हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने यहां सामाजिक-आर्थिक विरचनाओं के सिद्धांत के अंतर्गत सामंतवादी विरचना पर चर्चा की थी, इस बार हम पूंजीवादी विरचना को समझने की कोशिश करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस शृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
पूंजीवादी विरचना - १
(The Capitalist Formation - 1)
पूंजीवादी
उत्पादन पद्धति मूलतः सामंतवाद के अंदर ही एक विशिष्ट संरचना (structure)
या रूप (form) की तरह उत्पन हुई। जब यह एक नयी सामाजिक-आर्थिक विरचना
(socio-economic formation) का आधार बनी, तो उसने सारे सामाजिक संबंधों के
आमूल पुनर्निर्माण (radical restructuring) तथा पुनर्संगठन
(reorganisation) को प्रेरित किया। पूंजीवाद के अंतर्गत समाज का वर्गीय ढांचा बदल गया। सामंत और भूदास की जगह पूंजीपति और मज़दूर ने ले ली। उजरती मज़दूर (hired or waged labour) वर्ग और बुर्जुआ (bourgeoisie) वर्ग, प्रमुख वर्ग (classes) बन गये।
पूर्णतः अधिकारहीन दास और सीमित अधिकारों वाले भूदास की तुलना में मज़दूर
क़ानूनन स्वतंत्र होता है। किंतु पूंजीपति पर उसकी निर्भरता किसी तरह कम
नहीं है, हालांकि इस निर्भरता का रूप ज़रूर भिन्न होता है। मज़दूर
उत्पादन साधनों से वंचित होता है, उसके पास अपना कहने के लिए केवल उसकी
श्रमशक्ति होती है, जिसे बेचकर ही वह जीवननिर्वाह कर सकता है।
पूंजीवादी समाज में पूंजीपति ही श्रमशक्ति को ख़रीद सकता है और इस्तेमाल कर
सकता है। अतः मज़दूर को मजबूर होकर उसके चंगुल में फंसना पड़ता है।
पूंजीवाद
की स्थापना के साथ उत्पादक शक्तियां (productive forces) तेज़ी से बढ़ने
लगीं। यह तीव्र विकास नये, पूंजीवादी उत्पादन संबंधों के कारण हुआ। ये
संबंध उत्पादन के साधनों (means of production) पर बुर्जुआ वर्ग के निजी स्वामित्व
(private ownership) और उत्पादन साधनों से वंचित तथा अपनी श्रम शक्ति
बेचने को विवश उज़रती मज़दूरों के श्रम के शोषण पर आधारित होते हैं।
पूंजीपति, बेशी (surplus) मूल्य ( यानी वह मूल्य जिसे मज़दूर अपनी श्रम शक्ति के मूल्य के अतिरिक्त निर्मित करता है ) मुफ़्त में हस्तगत
कर लेता है। इस तरह पूंजीवादी विरचना में वर्गों के बीच संबंध वैरभावपूर्ण
होते हैं, क्योंकि वे अमीरों द्वारा ग़रीबों के शोषण पर आधारित होते हैं।
परंतु विकसित होती हुई उत्पादक शक्तियां अपने स्वभाव बदलती थीं। मशीनी उत्पादन सामूहिक, संयुक्त श्रम की अपेक्षा करता था। पूंजीवादी विकास के साथ-साथ, उत्पादन अधिकाधिक सामाजिक स्वरूप ग्रहण करता जाता है। उत्पादक शक्तियों का सामाजिक स्वरूप और उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व के बीच बढ़ता हुआ तीव्र अंतर्विरोध पैदा हो गया। यह अंतर्विरोध, वर्ग संघर्ष की बढ़ती तीव्रता में व्यक्त हुआ।
पूंजीवाद
के विकास के फलस्वरूप मज़दूर वर्ग में तेज़ी से वृद्धि हुई और समाज के जीवन
में उसका सापेक्ष महत्व बढ़ गया। मज़दूर वर्ग की वर्ग चेतना भी बढ़ी।
औद्योगिक उत्पादन, सर्वहारा (proletariat) से महती एकजुटता, संगठन,
क्रियाकलाप के समन्वय (co-ordination) तथा उच्चस्तरीय व्यवसायिक प्रशिक्षण
और ज्ञान की अपेक्षा करता था। पूंजीवाद ने सामंती फूट का, समाज के जटिल सोपानक्रमिक (hierarchical) संगठन, क़ानूनों की विभिन्नता का उन्मूलन कर दिया और श्रम तथा पूंजी के एक अविभक्त बाज़ार (market) की रचना की। इन सब बातों से मज़दूर वर्ग के लिए यह समझना अधिक आसान हो गया कि उसके हित पूंजीपतियों के हितों के आमूलतः विरोधी हैं। मार्क्स और एंगेल्स द्वारा विकसित वैज्ञानिक समाजवाद
के सिद्धांत, यानी मौजूदा प्रणाली के क्रांतिकारी रूपांतरण
(transformation) तथा एक वर्गहीन (classless) समाज के निर्माण के सिद्धांत
ने सर्वहारा की वर्ग चेतना में वृद्धि को प्रोत्साहित किया। वैज्ञानिक
समाजवाद, मज़दूर वर्ग की पार्टियों के ज़रिये मज़दूर आंदोलन के साथ जुड़ गया।
इस तरह वैज्ञानिक समाजवाद ने सर्वसाधारण की क्रांतिकारी चेतना की बढ़ती में
मदद की और फलतः वर्ग संघर्ष को विस्तृततर तथा गहनतर बनाया।
१९वीं
सदी के अंत तथा २०वीं सदी के प्रारंभ में पूंजीवाद, प्रगतिशील तथा द्रुत
गति से विकासमान विरचना नहीं रहा। पूंजीवादी उत्पादन संबंधों और सामाजिक
स्वरूप की उत्पादक शक्तियों के बीच गहरे अंतर्विरोधों के कारण उत्पादक
शक्तियों का विकास उससे कहीं ज़्यादा मंद गति से होने लगा, जो निजी
पूंजीवादी स्वामित्व के उन्मूलन के बाद होता। पूंजीवाद के विकास में एक
नयी अवस्था, साम्राज्यवाद (imperialism) की अवस्था चालू हो गयी।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।समय अविराम
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