हे मानवश्रेष्ठों,
गुण की संकल्पना
इस बार इतना ही।
समय
यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने द्वंद्ववाद के नियमों के अंतर्गत विरोधियों की एकता तथा संघर्ष के नियम का सार प्रस्तुत किया था, अब हम द्वंद्ववाद के दूसरे नियम की ओर बढ़ेंगे और इस बार गुण की संकल्पना पर चर्चा करेंगे ।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़
समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र
उपस्थित है।
गुण की संकल्पना
अब हम द्वंद्ववाद ( dialectics ) के दूसरे नियम
के व्यवस्थित निरूपण की ओर बढ़ेंगे। यह नियम परिमाणात्मक परिवर्तनों (
quantitative changes ) से गुणात्मक परिवर्तनों ( qualitative changes )
में रूपांतरण का नियम है। अतः इस नियम को समझने और निरुपित करने से पहले गुण ( quality ) और परिमाण ( quantity ) से द्योतित संकल्पनाओं ( concepts ) के अर्थ को स्पष्ट और निश्चित करना जरूरी है।
हम अनगिनत वस्तुओं और घटनाओं ( phenomena ) से घिरे हुए हैं। ये सब अनवरत
गति और परिवर्तन की स्थिति में हैं, परंतु इसके बावजूद हम उन्हें एक दूसरे
से विभेदित ( distinguish ) करते हैं, पहचानते हैं और एक दूसरे के मुक़ाबले
में रखना सीखते हैं। ऐसा इसलिए संभव होता है कि गति और परिवर्तनों के
बावजूद भी उनमें कोई विशिष्ट बात, उनमें से प्रत्येक की कोई ऐसी विशेषता
बची ही रहती है, जो उन्हें अन्य चीज़ों से भिन्न बनाती है। मसलन, जैव
प्रकृति अजैव प्रकृति से भिन्न होती है, पौधों और जानवरों की भिन्न-भिन्न
जातियां हैं तथा विभिन्न युगों में मनुष्य और समाज भिन्न-भिन्न होते हैं।
इसके साथ ही सब चीज़ों में कुछ सर्वनिष्ठ ( common ) बातें भी होती हैं।
जैव और अजैव प्रकृति, दोनों ही भूतद्रव्यीय ( of matter ) हैं। पौधों और
जानवरों की सारी जातियों के जीवन की एकसमान खासियतें होती हैं, इत्यादि।
यानी स्वयं वस्तुगत यथार्थता ( objective reality ) में विभिन्न घटनाओं में एक निश्चित सातत्य ( constancy ) और स्थिरता ( stability ) होती है। उन्हें अन्य घटनाओं व प्रक्रियाओं से विभेदित करनेवाले लक्षण ( features ) दीर्घ तथा अल्पकालावधियों के लिए अपरिवर्तित बने रहते हैं। उनकी इस विशेषता को सामान्यतः संकल्पना ‘गुण’
( quality ) से द्योतित किया जाता है। यानी वस्तुओं के भेद तथा समानताएं,
गुण की संकल्पना से व्यक्त किये जाते हैं। गुण किसी चीज़ के स्वभाव तथा
विशिष्टताओं को व्यक्त करनेवाले मूलभूत लक्षणों की समग्रता ( aggregate )
है। गुण किसी चीज़ के सापेक्ष स्थायित्व और निर्धार्यता की ओर ध्यान दिलाता है, जो कि उस चीज़ के अस्तित्व से संबंधित होती है। चीज़ के गुण में कोई परिवर्तन स्वयं उस चीज़ में होनेवाला परिवर्तन है।
मसलन, किसी जीवित अंगी में उपापचयन ( metabolism ) के बंद होने का मतलब है
उसकी मृत्यु और विनाश, यानी अंगी के अस्तित्व की समाप्ति।
हमें जिस किसी भी घटना से सरोकार होता है, उसे एक प्रणाली ( system ) माना जा सकता है। दर्जनों अंगों तथा उनके उपांगों, उनके विविध संयोजनों तथा उनके बीच संबंधों सहित मानव शरीर,
एक चिकित्सक के लिए एक प्रणाली है ; अपनी सारी कार्यशालाओं, कार्यदलों,
लाइनों, मशीनों और उन्हें जोड़नेवाले तकनीकि कड़ियों तथा संबंधों सहित एक कारख़ाना
( factory ), समाज के लिए एक प्रणाली है। ऐसी प्रत्येक प्रणाली के
क्रियाकलाप ( activity ) तथा अस्तित्व ( existence ) को सुनिश्चित
बनानेवाली मुख्य उपप्रणालियां, तत्व तथा संयोजन एक निश्चित समयावधि तक
कमोबेश स्थिर रहती हैं, उनकी मुख्य विशेषताएं व लक्षण बरक़रार रहते हैं,
