शनिवार, 5 नवंबर 2011

संकल्पात्मक क्रियाओं की संरचना

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्तित्व के संवेगात्मक-संकल्पनात्मक क्षेत्रों को समझने की कड़ी के रूप में इच्छाशक्ति और जोखिम के अंतर्संबंधों पर चर्चा की थी, इस बार हम संकल्पात्मक क्रियाओं की संरचना को समझने की कोशिश करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय  अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



संकल्पात्मक क्रियाओं की संरचना
( structure of volitive actions )

मनुष्य की इच्छाशक्ति और सामान्यतः क्रियाशीलता का आधार उसकी आवश्यकताएं ( needs ) हैं, जो क्रियाओं और कार्यों के लिए तरह-तरह के अभिप्रेरकों ( motivators ) को जन्म देती हैं।

संकल्पात्मक क्रियाओं के अभिप्रेरक

मनोविज्ञान में अभिप्रेरक तीन अपेक्षाकृत स्वतंत्र प्रकार की मानसिक परिघटनाओं ( phenomena ) को कहा जाता है, जो आपस में घनिष्ठतः संबद्ध ( related, associated ) तो हैं, किंतु एक नहीं है। इनमें सर्वप्रथम वे अभिप्रेरक आते हैं, जो मनुष्य की आवश्यकताओं की तुष्टि की ओर लक्षित सक्रियता के लिए अभिप्रेरणा का काम करते हैं। इस दृष्टि से देखे जाने पर अभिप्रेरक मनुष्य की सामान्यतः क्रियाशीलता का और मनुष्य को सक्रियता के लिए जागृत करने वाली आवश्यकताओं का स्रोत है।

दूसरे, अभिप्रेरक क्रियाशीलता की वस्तुओं को इंगित करते हैं और बताते हैं कि मनुष्य ने किसी ख़ास स्थिति में किसी ख़ास ढंग से ही व्यवहार क्यों किया है। इस अर्थ में अभिप्रेरकों को मनुष्य द्वारा चुने गए व्यवहार के एक निश्चित ढंग के पीछे छिपे कारणों का समानार्थक समझा जा सकता है और अपनी समग्रता में वे मनुष्य के व्यक्तित्व की अभिमुखता ( personality orientation ) के परिचायक होते हैं।

तीसरे, अभिप्रेरक मनुष्य के स्वतःनियमन ( self-regulation ) के साधन, यानि अपने व्यवहार तथा सक्रियता को नियंत्रित ( control ) करने का उपकरण हैं। इन साधनों में संवेगों, इच्छाओं, अंतर्नोदों, आदि को शामिल किया जाता है। संवेग मनुष्य द्वारा अपनी क्रिया के व्यक्तिगत महत्त्व का मूल्यांकन हैं और यदि क्रिया उसकी सक्रियता के अंतिम लक्ष्य से मेल नहीं खाती, तो संवेग उस क्रिया की सामान्य दिशा को बदल देते हैं, मनुष्य के व्यवहार को पुनर्गठित ( reconstituted ) करते हैं और मूल उत्प्रेरकों के प्रबलन ( reinforcement ) के लिए नये उत्प्रेरक लाते हैं।

संकल्पात्मक क्रिया में उसकी अभिप्रेरणा के उपरोक्त तीनों प्रकारों अथवा पहलुओं - क्रियाशीलता का स्रोत, उसकी दिशा और स्वतःनियमन के साधन - का समावेश रहता है।

संकल्पात्मक क्रिया के घटक

आवश्यकताओं से पैदा होनेवाले अभिप्रेरक मनुष्य को कुछ क्रियाएं करने को प्रोत्साहित करते हैं और कुछ क्रियाएं करने से रोकते हैं। मनुष्य को अपने अभिप्रेरकों का कितना ज्ञान है, इसे देखते हुए अभिप्रेरकों को अंतर्नोदों और आकांक्षाओं में बांटा जाता है।

अंतर्नोद सक्रियता का ऐसा अभिप्रेरक है, जो अभी पूरी तरह न समझी गई, न पहचानी गई आवश्यकता का प्रतिनिधित्व करता है। किसी निश्चित व्यक्ति के प्रति अंतर्नोद की अभिव्यक्ति यह है कि मनुष्य को उस व्यक्ति को देखते ही, उसकी आवाज़ सुनते ही हर्ष अनुभव होता है, और वह उससे, प्रायः अनजाने ही, मिलना, बातें करना चाहता है। किंतु कभी-कभी मनुष्य अपने हर्ष के कारण से अनभिज्ञ भी हो सकता है। अंतर्नोद अस्पष्ट और अव्यक्त होते हैं।

