हे मानवश्रेष्ठों,
वैज्ञानिक संज्ञान में मॉडल और मॉडल निर्माण
( models and modelling in scientific cognition )
इस बार इतना ही।
समय अविराम
यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञान के द्वंद्वात्मक सिद्धांत के अंतर्गत संज्ञान की तार्किक और ऐतिहासिक विधियों पर चर्चा की थी, इस बार हम वैज्ञानिक संज्ञान में मॉडल और मॉडल निर्माण को समझने की कोशिश करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
वैज्ञानिक संज्ञान में मॉडल और मॉडल निर्माण
( models and modelling in scientific cognition )
आधुनिक विज्ञान में प्रयुक्त एक सबसे सामान्य विधि मॉडल निर्माण (
modelling ) है। मॉडल तथा मॉडल निर्माण क्या है? शब्द "मॉडल" का मतलब है
एक नमूना, प्रतिरूप या रूपांकन अथवा एक त्रिआयामीय चित्रण, किंतु यह स्वयं
अपने आप में कोई स्पष्टीकरण नहीं है, क्योंकि विज्ञान में संकल्पना "मॉडल" ने एक विशेष आशय ग्रहण कर लिया है।
वस्तुएं
अक्सर छानबीन के लिए समुपयुक्त नहीं होतीं। वे बहुत बड़ी या बहुत क़ीमती हो
सकती हैं, बहुत जटिल या अनुपलब्ध हो सकती हैं। इस स्थिति में एक ऐसी वस्तु
बनायी या खोजी जाती है जो कुछ सारभूत मामलों में दिलचस्पी की वस्तु या
प्रक्रिया के समान हों, यानी स्थानापन्न ( substitute ) हों। यदि इस वस्तु का अध्ययन हो सकता हो और प्राप्त परिणामों को समुचित त्रुटि सुधारों तथा समंजनों ( adjustments ) के साथ अध्ययनाधीन वस्तु के संज्ञान के लिए प्रयुक्त या लागू किया जा सकता हो, तो इसे मॉडल कहा जायेगा। एक मॉडल की रचना या चयन, उसका अध्ययन तथा प्राप्त परिणामों को मुख्य वस्तु के संज्ञान के लिए इस्तेमाल करने को मॉडल निर्माण कहते हैं।
मानवसम
वानर ( anthropoid apes ) कुछ मामलों में मनुष्य के समान होते हैं।
वैज्ञानिकों ने बहुत पहले यह खोज की कि मेकाक बंदर की रीसस ( rhesus )
प्रजाति का रुधिर मनुष्य के रुधिर के समान होता है। इस रुधिर का अध्ययन
करके उन्होंने विशेष अनुगुणों की खोज की जो रीसस-फ़ैक्टर कहलाता है। रुधिर
की समानता को आधार बनाकर उन्होंने प्राप्त परिणामों को मानव रुधिर पर लागू
किया और पता लगाया कि उसमें भी वैसे ही अनुगुण होते हैं। इस मामले में
बंदर का रुधिर, मानव रुधिर का मॉडल था।
इंजीनियरी में मौलिक वस्तु
या प्राक्-रूप ( prototype ) को बनाने से पहले अक्सर मॉडल का निर्माण तथा
अध्ययन किया जाता है, ताकि बाद में किये जानेवाले निर्माण में कई ग़लतियों
और कठिनाइयों से बचा जा सके। एक विशाल बिजलीघर के निर्माण से पहले उसका एक
समानुपातिक तकनीकी मॉडल बनाया जाता है और उसे लेकर कई प्रयोग किये जाते
हैं। इससे प्राप्त जानकारी को वास्तविक बिजलीघर बनाते समय ध्यान में रखा
जाता है।
इन उदाहरणों में मॉडल की भूमिका नितांत भौतिक वस्तुओं द्वारा अदा की गयी है। किंतु आधुनिक विज्ञान में तथाकथित वैचारिक, प्रत्ययिक मॉडलों
( ideal models ) का व्यापक उपयोग होने लगा है। उनमें, मसलन, तथाकथित
मानसिक प्रयोग शामिल हैं। एक अतिजटिल, खर्चीला प्रयोग शुरू करने से पहले
एक वैज्ञानिक अपनी कल्पना में अपेक्षित औज़ारों के एक पूरे सेट की रचना
करता है और उन्हें लेकर विभिन्न कार्यकलाप करता है और कभी-कभी सहायक
साधनों के रूप में नक़्शों, रेखाचित्रों तथा आरेखों का उपयोग भी करता है।
वह इन सारी कार्रवाइयों के बाद ही अपना असली प्रयोग करने का इरादा या तो
त्याग देता है ( यदि मानसिक प्रयोग असफल हुआ है ) अथवा उसके व्यावहारिक
कार्यान्वयन में जुट जाता है।
मॉडलों तथा मॉडल निर्माण की एक क़िस्म गणितीय मॉडल निर्माण
है। इसमें स्थानापन्न वस्तु के रूप में भौतिक वस्तुओं या प्रक्रियाओं को
लेने के बजाय गणितीय समीकरणों की एक प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इन
समीकरणों में प्रेक्षणों तथा प्रयोगों से प्राप्त विविध आंकिक
आधार-सामग्री को प्रतिस्थापित करके तथा उन समीकरणों को हल करके वैज्ञानिक
विभिन्न प्रक्रियाओं के परिमाणात्मक अभिलक्षणों ( quantitative
characteristics ) का सही-सही मूल्यांकन कर सकता है और उन कठिनाइयों का
पूर्वानुमान लगा सकता है, जो व्यवहार में पैदा हो सकती हैं। आधुनिक
विज्ञान के सारे क्षेत्रों में, विशेषतः इंजीनियरी तथा नियंत्रण ( control
) के सिद्धांत में गणितीय मॉडलों का व्यापक प्रयोग किया जाता है।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।समय अविराम
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