हे मानवश्रेष्ठों,
यहां
पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की
जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक अभिलक्षणों की कड़ी
के रूप में ‘योग्यता’ के अंतर्गत प्रतिभा की संरचना को समझने की कोशिश की थी, इस बार हम प्रतिभा तथा शिल्पकारिता पर चर्चा करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
प्रतिभा तथा शिल्पकारिता
( talent and craftsmanship )
सामान्य
तथा विशेष गुणों के योग के रूप में प्रतिभा ( talent ), जैसा कि यहां पहले
कहा जा चुका है, सफल सृजन-सक्रियता ( successful creation-activity ) से
अधिक और कुछ नहीं है, वह शिल्पकारिता का मात्र पूर्वाधार है, स्वयं शिल्पकारिता ( craftsmanship ) नहीं। किसी न किसी शिल्प
( craft ) में प्रवीण बनने के लिए ( यानि अध्यापक, डॉक्टर, विमानचालक,
लेखक, जिम्नास्ट, शतरंज का खिलाड़ी, आदि बनने के लिए ) अत्यधिक परिश्रम
करना आवश्यक है। प्रतिभा गुणी व्यक्ति को श्रम से मुक्त
नहीं करती, अपितु उससे और ज़्यादा, सृजनशील, कठिन श्रम की अपेक्षा करती है।
जिन लोगों की प्रतिभा को पूरे संसार की मान्यता मिली, वे सब बिना किसी
अपवाद के श्रम-क्षेत्र के महारथी थे। केवल श्रम की बदौलत ही वे प्रवीणता
के उच्चतम स्तर पर पहुंचे और पूरे विश्व में विख्यात बने।
श्रम
की प्रक्रिया में मनुष्य जीवन का अनुभव, कौशल तथा आदतें ग्रहण करता है,
जिनके बिना किसी भी क्षेत्र में सृजनशील कार्यकलाप असंभव है।
सृजन-सक्रियता में प्रेरणा, उत्साह
की अवस्था, मानसिक शक्तियों का उभार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
प्रेरणा को परंपरागत रूप से प्रतिभा का अविच्छेद्य अंग माना जाता है।
परंतु सृजन-सक्रियता में प्रेरणा को श्रम के, जो उसका आधार होता है,
मुक़ाबले में रखने का कोई कारण नहीं है। प्रेरणा इल्हाम जैसी कोई चीज़ नहीं
है, वह तो केवल सृजनात्मक कार्यकलाप का ऐसा तत्व है, जो गहन प्रारंभिक
कार्य से उत्पन्न होता है। विज्ञान, कला अथवा इंजीनियरिंग में किसी प्रमुख
समस्या के समाधान के लिए ध्यान का अत्यधिक संकेन्द्रण ( concentration ),
स्मरण-शक्ति, कल्पना-शक्ति तथा बौद्धिक शक्तियों की एकजुटता प्रेरणा की
अभिलाक्षणिकताएं ( characteristics ) हैं।
यदि प्रतिभा संभावना (
possibility ) है, तो शिल्पकारिता यथार्थ ( reality ) बननेवाली संभावना
है। अतः शिल्पकारिता सक्रियता में प्रतिभा की अभिव्यक्ति है। वह कतिपय
कौशलों तथा आदतों के कुल में ही नहीं, अपितु किसी
भी तरह की श्रम-संक्रियाओं को, जो किसी कार्यभार के सृजनशील समाधान के लिए
आवश्यक सिद्ध हो सकती हैं, पूर्ण करने के लिए मानसिक तत्परता में भी
प्रदर्शित होती है। यह ठीक ही कहा जाता है कि शिल्पकारिता उसे कहते
हैं, जब क्या और कैसे एक साथ चलते हैं, और इसमें साथ ही इस बात पर ज़ोर
दिया जाना चाहिए कि शिल्पकारिता सृजनशील समस्या के सार के मूर्तकरण तथा
उसके समाधान की विधियों की खोज के बीच की खाई पाट देती है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं
के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता
है।
शुक्रिया।
समय
2 टिप्पणियां:
Absolutely right......Had uploaded a video which says the similar things pl watch.....http://www.youtube.com/watch?v=E-R8gfbump0&list=UUpLiThSOA3u0BQj-cAIKRsw&index=10&feature=plcp
जन्मजात प्रतिभा और प्रवीणता के विभ्रम से मुक्त करने और श्रम की महत्ता को स्थपित करने में यह पोस्ट भी खरा उतरता है. धन्यवाद.
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