शनिवार, 17 दिसंबर 2011

बौद्धिक योग्यताएं, सक्रियता-प्रणाली और स्वभाव


हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक अभिलक्षणों को समझने की कड़ी के रूप में पढ़ाई तथा श्रम-सक्रियता में स्वभाव की भूमिका को समझने की कोशिश की थी, इस बार हम बौद्धिक योग्यताएं, सक्रियता-प्रणाली और स्वभाव पर चर्चा करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय  अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



बौद्धिक योग्यताएं, सक्रियता-प्रणाली और स्वभाव

बौद्धिक योग्यताओं के स्तर और स्वभाव के बीच संबंध की संभावना विषयक विशेष अध्ययन ने दिखाया है कि उच्च बौद्धिक योग्यताओंवाले व्यक्तियों के स्वभावों में बड़ा अंतर हो सकता है। इसी तरह समान स्वभाव वाले बड़ी ही भिन्न बौद्धिक योग्यताएं प्रदर्शित कर सकते हैं। बेशक बौद्धिक सक्रियता को स्वभाव से पृथक नहीं किया जा सकता, जो मानसिक सक्रियताओं की गति तथा धाराप्रवाहिता, ध्यान की स्थिरता तथा परिवर्तनशीलता, काम में ‘प्रवृत्त’ होने की गतिकी, काम के दौरान संवेगात्मक आत्म-नियंत्रण और तंत्रिका-तनाव तथा क्लांति ( stress and fatigue ) की मात्रा जैसे अभिलक्षणों को प्रभावित करता है। किंतु सक्रियता के ढंग तथा शैली ( style ) को प्रभावित करनेवाली स्वभाव की विशेषताएं, स्वयं बौद्धिक योग्यताओं का निर्धारण नहीं करतीं। स्वभाव की विशेषताएं मनुष्य के काम के ढंग तथा तरीक़ों का तो निर्धारण करती है, किंतु उसकी उपलब्धियों के स्तर का नहीं। अपनी बारी में मनुष्य की बौद्धिक योग्यताएं ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करती हैं कि जिनमें वह अपने स्वभाव की कमियों की प्रतिपूर्ति ( compensation ) कर सकता है

इसकी मिसाल के तौर पर हम नीचे उत्तम अंकों के साथ स्कूली शिक्षा समाप्त करनेवाले दो नवयुवकों का तुलनात्मक मनोवैज्ञानिक चित्र पेश करेंगे।

अमित सक्रिय तथा उर्जावान नवयुवक है। वह सामान्यतः अपने काम में दिलचस्पी लेता है और अन्य लोगों पर कोई ध्यान नहीं देता। वह एक साथ कई काम कर सकता है, पेचीदा काम और बदलते हालात उसकी उर्जा को कम नहीं करते। किंतु हिमांशु अपना काम दूसरे ढंग से करता है। उसे अपना होमवर्क करने में बड़ा समय लगता है, तैयारीवाले चरण के बिना उसका काम नहीं चल पाता। छोटी-छोटी बाधाएं और अप्रत्याशित परिस्थितियां भी उसे देर तक सोचने को विवश कर देती हैं। अमित को, जो सदा बड़ी फुर्ती से काम करता है, आराम के लिए भी बहुत कम समय चाहिए। स्कूल से पैदल घर लौटना, दो-चार इशर-उधर की बातें, और जो सबसे बड़ी चीज़ है, काम का बदलाव उसकी शक्ति की बहाली के लिए पर्याप्त है। जहां तक हिमांशु का संबंध है, तो वह पाठों के बाद अपने को थका हुआ अनुभव करता है और अन्य कोई बौद्धिक कार्य शुरू करने से पहले उसे दो घंटे आराम की जरूरत होती है।

नई सामग्री और उसे दोहराने के बारे में दोनों नवयुवकों के रवैयों ( attitudes ) का अंतर भी बड़ा महत्त्वपूर्ण है, जिन पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि वे उनकी मनोरचना की विशेषताओं का अच्छा परिचय देते हैं। शिक्षक जब नई सामग्री पढ़ाता है, तो अमित उसे बहुत चाव से सुनता है। उसे कोई भी पाठ्यपुस्तक पहली बार पढ़कर अत्यंत संतोष मिलता है। नये विषय की कठिनता उसके मस्तिष्क के लिए एक चुनौती होती है और उसे वह सहर्ष स्वीकार करता है। नयापन उसे उत्साहित और उत्तेजित करता है, इसके विपरीत दोहराने का काम उसे ज़्यादा आकर्षित नहीं करता और वह पाठों को दोहराने के बजाए अन्य काम करना पसंद करता है। हिमांशु के साथ बिल्कुल दूसरी बात है, उसे दोहराने का काम सबसे ज़्यादा पसंद है। नई सामग्री भी उसे रुचिकर लगती है। वह सोचने वाला और जिज्ञासू छात्र है, किंतु शिक्षक के विषय को देर तक समझाते रहना उसे थका डालता है। उसे नई सामग्री को दिमाग़ में बैठाने में समय लगता है। किंतु यदि दोहराने का पाठ हो, तो तब दूसरी ही बात होती है। सामग्री का वह आदि हो चुका होता है, मुख्य मुद्दों और संकल्पनाओं ( concepts ) वह परिचित हो चुका होता है और इसीलिए वह अपने आत्म-विश्वास तथा कथनों की परिशुद्धता और प्रोढ़ता से श्रोताओं को चकित कर सकता है।

