रविवार, 23 जून 2013

मशीन और तकनीकी विकास की समस्या

हे मानवश्रेष्ठों,

काफ़ी समय पहले एक युवा मित्र मानवश्रेष्ठ से संवाद स्थापित हुआ था जो अभी भी बदस्तूर बना हुआ है। उनके साथ कई सारे विषयों पर लंबे संवाद हुए। अब यहां कुछ समय तक, उन्हीं के साथ हुए संवादों के कुछ अंश प्रस्तुत किए जा रहे है।

आप भी इन अंशों से कुछ गंभीर इशारे पा सकते हैं, अपनी सोच, अपने दिमाग़ के गहरे अनुकूलन में हलचल पैदा कर सकते हैं और अपनी समझ में कुछ जोड़-घटा सकते हैं। संवाद को बढ़ाने की प्रेरणा पा सकते हैं और एक दूसरे के जरिए, सीखने की प्रक्रिया से गुजर सकते हैं।



मशीन और तकनीकी विकास की समस्या
कहीं पढ़ कर लगा कि मार्क्स की धारा यंत्र को, मशीन को अधिक महत्त्व देती है। और यह विकास क्रम में गलत भी नहीं है। लेकिन इसका असर प्राकृतिक संसाधनों पर और मानव पर तो नकारात्मक पड़ता रहा है, पड़ रहा है। अब या तो विज्ञान और मानव जितनी समस्याएं पैदा कर रहे हैं, उतनी रफ़्तार से समाधान नहीं हो रहा है।


एक कथन और साथ ही उसका प्रतिकथन भी। मार्क्स मशीन को अधिक ही महत्त्व देता है, और ग़लत भी नहीं है। विज्ञान का प्रभाव नकारात्मक है, और यदि उसकी समस्याओं का रफ़्तार से समाधान हो जाए तो शायद ठीक रहे। आपका अध्ययन चल रहा ही होगा। कई चीज़ें स्वतः ही साफ़ होती जाएंगी। समय तो लगना ही है, पढ़ने में भी और बहुत सा समझने और सोच का हिस्सा बनाने में।

मशीन पहले आती है, उसके ज़रिए संगठित उत्पादन पहले शुरू होता है, पूंजीपति आते हैं, कारखाने आते हैं, मज़दूर आते हैं, फिर समस्याएं आती हैं, इनके समाधान के लिए सोच-विचार शुरू होता है, तब कहीं जाकर परिदृश्य में मार्क्स आते हैं। मशीन पैदा ही मनुष्य ने अपनी सहूलियत के लिए की, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि औजार पैदा हुए, हथियार हुए। यह सही तरीके से इस्तेमाल की जाए तो समाज के लिए अपने मूल से ही अत्यंत उपयोगी है। 

मशीन मुनाफ़ाखोर व्यवस्था में समस्या बन कर उभरती है। इसके पास उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता को अकल्पनीय रूप से बढ़ाने का अवसर होता है। परंतु जब इसे पूंजीपति समाज के हितार्थ नहीं, वरन अपने मुनाफ़ों के लिए इस्तेमाल करता है तो वह इसे समाज के बड़े हिस्से के लिए विनाश का पर्याय बना देता है। पर्यावरण पर यदि विपरीत असर पड़ रहा है, तो एक समाजोन्मुखी शक्ति इसका प्रचलन बंद कर सकती है, परंतु यदि एक मुनाफ़ाखोर के पास इसकी सुविधा हो, तो वह अपने व्यक्तिगत नुकसान को बचाने के लिए, अपना मुनाफ़ा जारी रखने के लिए इसके उपयोग को जारी रखने के लिए कोई ना कोई तिकड़म लगाता रहेगा।

मशीनों और तकनीक का तेज़ विकास, जैसा कि इस वर्तमान व्यवस्था के अन्तर्गत परिणामित हो रहा है, प्रकृति और पर्यावरण के विनाश के लिए लक्षित नहीं है, यह उत्पादन को बढ़ाने और समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए होता है। मशीने और तकनीक जितनी उन्नत होती जाएंगी, मनुष्य की बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने में मानवजाति को अधिक सक्षम करती जाएंगी। बात इस प्रक्रिया के समाजोन्मुखी नियोजन की है जो इसी ओर लक्षित हो यानि जरूरतों को पूरा करने के लिए परंतु पर्यावरण की कीमत पर कतई नहीं।

आग खतरनाक थी, पहिया जोखिम भरा था, चाकू मार सकता था, आदि-आदि। पर इन्हें मनुष्य ने तैयार किया था और अपने फायदे के लिए उपयोग किया। इनका दुरुपयोग भी हो सकता था और हुआ पर मानवजाति ने अपने अस्तित्व के लिए, जोखिमों के बावज़ूद इन सबको साधा। बात साधने की है, संसाधनों के समाजोन्मुखी नियोजन की है।

यानि बात यूं कही जा सकती है कि वर्तमान मुनाफ़ा आधारित व्यवस्था, मशीनों और तकनीक का, प्राकृतिक संसाधनों का अपने फायदे के लिए, पर्यावरण के नुकसान, समाज के नुकसान की परवाह किए बिना, जमकर दोहन कर रही है और संपूर्ण मानवजाति के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है। मार्क्स जैसे लोगों ने इसको समझा और इसे और पूरी प्रणाली को समझने और समझाने की कोशिश की और समाज के ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया को सामने रखते हुए इस व्यवस्था के अवश्यंभावी समाजोन्मुखी विकल्प पेश किए।




इस बार इतना ही।
आलोचनात्मक संवादों और नई जिज्ञासाओं का स्वागत है ही।
शुक्रिया।

समय

3 टिप्पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

Bahut hee umda post hamesha ki tarah

Shikha Kaushik ने कहा…

sarthak bateon ki or sanket karti hain baten .aabhar

धर्म की राजनीति चमकाने का वक्त नहीं है ये !

हर बात को धर्म से क्यों जोड़ देते हैं ZEAL जैसे लोग?

बेनामी ने कहा…

बधाई...nice one

http://ektakidiary.blogspot.com

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