हे मानवश्रेष्ठों,
यहां
पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की
जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक अभिलक्षणों की कड़ी
के रूप में ‘चरित्र’ की संरचना के अंतर्गत चारित्रिक गुण तथा व्यक्ति के दृष्टिकोण पर चर्चा की थी, इस बार हम ‘मनुष्य के आचरण-व्यवहार के कार्यक्रम’ के रूप में चरित्र को समझने की कोशिश करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
‘मनुष्य के आचरण-व्यवहार के कार्यक्रम’ के रूप में चरित्र
मनुष्य
की सक्रियता, उसका आचरण-व्यवहार ( conduct - behavior ), सबसे पहले, उन
लक्ष्यों से निर्धारित होता है, जो वह अपने समक्ष रखता है। उसके
आचरण-व्यवहार तथा कार्यक्रम का मुख्य निर्धारक सदैव उसका व्यक्तित्व-रुझान
( personality-trends), यानि उसके हितों, आदर्शों तथा विश्वासों का कुल
योग होता है। परंतु दो मनुष्य, जिनके बहुत ही एक जैसे वैयक्तिक रुझान में
एक जैसे लक्ष्य एक दूसरे से मेल खाते हैं, अपने लक्ष्यों की सिद्धी के
साधनों के चयन में एक दूसरे से सारभूत रूप से भिन्न हो सकते हैं। इन
अंतरों के पीछे व्यक्ति के चरित्र की विशिष्टताएं होती हैं।
मनुष्य के चरित्र में, यह कहा जा सकता है, लाक्षणिक परिस्थितियों में उसके लाक्षणिक आचरण-व्यवहार का कार्यक्रम होता है।
एक अध्यापक अपने छात्र के चरित्र के बारे में भली-भांति जानने के कारण
उसके बारे में यह बताता है, ‘मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वह असंयत
हो जाएगा, बहुत-सी बेकार की बाते करेगा, शायद अशिष्ट और अन्यायपूर्ण ढंग
से पेश आएगा, पर फिर अपने आचरण-व्यवहार पर उसे खेद होगा, प्रायश्चित की
मुद्रा धारण किए हुए इधर--उधर चक्कर काटता रहेगा और अंततः अपने अपराध का
निवारण करने के लिए यथासंभव सब कुछ करेगा।’ चारित्रिक गुणों में, अतएव,
कोई निश्चित प्रेरक शक्ति होती है, वह तनावभरी परिस्थितियों में पूरी
मात्रा में प्रकट होती है, जब मनुष्य को विवश होकर निर्णय करना पड़ता है,
बड़ी कठिनाइयों पर काबू पाना पड़ता है।
चरित्र की दृष्टि से
कृतसंकल्प ( resolute ) मनुष्य, अभिप्रेरणों ( motivations ) के किसी लंबे
संघर्ष के बिना ही उत्प्रेरणा ( inducements ) से आगे बढ़कर कार्य-क्षेत्र
में पदार्पण ( debut ) करता है। चरित्र के एक गुण के रूप में
व्यवहार-कुशलता के कारण मनुष्य दूसरे लोगों के साथ संवाद में सावधानी
बरतता है और नाना परिस्थितियों तथा समस्याओं को ध्यान में रखता है, जो
उसके लिए सारभूत हो सकती हैं।
उपलब्धिमूलक प्रेरणा
( achievement oriented motivation ) को भी चरित्र का एक गुण माना जा सकता
है, उसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्यकलाप में, विशेष रूप से दूसरे लोगों
के साथ प्रतिद्वंद्विता में सफलता प्राप्त करने की कर्ता की आवश्यकता आ
जाती है। यह गुण, बच्चे की परवरिश की प्रक्रिया में, सफलताओं के लिए
विधिवत तथा वैयक्तिक रूप से उल्लेखनीय प्रशंसा और विफलताओं के लिए दंड के
फलस्वरूप गठित होता है।
चरित्र संबंधी गुणों के प्रथम शोधकर्मियों
के अनुसार, उपलब्धिमूलक अभिप्रेरणा स्कूलपूर्व आयु में गठित होती है, फिर
भी यह दावा नित्यप्रति के जीवन के तथ्यों से मेल नहीं खाता, जो बताते हैं
कि अन्य गुणों की भांति व्यक्तित्व के इन या उन गुणों का गठन आरंभिक
बाल्यकाल तक सीमित नहीं होता। संबद्ध व्यक्तित्व के विकास के इतिहास पर
निर्भर करते हुए वह या तो सफलता की उपलब्धि
की ओर उन्मुख हो सकता है ( इस सूरत में मनुष्य जोखिम मोल लेता है, पहल,
प्रतियोगितात्मक क्रियाशीलता, आदि प्रदर्शित करने का कोई मौका हाथ से नहीं
जाने देता ), अथवा विफलता से बचने
की ओर उन्मुख हो सकता है ( इस सूरत में वह जोखिम मोल लेने, दायित्व ग्रहण
करने से कतराता है, पहल दिखाने से बचता है, किसी अनिश्चित हालात में
अहस्तक्षेप की स्थिति अपनाता है, आदि )।
चरित्र में विशेष विधियों
की सहायता से प्रकाश में लायी जाने वाली उपलब्धिमूलक अभिप्रेरणा एक
निश्चित आचरण-व्यवहार कार्यक्रम इंगित करती है और लाक्षणिक परिस्थितियों
में मनुष्य के कार्यकलाप की दिशा को पहले से बताना संभव बना देती है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं
के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता
है।
शुक्रिया।
समय
1 टिप्पणियां:
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