आकांक्षाएं सक्रियता के वे अभिप्रेरक हैं, जिनकी विशेषता है उनके मूल में निहित आवश्यकताओं की मनुष्य को चेतना। प्रायः मनुष्य अपनी आवश्यकता की वस्तु को ही नहीं जानता, अपितु उसकी तुष्टि के संभावित उपाय भी जानता है। गरमी में चिलचिलाती धूप में प्यास लगने पर आदमी छाया और शीतल जल के बारे में सोचने लग जाता है।

सक्रियता के अभिप्रेरक मनुष्य के जीवन की परिस्थितियों और अपनी आवश्यकताओं की उसकी चेतना को प्रतिबिंबित करते हैं। मनुष्य को कभी कोई अभिप्रेरक अधिक महत्त्वपूर्ण लगते हैं, तो कभी कोई। उदाहरण के लिए, अपने मित्र के साथ सिनेमा जाने की अपेक्षाकृत गौण इच्छा कभी-कभी किशोर के लिए अपनी पढ़ाई करने की आवश्यकता से अधिक महत्त्वपूर्ण प्रतीत हो सकती है। विभिन्न उत्प्रेरकों के बीच से किसी एक ( या कुछेक ) को चुनने की आवश्यकता से पैदा होनेवाले अभिप्रेरकों के द्वंद में उच्चतर क़िस्म के अभिप्रेरक, यानि जिनके मूल में सामाजिक हित ( social interests ) हैं, वे अभिप्रेरक स्वार्थसिद्धि की ओर लक्षित निम्नतर क़िस्म के अभिप्रेरकों से टकरा सकते हैं। यह संघर्ष कभी-कभी मनुष्य के लिए बड़ी पीड़ा तथा चिंता का कारण बनता है, किंतु कभी-कभी वह विभिन्न विकल्पों के बारे में शांतिमय बहस चलाए जाने और हर विकल्प का सभी पहलुओं से मूल्यांकन किए जाने का रूप भी ले सकता है। उदाहरण के लिए, किसी छात्र के लिए यह तय करने में कठिनाई हो सकती है कि शाम को पुस्तकालय जाए या थियेटर, अथवा अपने मित्र के किसी बेईमानीभरे काम की वज़ह से उससे मैत्री तोड़ने का निर्णय करते समय कर्तव्य की भावना और मित्र से लगाव की भावना के बीच टकराव की पीड़ा सहनी पड़ सकती है। अभिप्रेरकों के इस संघर्ष में निर्णायक भूमिका कर्तव्य की भावना, विश्व-दृष्टिकोण तथा नैतिक मान्यताओं की होती हैं

अभिप्रेरकों के संयत विश्लेषण ( analysis ) अथवा संघर्ष ( struggle ) के परिणामस्वरूप मनुष्य कोई निश्चित निर्णय करता है, यानी लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के साधन निर्धारित करता है। इस निर्णय पर या तो तुरंत अमल किया जा सकता है या अमल को टाला जा सकता है। टालने की स्थिति में निर्णय एक दीर्घकालिक इरादे ( intention ) का रूप ले लेता है। इरादे का निर्णय लिए जाने और उसपर अमल के बीच की अवधि में मनुष्य के व्यवहार पर नियामक ( regulatory ) प्रभाव पड़ता है ( उसके बारे में सोचता रहना, उससे संबंधित तैयारी करते रहना, उसे जांचते-परखते रहना, आदि )। कभी-कभी इरादा त्यागा जा सकता है, निर्णय बदला जा सकता है या काम को अधूरा छोड़ा जा सकता है। किंतु यदि हर बार या ज़्यादातर, निर्णय को क्रियान्वित नहीं किया जाता, तो यह दुर्बल इच्छाशक्ति का परिचायक होता है।

