शनिवार, 24 मई 2014

परिमाण से गुण में रूपांतरण का नियम - दूसरा भाग

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने द्वंद्ववाद के नियमों के अंतर्गत दूसरे नियम परिमाण से गुण में रूपांतरण के नियम पर चर्चा शुरू की थी, इस बार हम उसी चर्चा को आगे बढ़ाएंगे और उसका सार प्रस्तुत करेंगे ।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



परिमाण से गुण में रूपांतरण का नियम - दूसरा भाग
( पिछली बार से जारी...)

परिमाणात्मक ( quantitative ) और गुणात्मक ( qualitative ) परिवर्तनों के अंतर्संबंध ( interrelation ) को व्यवहार में ध्यान में रखना चाहिए। कोई भी वांछित गुण ( desired quality ) केवल परिमाणात्मक तैयारियों के आधार पर ही हासिल किया जा सकता है, कि नये गुणों का आविर्भाव, एक निश्चित परिमाणात्मक संचय ( accumulation ) पर निर्भर होता है। इसी तरह एक नये परिमाण का रास्ता सामान्यतः नये गुण से होकर गुजरता है।

परिमाण से गुण में रूपांतरण का नियम ( law of transformation from quantity to quality ) सार्विक ( universal ) होते हुए भी विभिन्न ठोस दशाओं में विभिन्न तरीक़ो से प्रकट होता है। गुणात्मक परिवर्तनों की छलांगे ( leaps ), प्रकृति, कालावधि तथा महत्त्व में भिन्न-भिन्न होती हैं। पुराने गुण से नये में सीधे संक्रमण होने पर वे तीव्र हो सकती है तथा जब वह संक्रमण कई मध्यवर्ती अवस्थाओं में क़दम ब क़दम हो, तो वे शनैः शनैः हो सकती हैं। मसलन, सामाजिक क्रांति के दौरान राजनीतिक सत्ता का रूपांतरण सामान्यतः द्रुत गति से होता है, जबकि आर्थिक, सामाजिक और विचारधारात्मक रूपांतरण कई अवस्थाओं से गुजरते हुए आम तौर पर धीरे-धीरे होते हैं।

शनैः शनैः होनेवाले परिमाणात्मक तथा शनैः शनैः होनेवाले गुणात्मक परिवर्तनों में भेद करना जरूरी है। पहले में किसी एक चीज़ के गुण में बदलाव नहीं होता और वह एक निश्चित सीमा तक एक-सा बना रहता है, क्योंकि परिमाणात्मक परिवर्तन बुनियादी, गुणात्मक रूपांतरणों के लिए महज एक रास्ता भर बनाते हैं। दूसरे मामले में, वस्तु के गुण में ही सिलसिलेवार शनैः शनैः परिवर्तन होते हैं और उनके फलस्वरूप पुराने से सर्वथा भिन्न नया गुण पैदा हो जाता है। इस प्रकार, किसी भी विकास के दो पक्ष होते हैं - परिमाणात्मक और गुणात्मक परिवर्तन - और यह उनकी अटूट एकता है। विकास केवल परिमाणात्मक या मात्र गुणात्मक परिवर्तन नहीं, बल्कि दोनों की एक अंतर्क्रिया ( interaction ) है। सामाजिक जीवन में क्रमविकास ( evolution ) एक क्रांति ( revolution ) को प्रेरित करता है, जो अपनी बारी में क्रम-विकास को पूर्ण बनाती है।

अभी तक जो कुछ बताया गया है उसका समाहार करने के लिए हम द्वंद्ववाद के दूसरे महत्त्वपूर्ण नियम, परिमाण से गुण में रूपांतरण के नियम को, निम्न सार के रूप में निरूपित कर सकते हैं:

( १ ) प्रत्येक घटना या प्रक्रिया, परिमाण तथा गुण का एकत्व ( unity ) है, दूसरे शब्दों में, इसकी अपनी ही विशिष्ट गुणात्मक और परिमाणात्मक निश्चायकता ( definiteness ) होती है।

( २ ) परिमाणात्मक परिवर्तन क्रमिक ( gradual ), सुचारू ( smooth ) और एक ख़ास सीमा तक सतत ( continuous ) रूप में होते हैं, इस सीमा के अंदर वे गुण में परिवर्तन नहीं लाते। परिमाणात्मक परिवर्तन नियमतः विपर्येय ( reversible ) होते हैं और उनकी विशेषताएं है मान ( magnitude ), कोटि ( degree ) तथा तीव्रता ( intensity )। उन्हें माप ( measurement ) की समुचित इकाइयों ( units ) के द्वारा एक निश्चित संख्या से मापा तथा व्यक्त ( express ) किया जा सकता है।

( ३ ) प्रदत वस्तु या प्रणाली में, इस अंतर्निहित ( inherent ) परिमाप की सीमा से परे के परिमाणात्मक परिवर्तन ऐसे आमूल गुणात्मक परिवर्तनों को जन्म देते हैं, जिनके फलस्वरूप नये गुण का जन्म होता है।

( ४ ) गुणात्मक परिवर्तन एक छलांग ( leap ) में या निरंतरता में क्रमभंग ( break in continuity ) की शक्ल में होते हैं, किंतु छलांग का एक तात्क्षणिक ( instantaneous ) विस्फोट के रूप में होना जरूरी नहीं है। यह कमोबेश काफ़ी समय भी ले सकती है।

( ५ ) छलांग के ज़रिये उत्पन्न नये गुण ( quality ) की विशेषताएं है उसके नये परिमाणात्मक अनुगुण ( properties ) या प्राचल ( parameters ), और परिमाण तथा गुण के एकत्व का एक नया परिमाप।

( ६ ) परिमाणात्मक परिवर्तनों के गुणात्मक में तथा विलोमतः संक्रमण ( transition ) का स्रोत विरोधियों ( opposites ) की एकता और संघर्ष तथा अंतर्विरोधों ( contradictions ) की वृद्धि और उनका समाधान है।

इस तरह, परिमाण से गुण में रूपांतरण का नियम यह दर्शाता है कि विकास के दौरान एक गुणात्मक अवस्था से दूसरी में संक्रमण कैसे होता है। दूसरे शब्दों में, यह नियम विकास के अत्यंत महत्त्वपूर्ण मोडों की विशेषताओं का चित्रण करता है। यह नूतन की उत्पत्ति की प्रक्रिया के एक प्रमुख पक्ष को प्रकाश में लाता है।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।

समय

1 टिप्पणियां:

Neetu Singhal ने कहा…


>> आप किस परिवर्त्तन का समाख्यान कर रहे हैं, सामाजिक , भौगोलिक, सत्तात्मक अथवा कुछ और; कृपया स्पष्ट करें ।

>> 'राजनीतिक सत्ता' वो क्या है, मुझे राजनीतिकरण जैसे शब्दों से भी एलर्जी है, राजकरण का अर्थ न्यायालय होता है.....

एक टिप्पणी भेजें

अगर दिमाग़ में कुछ हलचल हुई हो और बताना चाहें, या संवाद करना चाहें, या फिर अपना ज्ञान बाँटना चाहे, या यूं ही लानते भेजना चाहें। मन में ना रखें। यहां अभिव्यक्त करें।

Related Posts with Thumbnails