रविवार, 8 जुलाई 2018

कलात्मक चेतना और कला - ३

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने यहां ‘सामाजिक चेतना के कार्य और रूप’ के अंतर्गत कलात्मक चेतना और कला पर चर्चा को आगे बढ़ाया था, इस बार हम उस चर्चा का समापन करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस शृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



कलात्मक चेतना और कला - ३
( Artistic Consciousness and Art - 3 )

कला, सामाजिक मानसिकता तथा सामान्य चेतना सहित, सामाजिक चेतना के सारे स्तरों पर यथार्थता (reality) को परावर्तित (reflect) करती है। कलाकृतियों में, रचनात्मक व्यक्तित्व की प्रतिभा, अतिकल्पना (fantasy) तथा कल्पनाशीलता मूर्त होती है। समाज का कला पर प्रभाव तथा कला का समाज पर प्रतिप्रभाव कई कारकों (factors) से निर्धारित होता है, जिनमें समाज की सामाजिक संरचना (structure), चेतना के अन्य रूप, एक प्रदत्त ऐतिहासिक अवधि में प्रभावी मानसिक रुख़ (attitude), राष्ट्रीय परंपराएं, सार्वजनिक रुचियां और अंतिम, कलाकार का व्यक्तित्व तथा उसकी व्यष्टिक (individual), अद्वितीय विशेषताएं भी शामिल हैं। कला के विशेष लक्षणों को और एक विशेष युग की कलात्मक चेतना को समुचित रुप से समझना इन कारकों की अंतर्क्रिया (interaction) से ही संभव होता है।

इसी वजह से, एक तरफ़, कलात्मक चेतना तथा कला और, दूसरी तरफ़, सामाजिक सत्व (social being) के बीच कोई सीधी-सादी, सरल निर्भरता नहीं होती है। रंगचित्रण, साहित्य, नाटक आदि में कला, प्रकृति और समाज का दर्पण-सम प्रतिबिंब नहीं होती है। कलाकारों द्वारा सृजित बिंबों में कलात्मक अविष्कार, अतिकल्पना और व्यक्तिगत अनुभव भी तथा वे कठिन समस्याएं भी शामिल होती हैं, जो समाज को आंदोलित करती हैं और जिनका अभी समाधान नहीं हुआ है। कला, व्यक्ति की भावनाओं और चेतना, दोनों को प्रभावित करती हैयह उसके भावनात्मक जगत को समृद्ध बनाती है और साथ ही उसके सामने नैतिक समस्याएं खड़ी कर देती है। 

मसलन, होमर की कविताओं, यूरिपीडस, सोफोक्लस और एसख़िलस की त्रासदियों (tragedies) में, ऐरिस्टोफ़न के प्रहसनों (comedies) तथा गीतात्मक कविताओं में यूनानी कला ने लोगों के जीवन में शुभाशुभ के (अच्छाई और बुराई) के बीच, उदात्त (noble) और क्षुद्र (base), त्रासदीय और प्रहसन, शाश्वत और क्षणिक के बीच सहसंबंध के प्रश्न को पेश किया। शेक्सपियर की कला ने एक ठोस ऐतिहासिक यथार्थता को परावर्तित करते हुए, लोगों के सामने जीवन के अर्थ का (हैमलेट), अपराध की दोषमुक्ति का (मैकबेथ), शुभाशुभ और व्यक्तिगत जिम्मेदारी तथा मानवीय अकृतज्ञता (किंग लियर) के शाश्वत प्रश्न प्रस्तुत किये। सर्वान्तेस की रचनाओं ने जीवन के अर्थ के, सत्य की खोज के, उदात्तता तथा पागलपन के, रूमानी वीरत्व और दैनिक जीवन के उथलेपन के बारे में नाना प्रश्न उठाये। रूसी लेखक लेव तालस्तोय और फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की की रचनाओं का आधुनिक संस्कृति के लिए विराट महत्व है। उन्होंने हमें मानव आत्मा की अतल गहराइयों में झांकने तथा मनुष्य की मानसिकता की क्रियाविधि को समझने में समर्थ बनाया।

प्रत्येक राष्ट्र और जनगण विश्व कला में अपना ही विशेष योगदान करता है, क्योंकि उसकी नियति (destiny), संस्कृति, उसके कलाकारों, संगीतज्ञों, लेखकों और अभिनेताओं की व्यष्टिक, व्यक्तिगत विशेषताएं अद्वितीय होती हैं। अतः बड़े-छोटे, सभी राष्ट्रों की कला का चिरस्थायी (lasting) ऐतिहासिक महत्व होता है। इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि जनगण के इतिहास में आकस्मिक (abrupt) परिवर्तनों की अवधियों में कलात्मक चेतना तथा कला में विशेष तूफ़ानी और चौतरफ़ा उभार आता है।

आधुनिक पूंजीवादी समाज में, और कुछ विकासमान देशों में कला और यथार्थता की समझ अंतर्विरोधी (contradictory) है क्योंकि वे भिन्न-भिन्न सामाजिक समूहों के हितों को परावर्तित करते हैं। पूंजीवादी समाज में आधुनिक कला प्रगतिशील (progressive), प्रतिक्रियावादी (reactionary) तथा रूढ़िपंथी (conservative) प्रवृतियों का मिश्रण है। इसे एक समरूप (homogeneous) चीज के रूप में नहीं लिया जाना चाहिये। जो समाज ऐसी कला को जन्म देता है, वह निस्संदेह अंतर्विरोधी तथा विषमरूप (heterogeneous) है। इसलिए ऐतिहासिक भौतिकवादी दर्शन का उद्देश्य आधुनिक कलात्मक चेतना तथा संपूर्ण कला का आद्योपांत (thoroughly) विश्लेषण करना और उनके सामाजिक कार्यों का पर्दाफ़ाश (expose) करना तथा उनमें निहित मूल्यों (values) और नैतिक तथा सौंदर्यात्मक रुख़ों को गहराई से समझना है। 

आधुनिक कला की जो कृतियां मानवीय व्यक्तित्व के ऊंचे गुणों को बढ़ावा देती हैं, न्याय की उपलब्धि के लिए स्वतंत्रता और सामाजिक परिवर्तनों का आह्वान करती हैं और मानवतावादी परंपराओं और आदर्शों की घोषणा करती हैं, आम ऐतिहासिक प्रकृति के लिए अनुकूल हैं और भविष्य में वे विश्व संस्कृति की निधि (treasury) का अंग बनेंगी।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।

समय अविराम

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