हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में ऐच्छिक स्मरण पर विचार शुरु किया था, इस बार हम उसी चर्चा को और आगे बढ़ाएंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कड़ी के रूप में ऐच्छिक स्मरण पर विचार शुरु किया था, इस बार हम उसी चर्चा को और आगे बढ़ाएंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
ऐच्छिक स्मरण - २
( voluntary memorization )
( voluntary memorization )
जब सामग्री बहुत होती है, जिससे उसे बार-बार दोहराना जरूरी हो जाता है, तो उसे तीन तरीक़ों से याद किया जा सकता है : आंशिकतः ( आंशिक प्रणाली ), पूर्णतः ( अविभाज्य प्रणाली ), और आंशिकतः व पूर्णतः ( संयुक्त प्रणाली )। सबसे अधिक युक्तिसंगत अंतिम प्रणाली है और सबसे कम युक्तिसंगत प्रथम प्रणाली। आंशिक प्रणाली में अलग-अलग भागों को एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से और समष्टि को ध्यान में रखे बिना याद किया जाता है। इसमें धारण-अवधि बहुत कम हो जाती है। इससे अधिक उत्पादक अविभाज्य प्रणाली है, जो कर्ता के सामने सामग्री की सामान्य अंतर्वस्तु प्रस्तुत करती है और इस तरह से अलग-अलग भागों को उनके अन्योन्यसंबंध को ध्यान में रखते हुए समझने तथा स्मरण करने की संभावना देती है।
किंतु जटिलता की दृष्टि से विभिन्न भागों में अंतर हो सकता है। यह पाया गया है कि यदि सामग्री बहुत अधिक है, तो आरंभिक और अंतिम भागों की तुलना में बीच के भाग को याद कर पाना सामान्यतः ज़्यादा कठिन होता है। ऐसे मामलों में सर्वाधिक कारगर संयुक्त प्रणाली सिद्ध होती है, जिसमें पहले सामग्री को उसकी समग्रता में समझा और साथ ही अलग-अलग भागों में बांटा जाता है, फिर इन भागों, विशेषतः सबसे कठिन भागों को एक-एक करके याद किया जाता है और अंत में सारी सामग्री को एक साथ दोहराया जाता है। स्मरण की यह प्रणाली स्मृतिक क्रिया की संरचना के अधिकतम अनुरूप है, जिसमें निम्न संक्रियाएं शामिल है : सामग्री के स्वरूप की सामान्य समझ, अलग-अलग समूहों का निर्धारण और पहले अंतरासमूह और फिर अंतर्समूह संबंधों की स्थापना।
सामग्री को पुनर्प्रस्तुत करने की योग्यता उसके अनिवार्यतः लंबे समय तक याद रहने की परिचायक नहीं होती। अतः शिक्षक को हमेशा सामग्री की कई-कई बार आवृति ( repetition ) करवानी चाहिए, ताकि वह छात्र को अच्छी तरह याद हो जाए। किंतु यह भी याद रखा जाना चाहिए कि दोहराना तभी फलप्रद हो सकता है, जब वह सोद्देश्य, सार्थक और सक्रिय हो। अन्यथा वह रटकर याद कर लेने की ओर ले जाएगा। इसलिए पुनरावृत्ति की सर्वोत्तम प्रणाली यह है कि आत्मसात्कृत सामग्री को छात्र की सक्रियता में शामिल कर दिया जाए।
