हे मानवश्रेष्ठों,
तर्कमूलक संज्ञान या अमूर्त चिंतन - १
( rational cognition or abstract thinking - 1 )
इस बार इतना ही।
समय अविराम
यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञान के द्वंद्वात्मक सिद्धांत के अंतर्गत संवेदनात्मक संज्ञान या जीवंत अवबोधन पर चर्चा की थी, इस बार हम तर्कमूलक संज्ञान या अमूर्त चिंतन को समझने की कोशिश शुरू करेंगे ।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
तर्कमूलक संज्ञान या अमूर्त चिंतन - १
( rational cognition or abstract thinking - 1 )
वस्तुओं
के सार्विक ( universal ), आवश्यक और सारभूत अनुगुण तथा संबंध, उनके
नियमाधीन संपर्क ( law-governed connections ), संवेदनात्मक ज्ञान के लिए अलभ्य ( inaccessible ) होते हैं। इन्हें जानने-समझने का काम चिंतन ( thinking ) की सहायता से संज्ञान की बौद्धिक या तार्किक अवस्था में संपन्न होता है। मानव चिंतन उसे भी समझ लेने में सक्षम है, जो किसी क्षण-विशेष पर देखा नहीं जा सकता या जिसका प्रत्यक्ष प्रेक्षण
( direct observation ) हो ही नहीं सकता। मसलन हमारे संवेदी अंग ( sensory
organs ) पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की दशाओं की या प्रकाश की गति की
रफ़्तार की प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं कर सकते, लेकिन ऐसी प्रक्रियाओं और
घटनाओं का मानसिक बोध ( mental comprehension ) संभव हैं।
चिंतन,
आंतरिक तथा सार्विक संबंधों को प्रकट करने, प्रकृति, समाज में और स्वयं
संज्ञान में हो रहे परिवर्तनों व विकास के नियमों का पता लगाने, हमारे
परिवेशीय जगत के गहनतम रहस्यों का अनावरण ( unravel ) करने में सहायता
करता है। चिंतन, सामाजिक व्यवहार के ऐतिहासिक विकास का एक उत्पाद ( product ) है। यह वास्तविकता ( reality ) का सामान्यीकृत और अप्रत्यक्ष परावर्तन ( reflection ) है।
चिंतन, वास्तविक जगत के साथ, संवेदनात्मक संज्ञान ( sensory cognition )
के द्वारा जुड़ा होता है और इसका सार ( essence ) संवेदी अंगों द्वारा
प्राप्त सूचनाओं को संसाधित ( processing ) करने में निहित है।
वास्तविकता
के सामान्यीकृत संज्ञान के रूप में चिंतन, वस्तुओं, घटनाओं और प्रक्रियाओं
के सामान्य, सारभूत अनुगुणों ( general, essential properties ) को प्रकट
करने की ओर निर्देशित होता है। भाषा के बग़ैर सामान्यीकरण असंभव होता : चिंतन और भाषा एक दूसरे के साथ घनिष्ठता से जुड़े हैं।
वस्तुओं और घटनाओं में से सामान्य को प्रकाश में लाते हुए हम उसे भाषा
में, शब्दों के रूप में व्यक्त करते हैं। भाषा की सामान्यीकरण करनेवाली
भूमिका की ही वजह से एक मनुष्य अपने विचारों को प्रकट कर सकता है और अपनी
बारी में अन्य लोगों के विचारों के बारे में पता लगा सकता है ; वह ज्ञान
का समाहार ( summarise ) कर सकता है और उसे दूसरों को अंतरित ( pass on )
कर सकता है। ( चिंतन पर और विस्तार से `यहां' पढ़ा जा सकता है )
संवेदनात्मक संज्ञान की तरह चिंतन भी निश्चित रूप ( forms ) धारण करता है। ये रूप हैं : संकल्पनाएं ( concepts ), निर्णय ( judgments ) और अनुमान ( inference )। संकल्पना,
चिंतन का एक ऐसा रूप है, जो वस्तुओं और घटनाओं के सामान्य और सारभूत
लक्षणों ( features ) को परावर्तित करता है। इन सामान्य लक्षणों का साकल्य
( totality ), संकल्पना की अंतर्वस्तु ( content ) होता है। भाषा में
संकल्पनाएं शब्दों या शब्द-समूहों में व्यक्त की जाती हैं, जैसे
‘भूतद्रव्य’ ( matter ), ‘अंगी’ ( organism ), ‘सामाजिक-आर्थिक विरचना’ (
socio-economic formation ), आदि। प्रत्येक विज्ञान की संकल्पनाओं की अपनी
ही प्रणाली ( system ) होती है।
ये संकल्पनाएं उसके द्वारा खोजे नियमों को व्यक्त करती हैं और उसके
प्रांरभिक उसूलों ( principles ) को निरूपित करती है। मसलन, दर्शन की
बुनियादी संकल्पनाओं में शामिल हैं भूतद्रव्य, चेतना, गति, कारणता (
causality ), आदि, और राजनीतिक अर्थशास्त्र में मूल्य ( value ), पण्य (
commodity ), आदि की बुनियादी ( basic ) संकल्पनाएं शामिल हैं।
वैज्ञानिक संकल्पनाएं वास्तविकता का सामान्यीकृत परावर्तन हैं। उनमें एक संपूर्ण ऐतिहासिक अवधि के दौरान विज्ञान तथा व्यवहार ( practice ) द्वारा प्राप्त ज्ञान व अनुभव संचित ( accumulated ) होता है।
इसलिए प्रत्येक संकल्पना ज्ञान के विकास में एक प्रकार की संक्षिप्त
विवरणिका ( summary ), वस्तुगत जगत के संज्ञान की एक अवस्था ( stage ),
किसी भी वैज्ञानिक सिद्धांत की श्रृंखला ( chain ) में एक मुख्य कड़ी (
nodal link ) होती है। संकल्पनाओं की सहायता से कोई एक विज्ञान, जारी
परिवर्तनों के कारणों का, उनकी प्रकृति और विशेषताओं का और उनके पीछे
निहित नियमों का स्पष्टीकरण दे सकता है। इसलिए संकल्पनाओं का विराट
संज्ञानात्मक मूल्य है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।समय अविराम
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