निर्णय पर अमल ( implementation of decision ) संकल्पात्मक क्रिया का अंतिम चरण है और मनुष्य की इच्छाशक्ति को प्रदर्शित करता है। इच्छाशक्ति को कर्म से आंका जाना चाहिए, न कि उदात्त अभिप्रेरकों, दृढ़ निर्णयों और नेक इरादों से। कार्यों का विश्लेषण मनुष्य के अभिप्रेरकों को समझने की कुंजी है और अपनी बारी में अभिप्रेरकों का ज्ञान विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य के व्यवहार का पूर्वानुमान करना संभव बनाता है।

संकल्पात्मक प्रयास

संकल्पात्मक क्रिया के मुख्य घटकों - निर्णय लेना और उसपर अमल करना - को साकार बनाने के लिए प्रायः संकल्पात्मक प्रयास ( volitive efforts ) की आवश्यकता होती है, जो एक विशिष्ट संवेगात्मक अवस्था है। संकल्पात्मक प्रयास को यूं परिभाषित किया जा सकता है : यह संवेगात्मक खिंचाव का वह रूप है, जो मनुष्य की मानसिक शक्तियों ( स्मृति, चिंतन, कल्पना, आदि ) को जुटाता है, क्रिया के लिए अतिरिक्त अभिप्रेरक पैदा करता है और काफ़ी अधिक तनाव की अवस्था के रूप में अनुभव किया जाता है

इच्छाशक्ति या संकल्प के प्रयास से मनुष्य कुछ अभिप्रेरकों को निष्प्रभावी और अन्य को अधिकतम प्रभावी बना सकता है। कर्तव्य-बोध वश किया जानेवाला प्रयास बाह्य बाधाओं ( किसी कठिन समस्या को हल करने में, थकान की अवस्था में, आदि ) और आंतरिक कठिनाइयों ( किसी दिलचस्प पुस्तक को पढ़ने से अपने को न रोक पाना, दिनचर्या का पालन करने की अनिच्छा, आदि ) को लांघने के लिए मनुष्य की मानसिक शक्तियों को एकजुट करता है। संकल्पात्मक प्रयास के फलस्वरूप आलस्य, भय, थकान, आदि पर विजय पाने से मनुष्य को बड़ा नैतिक संतोष मिलता है और इसे वह अपने ऊपर विजय के रूप में अनुभव करता है।

बाह्य बाधा को लांघने के लिए संकल्पात्मक प्रयास की आवश्यकता तब होती है, जब उसे ऐसी आंतरिक कठिनाई के तौर पर, ऐसी आंतरिक बाधा के तौर पर अनुभव किया जाता है, जिसे अवश्य लांघा जाना है।

इसकी एक सरल सी मिसाल देखें। यदि हम फ़र्श पर एक मीटर के फ़ासले पर रेखा खींचकर इस बाधा ( फ़ासले ) को लांघने का प्रयत्न करें, तो इसमें हमें कोई कठिनाई नहीं होगी और कोई विशेष प्रयास न करना पड़ेगा। किंतु यदि पर्वत पर चढ़ते हुए बर्फ़ में उतनी ही चौडी़ दरार सामने आ जाए, तो इसे एक गंभीर बाधा समझा जाएगा और इसे लांघने के लिए हमें काफ़ी इच्छाशक्ति जुटानी होगी। फिर भी पहाड़ों में इस डग के भरे जाने से दो अभिप्रेरकों - आत्मरक्षा की भावना और कर्तव्य ( उदाहरणार्थ, ख़तरे में पड़े साथी की सहायता करने के कर्तव्य ) की पूर्ति की भावना - के बीच संघर्ष चलता है। यदि जीत पहले अभिप्रेरक की हुई, तो पर्वतारोही डरकर पीछे खिसक जाएगा और यदि कर्तव्य-भावना अधिक बलवती सिद्ध हुई, तो अपने भय पर काबू पाकर बाधा को लांघ जाएगा।

संकल्पात्मक प्रयास हर शौर्यपूर्ण कर्म का अभिन्न अंग होता है। संकल्प, इच्छाशक्ति से काम लेना दृढ़ चरित्र के निर्माण की एक आवश्यक पूर्वापेक्षा है। हर राष्ट्र का इतिहास शौर्यपूर्ण कारनामों से भरा हुआ है और उनमें से हर कारनामे को संकल्पात्मक क्रिया की मिसाल समझा जा सकता है।



इस बार इतना ही।

जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।

शुक्रिया।

समय

1 टिप्पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत महत्वपूर्ण अभ्यास।

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