प्रयोगात्मक शिक्षण के अनुभवों ने दिखाया है कि यदि पाठ्यक्रम-सामग्री को कार्यभारों की एक सुविचारित पद्धति में व्यवस्थित कर दिया जाए, जिसमें हर चरण पूर्ववर्ती चरण पर आधारित होता है, तो सारी महत्त्वपूर्ण सामग्री अपने को छात्र की सक्रियता में अनिवार्यतः दोहराएगी, जिसमें छात्र का उससे हर स्तर पर और अलग-अलग संदर्भों में बार-बार सामना होगा। ऐसी परिस्थितियों में छात्र आवश्यक जानकारी को याद किये बिना भी, यानि अनैच्छिक रूप से आत्मसात् कर लेते हैं। नयी जानकारी में विलयित ( merged ) होकर पहले का आत्मसात्कृत ज्ञान न केवल दोहराया और अद्यतन ( updated ) बनाया जाता है, बल्कि एक नये परिप्रेक्ष्य ( perspective ) में रखे जाकर तथा एक और आयाम ( dimension ) ग्रहण करके गुणात्मकतः ( qualitatively ) बदल जाता है।
ज्ञान के आत्मसात्करण में ऐच्छिक और अनैच्छिक स्मरण
शिक्षण में ऐच्छिक ही नहीं, अनैच्छिक स्मरण पर भी जोर दिया जाना चाहिए। तुलनात्मक अध्ययनों से छात्रों द्वारा नये ज्ञान के आत्मसात्करण में उनका स्थान व भूमिका प्रकट हुए हैं और वे परिस्थितियां मालूम की गयी हैं, जिनमें वे सबसे अधिक कारगर सिद्ध होते हैं।
किंतु जटिलता की दृष्टि से विभिन्न भागों में अंतर हो सकता है। यह पाया गया है कि यदि सामग्री बहुत अधिक है, तो आरंभिक और अंतिम भागों की तुलना में बीच के भाग को याद कर पाना सामान्यतः ज़्यादा कठिन होता है। ऐसे मामलों में सर्वाधिक कारगर संयुक्त प्रणाली सिद्ध होती है, जिसमें पहले सामग्री को उसकी समग्रता में समझा और साथ ही अलग-अलग भागों में बांटा जाता है, फिर इन भागों, विशेषतः सबसे कठिन भागों को एक-एक करके याद किया जाता है और अंत में सारी सामग्री को एक साथ दोहराया जाता है। स्मरण की यह प्रणाली स्मृतिक क्रिया की संरचना के अधिकतम अनुरूप है, जिसमें निम्न संक्रियाएं शामिल है : सामग्री के स्वरूप की सामान्य समझ, अलग-अलग समूहों का निर्धारण और पहले अंतरासमूह और फिर अंतर्समूह संबंधों की स्थापना।
सामग्री को पुनर्प्रस्तुत करने की योग्यता उसके अनिवार्यतः लंबे समय तक याद रहने की परिचायक नहीं होती। अतः शिक्षक को हमेशा सामग्री की कई-कई बार आवृति ( repetition ) करवानी चाहिए, ताकि वह छात्र को अच्छी तरह याद हो जाए। किंतु यह भी याद रखा जाना चाहिए कि दोहराना तभी फलप्रद हो सकता है, जब वह सोद्देश्य, सार्थक और सक्रिय हो। अन्यथा वह रटकर याद कर लेने की ओर ले जाएगा। इसलिए पुनरावृत्ति की सर्वोत्तम प्रणाली यह है कि आत्मसात्कृत सामग्री को छात्र की सक्रियता में शामिल कर दिया जाए।
प्रयोगात्मक शिक्षण के अनुभवों ने दिखाया है कि यदि पाठ्यक्रम-सामग्री को कार्यभारों की एक सुविचारित पद्धति में व्यवस्थित कर दिया जाए, जिसमें हर चरण पूर्ववर्ती चरण पर आधारित होता है, तो सारी महत्त्वपूर्ण सामग्री अपने को छात्र की सक्रियता में अनिवार्यतः दोहराएगी, जिसमें छात्र का उससे हर स्तर पर और अलग-अलग संदर्भों में बार-बार सामना होगा। ऐसी परिस्थितियों में छात्र आवश्यक जानकारी को याद किये बिना भी, यानि अनैच्छिक रूप से आत्मसात् कर लेते हैं। नयी जानकारी में विलयित ( merged ) होकर पहले का आत्मसात्कृत ज्ञान न केवल दोहराया और अद्यतन ( updated ) बनाया जाता है, बल्कि एक नये परिप्रेक्ष्य ( perspective ) में रखे जाकर तथा एक और आयाम ( dimension ) ग्रहण करके गुणात्मकतः ( qualitatively ) बदल जाता है।
