हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञान के द्वंद्वात्मक सिद्धांत के अंतर्गत आधुनिक विज्ञान में गणित के अनुप्रयोग पर चर्चा की थी, इस बार हम द्वंद्ववाद श्रॄंखला का समाहार प्रस्तुत करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
द्वंद्ववाद श्रॄंखला - समाहार
भौतिकवादी द्वंद्ववाद एक बड़ी सैद्धांतिक
उपलब्धि है। इसके ऐतिहासिक महत्व तथा मानव समाज के वर्तमान तथा भावी विकास
में इसके मूल्य को कम करके नहीं आंका जा सकता है। यह मानवीय क्रियाकलाप के
हर क्षेत्र - दर्शन व विशेष विज्ञान, भौतिक व आत्मिक उत्पादन की सारी
धाराओं - में निरपवाद रूप से परिव्याप्त है। द्वंद्ववाद के मूल सिद्धांत
अपने गहन विश्वदृष्टिकोण, उसूलों, नियमों व प्रवर्गों की अध्ययन पद्धति,
उनकी वैधता और विशुद्ध वैज्ञानिक प्रकृति के कारण, वैज्ञानिक संज्ञान के
लिए और इस पर आधारित व्यवहार के लिए वस्तुगत रूप से आवश्यक हो उठते हैं।
भौतिकवादी
द्वंद्ववाद प्रकृति, समाज तथा चिंतन के सर्वाधिक सामान्य नियमों का
विज्ञान है, जो सारे क्षेत्रों में विकास की वस्तुगत नियमानुवर्तिताओं कों
वैज्ञानिक ढंग से परावर्तित करता है। यह विज्ञान और व्यवहार को
विश्वदृष्टिकोण तथा अध्ययन-पद्धति से लैस करता है, उन्हें नूतन, प्रगतिशील
और विकास की ओर ले जाता है। वहीं दूसरी ओर, इतिहासपरकता के उसूलों का
सुसंगत उपयोग करके भौतिकवादी द्वंद्ववाद, मानवजाति की प्रगति के असीम
परिप्रेक्ष्य को दर्शाता है और जनगण की चेतना को प्रगतिशीलता एवं भविष्य
की ओर उन्मुख करता है।
भौतिकवादी द्वंद्ववाद अन्य सारी दार्शनिक
संकल्पनाओं से इस बात में भिन्न है है कि यह नियमों और प्रवर्गों की
विज्ञान द्वारा प्रमाणित और तार्किक रूप से अंतर्संबंधित प्रणाली है और
यही नहीं, यह वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक प्रगति के आधार पर बनी ऐसी प्रणाली
भी है, जो ऐतिहासिक विकास के साथ अपने को विकसित करती रहती है। प्रकृति,
समाज तथा चिंतन के विकास को सही-सही परावर्तित करवे वाली पद्धति के रूप
में भौतिकवादी द्वंद्ववाद निरंतर बदलता, विकसित होता तथा स्वयं को समृद्ध
बनाता रहता है और नयी संकल्पनाओं के समावेश तथा पुरानी संकल्पनाओं के
सत्यापन से अपने प्रवर्गीय उपकरण को अधिक पूर्ण बनाता है।
यह स्वयं
को क्रमविकास के एक सिद्धांत के और साथ ही संज्ञान के सिद्धांत और
सैद्धांतिक चिंतन के तर्क के रूप में उद्घाटित करता है। विशेष विज्ञानों
के लिए यह, ज्ञान की इन शाखाओं में सामान्य सैद्धांतिक और दार्शनिक
समस्याओं को हल करने के लिए विश्वदृष्टिकोणात्मक तथा अध्ययन-पद्धतिपरक
आधार का काम देता है, और उन्हें प्रेक्षण, प्रयोग तथा प्रतिरूपण के
वैज्ञानिक उपकरणों से लैस करता है। भौतिकवादी द्वंद्ववाद की इन पद्धतियों
के सचेत उपयोग से प्राकृतिक व सामाजिक, दोनों क्षेत्रों के विशेष
विज्ञानों की प्रगति में तेज़ी आ जाती है।
भौतिकवादी द्वंद्ववाद
मनुष्यों के क्रांतिकारी व्यवहार और रूपांतरणकारी कार्यकलाप में विशेष
महत्वपूर्ण है। किसी व्यावहारिक समस्या के समाधान के तरीक़ों व उपायों को
निरूपित करने में इसका सचेत और कुशलतापूर्वक उपयोग सफलता की पूर्वशर्त है,
जबकि इसके बगैर संज्ञान तथा व्यवहार, दोनों में ही गंभीर ग़लतियों और भारी
भ्रांतियों का होना अनिवार्य है।
भौतिकवादी द्वंद्ववाद आधुनिक
विज्ञान व संस्कृति की शैली तथा प्रकृति से पूर्णतः मेल खाता है। यह
विज्ञान और व्यवहार में वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रेरित करता है, ऐसे
विचारों के चयन व प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करता है, जिससे लोगों के लिए
घटनाओं के सार को अधिकाधिक गहराई से समझना संभव हो जाता है। यही नहीं, वह
इस काम को शुद्ध वैज्ञानिक पद्धतियों से निष्पन्न करता है, वह विज्ञान में
मुख्य रूप से उन वस्तुगत प्रक्रियाओं को खोजता है, जो अनुसंधान करनेवालों
को द्वंद्वात्मक ढंग से सोचने के लिए विवश करती हैं।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।समय अविराम
3 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दिमागी हालत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
रचना उत्तम है ।Seetamni. blogspot. in
अति सुन्दर ।Seetamni. blogspot. in
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