अमित और हिमांशु संवेगों के मामले में एक दूसरे से बहुत भिन्न हैं, पहला जल्दी क्रुद्ध हो जाता है, जबकि दूसरा जल्दी द्रवित तथा मुग्ध होता है।

इन दो नवयुवकों की पृष्ठभूमि और प्रेक्षण ( observation ) से प्राप्त सामग्री से उनके स्वभाव के बारे में निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। सभी तथ्य यह बताते हैं कि अमित का तंत्रिका-तंत्र प्रबल असंतुलित की श्रेणी में आता है और उसके स्वभाव में पित्तप्रकृति ( कोपशीलता ) का प्राधान्य है। इसके विपरीत हिमांशु संभवतः दुर्बल श्रेणी में आता है और विषादी स्वभाव के कतिपय लक्षणों का प्रदर्शन करता है। किंतु उल्लेखनीय है कि दुर्बल तंत्रिका-तंत्र से उसके कक्षा का एक सर्वोत्तम छात्र बनने और अपने में उच्च बौद्धिक योग्यताएं विकसित करने में बाधा नहीं पड़ी। अंतिम विश्लेषण में हम पाते हैं कि हिमांशु की तुलना में अमित की श्रेष्ठता सापेक्ष ( relative ) है। निस्संदेह, तत्काल प्रतिक्रियाएं और अपने को आसानी से नये कार्यभार के अनुरूप बदलने की योग्यता अत्यंत मूल्यवान गुण है। किंतु अमित अपनी सारी बौद्धिक शक्ति जैसे कि एक साथ झौंक देता है, जबकि हिमांशु अपना रास्ता टटोलते और धीरे-धीरे तथा अनिश्चय के साथ आगे बढ़ते हुए विषय में, उसकी पेचीदगियों तथा बारीकियों में बहुत गहराई तक पैठने की क्षमता रखता है। हिमांशु के बौद्धिक कार्य का दक्षता-स्तर ( efficiency level ) मात्रात्मक ( quantitative ) रूप से नीचा है, किंतु गुणात्मक ( qualitative ) दृष्टि से वह अमित के कार्य से किसी भी प्रकार हीनतर नहीं है। वास्तव में हिमांशु की सोचने की प्रक्रिया का धीमापन, जिसका कारण उसका दुर्बल तंत्रिका-तंत्र है, गहराई में पैठने की एक पूर्वापेक्षा बन जाता है।

क्रियाशीलता के स्तर और गतिशीलता के स्तर जैसे स्वभाव के अभिलक्षणों का पढ़ाई की कारगरता ( effectiveness ) पर बहुत ही विभिन्न क़िस्मों का प्रभाव पड़ सकता है। सब कुछ इसपर निर्भर है कि मनुष्य इन या उन गतिक गुणों का कैसे इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए, निम्न बौद्धिक क्रियाशीलता जैसी कमी की प्रायः उच्च परिशुद्धता तथा सतर्कता द्वारा प्रतिपूर्ति कर ली जाती है। सामान्यतः मनुष्य की स्वभावगत विशेषताएं ही उसे कार्य की सर्वोत्तम प्रणाली या ढंग सुझा देती है। इसमें संदेह नहीं कि हर प्रकार के स्वभाव के अपने ही लाभ हैं।



इस बार इतना ही।

जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।

शुक्रिया।

समय

4 टिप्पणियां:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

कुछ विस्तार की आवश्यकता थी यहाँ। इतना तो कम लगा। लेकिन कुछ तो लाभ मिला ही यहाँ आने पर।

ZEAL ने कहा…

Very informative and beautiful post !

Yudhishter Lal Chopra. Greater Noida. ने कहा…

Hamare Kalpnik bhay aur samaj ka hamare prti vyavhar hamari karyashaili aur swabhav ko prabhavit karta he aur yadi hum bhi apne prati nakaratmak drishthikon rakhte hain to heenbhawna ka shikar hokar apni srijnatmak shakti aur apne vyaktiv par pratikool prabhav parne se nahin rok sakte.Isliye kalpnik bhay aur doosron ki apne prati anavashyak baaton par na dene ki aadat dalen.

L.Goswami ने कहा…

उदाहरण अच्छा था....

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