ज्ञान के आत्मसात्करण में ऐच्छिक और अनैच्छिक स्मरण
शिक्षण में ऐच्छिक ही नहीं, अनैच्छिक स्मरण पर भी जोर दिया जाना चाहिए। तुलनात्मक अध्ययनों से छात्रों द्वारा नये ज्ञान के आत्मसात्करण में उनका स्थान व भूमिका प्रकट हुए हैं और वे परिस्थितियां मालूम की गयी हैं, जिनमें वे सबसे अधिक कारगर सिद्ध होते हैं।
वस्तुओं के वर्गीकरण की प्रक्रिया में, यानि सक्रिय मानसिक क्रिया के दौरान उन वस्तुओं के अनैच्छिक स्मरण ने, सामग्री के केवल प्रत्यक्ष पर आधारित ऐच्छिक स्मरण की तुलना में बेहतर परिणाम दिये। इसी प्रकार जब विद्यार्थी एक अपेक्षाकृत कठिन टेक्स्ट की योजना बना रहे थे, ताकि उसकी अंतर्वस्तु को समझ लिया जाए, तो उन्होंने केवल साधारण पठन पर आधारित ऐच्छिक स्मरण की तुलना में बेहतर परिणाम दिखाए। अतः जब अनैच्छिक स्मरण सामग्री के संसाधन की सार्थक तथा सक्रिय प्रणाली पर आधारित होता है, तो वह ऐच्छिक स्मरण की तुलना में ज़्यादा कारगर और उत्पादक पाया जाता है, यदि यह ऐच्छिक स्मरण भी ऐसी ही प्रणालियों पर आधारित न रहा हो।
जब एक ही जैसी सामग्री-संसाधन प्रणालियां प्रयोग में लाई जाती हैं ( जैसे, उदाहरण के लिए, सामग्री का वर्गीकरण ) तब आरंभ में अनैच्छिक स्मरण ( आरंभिक स्कूली अवस्था में ) अधिक उत्पादक होता है, किंतु बाद में शनैः शनैः अपनी उत्कृष्टता खो देता है और वयस्कों के मामले में तो ऐच्छिक स्मरण ही अधिक फलदायी होता है। अनैच्छिक और ऐच्छिक स्मरण की प्रभाविता में इन परिवर्तनों का कारण, संज्ञानात्मक और स्मृतिक क्रियाओं के बीच उनके निर्माण की प्रक्रिया में बननेवाले जटिल संबंध होते हैं। स्मृतिक क्रिया, संज्ञानात्मक क्रिया के आधार पर बनकर उसके पीछे रहती है। वर्गीकरण एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के तौर पर जब विकास के पर्याप्त ऊंचे स्तर पर पहुंचता है, तो स्मरण में सहायक बन सकता है। वास्तव में सामग्री का वर्गीकरण करना सीखने के बाद ही मनुष्य इस मानसिक क्रिया को स्वैच्छिक स्मरण की एक प्रणाली के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
अनैच्छिक स्मरण अधिकतम फलदायी तब होता है, जब छात्र कोई संज्ञानात्मक ( cognitive ) कार्य संपन्न करते हैं, यानि जब सामग्री के विशद ह्रदयंगमन की आवश्यकता होती है। इसका कारण यह है कि ह्रदयंगमन की प्रक्रिया और स्मरणात्मक कार्यभार ( assignment ) को साथ-साथ संपन्न करना कठिन या सर्वथा असंभव है। इसके विपरीत ऐच्छिक स्मरण सर्वाधिक परिणामदायी तब होता है, जब सामग्री के ह्रदयंगमन की तुलना में पूरी तरह स्मरणात्मक कार्यभार की पूर्ती को प्राथमिकता दी जाती है। अतः नयी सामग्री का अध्ययन करते समय अनैच्छिक स्मरण पर ज़ोर देना चाहिए और स्मरणात्मक कार्यभार को उसके स्थायीकरण के चरण में ही निर्धारित कर देना चाहिए। इस प्रकार छात्रों की स्मृति-प्रक्रियाओं पर शिक्षक के नियंत्रण की कारगरता काफ़ी हद तक संज्ञानात्मक और स्मरणात्मक कार्यभारों के निर्धारण ( determination ) तथा विभेदन ( discrimination ) पर निर्भर होता है।
