एक नई श्रृंखला की शुरूआत
हे मानवश्रेष्ठों,
हे मानवश्रेष्ठों,
हम
यहां काफ़ी समय पहले दर्शन पर एक श्रृंखला प्रस्तुत कर चुके हैं। दर्शन की
उस प्रारंभिक यात्रा में हमने दर्शन की संकल्पनाओं तथा दर्शन और चेतना के
संबंधों को समझने की कोशिश की थी। वह सामग्री यहां उपलब्ध है ही, साथ ही
उसका एक पीडीएफ़ डाउनलोड़ लिंक ‘दर्शन और चेतना’
भी साइड़बार में प्रदर्शित है। इच्छुक मानवश्रेष्ठ उससे पुनः गुजर सकते
हैं। अब हमारी योजना है कि दर्शन पर उस श्रृंखला को आगे बढ़ाया जाए और वहां
प्रयुक्त संकल्पना द्वंद्ववाद ( dialectics ) को जिसे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ( dialectical materialism ) के अंतर्गत समझा जाता है, आगे बढ़ाया जाए और इसे जानने, समझने और द्वंद्वात्मक पद्धतियों ( dialectical methods ) के प्रयोग से परिचित होने की कोशिशें शुरू की जाएं।
हम
इस श्रृंखला में द्वंद्ववाद, द्वंद्वात्मक पद्धतियों और द्वंद्वात्मक
भौतिकवाद तथा इससे संबंधित विभिन्न संकल्पनाओं/अवधारणाओं को समझने की
कोशिश करेंगे। हम देखेंगे कि सामान्य जीवन में हम इन दार्शनिक अवधारणाओं
से अपरिचित होते हुए भी, जीवन से मिली सीख के अनुसार ही द्वंद्वात्मक
चिंतन और पद्धतियों का प्रयोग करते हैं, निर्णय और तदनुकूल व्यवहार भी
करते हैं। परंतु यह भी सही है कि कई बार, कई जगह हम अपने वैचारिक
अनुकूलनों के प्रभाव या सटीक विश्लेषण-संश्लेषण के अभाव के कारण कई
परिघटनाओं की समुचित व्याख्या नहीं कर पाते, सही समझ नहीं बना पाते और
तदनुकूल ही हमारे निर्णय और व्यवहार भी प्रभावित होते हैं। इस श्रृंखला से
गुजरकर हम निश्चित ही, अपनी चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार को अधिक सटीक तथा
अधिक बेहतर बनाने में अधिक सक्षम हो पाएंगे, अपने व्यक्तित्व और समझ का
परिष्कार कर पाएंगे।
अगली बार से इसकी औपचारिक प्रस्तुति शुरू की जाएगी।
आलोचनात्मक संवादों और नई जिज्ञासाओं का स्वागत रहेगा ही।
शुक्रिया।
समय
1 टिप्पणियां:
बहुत ही कमाल का लेख.
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