जिससे उसका साकल्य ( wholeness ) और निजरूप से साम्य सुनिश्चित रहता है।
अतः ‘गुण’ को इस तरह परिभाषित किया जा सकता है; एक
निश्चित कालावधि के अंदर प्रदत्त प्रणाली के स्थायित्व व अस्तित्व तथा
निजरूप के साथ उसकी तद्रूपता को और साथ ही अन्य प्रणालियों से उसके अंतर
को बनाये रखनेवाले मुख्य तत्वों ( elements ), संयोजनों ( connections ) तथा संबंधों ( relations ) की समग्रता को प्रवर्ग ‘गुण’ ( quality ) या ‘गुणात्मक निश्चायकता’ ( qualitative definiteness ) द्वारा परावर्तित किया जाता है।
गुण की पृथक-पृथक अभिव्यक्तियों ( manifestation ) को अनुगुण
( properties ) कहते हैं, इसीलिए यह अक्सर कहा जाता है कि गुण कुछ
अनुगुणों की स्थायी समग्रता है। उदाहरण के लिए, कार्बनिक पदार्थ ‘शक्कर’
एक नितांत निश्चित गुण है और शक्कर में अंतर्निहित सफ़ेद रंग या मधुर स्वाद
उत्पन्न करने की या पानी में घुलने की इसकी क्षमता, आदि इसके अलग-अलग
अनुगुण हैं। गुण चीज़ों के अपने होते हैं और चीज़ों में परिवर्तन के साथ
परिवर्तित होते हैं। किसी चीज़ का गहन ज्ञान हासिल करने तथा उसके सार को
समझने के लिए उसे अन्य चीज़ों से अलग करना, उनके बीच समानताओं और अंतरों का
पता लगाना और उनके अनुगुणों का वर्गीकरण आवश्यक है।
प्रत्येक चीज़
में अनेकानेक अनुगुण होते हैं और उनमें से किसी एक के बदलने या मिट जाने
से स्वयं उस चीज़ में परिवर्तन नहीं होता है। मसलन, पेट्रोल के लिए रंग
अनिवार्य नहीं है, वह रंगीन हो सकता है या बेरंगा, पर दोनों ही हालातों
में वह पेट्रोल ही रहेगा। लेकिन दूसरी तरफ़, उसकी दहनशीलता उसका मूल अनुगुण
है, और अगर किसी रासायनिक तत्व के संपर्क में आकर वह अपने इस अनुगुण को
गंवा देता है, तो उसके साथ ही उसका गुण भी बदल जायेगा। जब पेट्रोल का यह
गुण ख़त्म हो जाता है, तो वह ईंधन नहीं रहता।
हमारे पास-पास के जगत की सारी वस्तुओं और घटनाओं में अनेक गुण हैं, इसलिए विचाराधीन वस्तु या घटना के बुनियादी ( basic ) तथा ग़ैर-बुनियादी ( non-basic ) गुणों
के बीच अंतर करना आवश्यक है। मसलन, विविध श्रम-क्रियाएं करते समय एक
व्यक्ति एक कार्यशील मनुष्य के रूप में अपने अनुगुण दर्शाता है। इस संदर्भ
में वह एक अकुशल मज़दूर, फ़िटर, ड्राफ़्ट्समैन, डाक्टर, इंजनियर तथा
कार्यकारी अधिकारी, आदि हो सकता है और अन्य रिश्तों में वही व्यक्ति भिन्न
अनुगुणों का प्रदर्शन करता है। मसलन, माता-पिता के संबंध में वह बेटा या
बेटी है, पत्नी के लिए पति है और बच्चों के लिए बाप है। यदि वह किसी संगठन
या राजनैतिक पार्टी से जुड़ा हुआ है तो वहां का एक सक्रिय कार्यकर्ता भी हो
सकता है।
लेकिन किसी एक संबंध में प्रकट होनेवाले और अन्य में ग़ायब
हो जानेवाले अनुगुणों के साथ ही कुछ ऐसे अनुगुण भी होते हैं, जो हर समय
मौजूद रहते हैं। इन अनुगुणों का कुल जोड़ ही वह चीज़ है, जिसे मूल गुण ( basic quality ) कहते हैं। किसी भी चीज़ का मूल गुण उस चीज़ की उत्पत्ति ( genesis ) के समय पैदा होता है और केवल तभी बदलता है, जब वह चीज़ स्वयं बदलती है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।समय
5 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और शबरी के बेर मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
कुछ कुछ समझ में आया :)
सुंदर ।
कोशिश बनी रहेगी ,अच्छी तरह सहेजते -समझते चले जाएँ !
गुण का मूल सदृश है और अनुगुण प्रयोग आधारित अनुभव।
harga hp.उसकी जानकारी दिलचस्प वेब हमेशा उसकी सफलता के लिए धन्यवाद.
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