जब एक ही जैसी सामग्री-संसाधन प्रणालियां प्रयोग में लाई जाती हैं ( जैसे, उदाहरण के लिए, सामग्री का वर्गीकरण ) तब आरंभ में अनैच्छिक स्मरण ( आरंभिक स्कूली अवस्था में ) अधिक उत्पादक होता है, किंतु बाद में शनैः शनैः अपनी उत्कृष्टता खो देता है और वयस्कों के मामले में तो ऐच्छिक स्मरण ही अधिक फलदायी होता है। अनैच्छिक और ऐच्छिक स्मरण की प्रभाविता में इन परिवर्तनों का कारण, संज्ञानात्मक और स्मृतिक क्रियाओं के बीच उनके निर्माण की प्रक्रिया में बननेवाले जटिल संबंध होते हैं। स्मृतिक क्रिया, संज्ञानात्मक क्रिया के आधार पर बनकर उसके पीछे रहती है। वर्गीकरण एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के तौर पर जब विकास के पर्याप्त ऊंचे स्तर पर पहुंचता है, तो स्मरण में सहायक बन सकता है। वास्तव में सामग्री का वर्गीकरण करना सीखने के बाद ही मनुष्य इस मानसिक क्रिया को स्वैच्छिक स्मरण की एक प्रणाली के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
अनैच्छिक स्मरण अधिकतम फलदायी तब होता है, जब छात्र कोई संज्ञानात्मक ( cognitive ) कार्य संपन्न करते हैं, यानि जब सामग्री के विशद ह्रदयंगमन की आवश्यकता होती है। इसका कारण यह है कि ह्रदयंगमन की प्रक्रिया और स्मरणात्मक कार्यभार ( assignment ) को साथ-साथ संपन्न करना कठिन या सर्वथा असंभव है। इसके विपरीत ऐच्छिक स्मरण सर्वाधिक परिणामदायी तब होता है, जब सामग्री के ह्रदयंगमन की तुलना में पूरी तरह स्मरणात्मक कार्यभार की पूर्ती को प्राथमिकता दी जाती है। अतः नयी सामग्री का अध्ययन करते समय अनैच्छिक स्मरण पर ज़ोर देना चाहिए और स्मरणात्मक कार्यभार को उसके स्थायीकरण के चरण में ही निर्धारित कर देना चाहिए। इस प्रकार छात्रों की स्मृति-प्रक्रियाओं पर शिक्षक के नियंत्रण की कारगरता काफ़ी हद तक संज्ञानात्मक और स्मरणात्मक कार्यभारों के निर्धारण ( determination ) तथा विभेदन ( discrimination ) पर निर्भर होता है।
इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय
4 टिप्पणियां:
अब तक की सब से उपयोगी कड़ी है। विशेषतः विद्यार्थियों के लिए।
ऐच्छिक और अनैच्छिक स्मरण के संबंध में अच्छी जानकारी ।
आपका आभार।
बहुत बढिया!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यह सामग्री विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है यदि वो इसे गंभीरतापूर्वक आत्मसात़ करें। आपका धन्यवाद
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