञानिक तथ्य ही नहीं, मनोवैज्ञानिक नियम भी होते हैं।
नियम अपने को जिन विशिष्ट क्रियातंत्रों के माध्यम से व्यक्त करते हैं, उन क्रियातंत्रों के बारे में जानने के लिए नियमों का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। इसलिए मनोविज्ञान का कार्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों एवं नियमों की खोजबीन के अलावा मानसिक कार्यकलाप के क्रियातंत्रों का अध्ययन करना भी है। मानसिक क्रिया के तंत्र अनिवार्यतः किन्हीं निश्चित मानसिक प्रकार्यों को पैदा करने वाले शारीरिक-शरीरक्रियात्मक प्रणालियों से जुड़े होते हैं। इसलिए मनोविज्ञान इन क्रियातंत्रों की प्रकृति और कार्य का अध्ययन शरीरक्रियाविज्ञान, जीवभौतिकी, जीवरासायनिकी, साइबरनेटिकी, आदि अन्य विज्ञानों के साथ मिलकर करता है।
इस प्रकार एक विज्ञान के नाते मनोविज्ञान मानस ( मन, मस्तिष्क ) के तथ्यों, नियमों और क्रियातंत्रों का अध्ययन करता है।
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तो मानवश्रेष्ठों, मनोविज्ञान के जरिए हमारे मानस और इसके क्रियाकलापों का विश्लेषण और अध्ययन, हमारे जीवन में इनके संबंध में एक व्यापक और सार्विक वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करता है। यह हमें हमारे और दूसरों के मन को समझने, मानसिक संक्रियाओं को व्याख्यायित करने और इस प्रकार उन्हें व्यवस्थित और नियंत्रित करने में हमारी मदद करता है।
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
इस बार इतना ही।
समय
उसे कई कहावतों और लोकोक्तियों में अभिव्यक्ति दी गई और लोगों के बीच अक्सर यह सुना जा सकता है कि ‘एक बार देखना सौ बार सुनने से बेहतर है’ या ‘ आदतें आदमी का दूसरा स्वभाव होती हैं’, वगैरह। मनुष्य का ज़िंदगी द्वारा सिखाया गया ज्ञान भी मानस के बारे में जानने में उसकी काफ़ी हद तक मदद करता है। उदाहरण के लिए, अनुभव से उसे मालूम होता है कि कोई पाठ यदि बार-बार पढ़ा जाए, दोहराया जाए, तो वह बेहतर याद हो जाता है।
व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभव से प्राप्त मनोवैज्ञानिक सूचना को प्राक्-वैज्ञानिक मनोवैज्ञनिक ज्ञान कहा जाता है। उसका दायरा काफ़ी अधिक व्यापक हो सकता है और वह कुछ हद तक आसपास के लोगों के व्यवहार को समझने और निश्चित सीमाओं के भीतर यथार्थ का सही प्रतिबिंब पाने में सहायक हो सकता है। किंतु कुल मिलाकर यह ज्ञान क्रमबद्ध, गहन तथा निश्चयात्मक नहीं होता और इसीलिए वह लोगों के साथ ऐसे किसी शैक्षिक, चिकित्सीय, संगठनात्मक तथा अन्य मानवीय कार्यकलाप के लिए ठोस आधार नहीं बन सकता है, जिसके लिए मानव मस्तिष्क के वैज्ञानिक, अर्थात वस्तुपरक एवं प्रामाणिक ज्ञान की आवश्यकता होती है, यानि ऐसा ज्ञान कि जो किन्हीं प्रत्याशित परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वानुमान करने की संभावना देता है।
तो मनोविज्ञान में वैज्ञानिक अध्ययन की विषय-वस्तु क्या है? सर्वप्रथम, मनुष्य के मानसिक जीवन के ठोस तथ्य, जिनके गुणात्मक और परिमाणात्मक, दोनों ही पहलुओं का वर्णन किया जा सकता है। किंतु वैज्ञानिक मनोविज्ञान अपने को किसी मनोवैज्ञानिक तथ्य का, चाहे वह कितना भी दिलचस्प क्यों ना हो, वर्णन करने तक ही सीमित नहीं रख सकता। वैज्ञानिक संज्ञान के लिए परिघटना के वर्णन से आगे जाकर उसकी व्याख्या करने, अर्थात उस परिघटना के मूल में जो नियम कार्य कर रहे हैं, उन्हें उद्घाटित करने की भी जरूरत होती है। इसलिए मनोविज्ञान में अध्ययन का विषय मनोवैज्ञानिक तथ्य ही नहीं, मनोवैज्ञानिक नियम भी होते हैं।
नियम अपने को जिन विशिष्ट क्रियातंत्रों के माध्यम से व्यक्त करते हैं, उन क्रियातंत्रों के बारे में जानने के लिए नियमों का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। इसलिए मनोविज्ञान का कार्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों एवं नियमों की खोजबीन के अलावा मानसिक कार्यकलाप के क्रियातंत्रों का अध्ययन करना भी है। मानसिक क्रिया के तंत्र अनिवार्यतः किन्हीं निश्चित मानसिक प्रकार्यों को पैदा करने वाले शारीरिक-शरीरक्रियात्मक प्रणालियों से जुड़े होते हैं। इसलिए मनोविज्ञान इन क्रियातंत्रों की प्रकृति और कार्य का अध्ययन शरीरक्रियाविज्ञान, जीवभौतिकी, जीवरासायनिकी, साइबरनेटिकी, आदि अन्य विज्ञानों के साथ मिलकर करता है।
इस प्रकार एक विज्ञान के नाते मनोविज्ञान मानस ( मन, मस्तिष्क ) के तथ्यों, नियमों और क्रियातंत्रों का अध्ययन करता है।
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तो मानवश्रेष्ठों, मनोविज्ञान के जरिए हमारे मानस और इसके क्रियाकलापों का विश्लेषण और अध्ययन, हमारे जीवन में इनके संबंध में एक व्यापक और सार्विक वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करता है। यह हमें हमारे और दूसरों के मन को समझने, मानसिक संक्रियाओं को व्याख्यायित करने और इस प्रकार उन्हें व्यवस्थित और नियंत्रित करने में हमारी मदद करता है।
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
इस बार इतना ही।
समय
4 टिप्पणियां:
बेहतर...सुन्दर शुरुवात.
बहुत श्रम साध्य काम कर रहे हैं आप। वैसे यह सौभाग्य ही है कि इन दिनों विद्वानों से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।
मनोविज्ञान किसी के मन मसतिष्क के तथ्यो,नियमों और क्रिया तंन्त्रों का अध्यन तो करता ही है,और मनोविज्ञान का अध्यन बहुत ही विसतरित क्षेत्र है,विभिन्न प्रकार के व्यकतित्व इसकी कार्य प्रणाली में आते हैं,और आपकी टिप्पणी भेजें के नीचे लिखे हुये संदेश को देखकर प्रसन्नता हुई,जिसके कारण कोई भी, निसंकोच अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है,और व्यक्ति विशेष के लिखे हुये सन्देश के कारण आप उसके द्वारा,लिखे हुये के आधार पर उसका मनोवैग्यनिक विशलेशन कर सकेंगी, एक मनोवेज्ञानिक के समान ।
sandeep singh kushwaha
bahut achha laga
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अगर दिमाग़ में कुछ हलचल हुई हो और बताना चाहें, या संवाद करना चाहें, या फिर अपना ज्ञान बाँटना चाहे, या यूं ही लानते भेजना चाहें। मन में ना रखें। यहां अभिव्यक्त करें।