हे मानवश्रेष्ठों,
वैज्ञानिक पद्धतियों का वर्गीकरण
( classification of scientific methods )
इस बार इतना ही।
समय अविराम
यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञान के द्वंद्वात्मक सिद्धांत के अंतर्गत वैज्ञानिक संज्ञान की पद्धतियों पर चर्चा शुरू की थी, इस बार हम देखेंगे कि वैज्ञानिक पद्धतियों को समूहों में मुख्य रूप से किस तरह वर्गीकृत किया जा सकता है ।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
वैज्ञानिक पद्धतियों का वर्गीकरण
( classification of scientific methods )
विश्व
के सैद्धांतिक परावर्तन ( reflection ) की सार्विकता ( universality ) व
गहराई की कोटि ( degree ) तथा अध्ययनाधीन वस्तुओं और उनके आंतरिक संयोजनों
व संबंधों की विशिष्टताओं के अनुसार, संज्ञान के विषय ( object ) के प्रति
अनुसंधानकर्ता के रुख़ ( attitude ) और उसकी मानसिक संक्रियाओं के अनुक्रम
व संगठन के अनुसार, संज्ञान की पद्धतियों को तीन मुख्य समूहों में बांटा जा सकता है।
सबसे पहली है सार्विक पद्धति
( universal method )। अपनी अंतर्वस्तु ( content ) में सार्विक पद्धति
विचाराधीन वस्तुओं और घटनाओं के सबसे ज़्यादा सामान्य अनुगुणों (
properties ) के अनुरूप होती है और इसीलिए किन्हीं भी वैज्ञानिक पद्धतियों
के सर्वाधिक सामान्य लक्षणों को व्यक्त करती है। भौतिकवादी द्वंद्वात्मक
पद्धति, एक सार्विक पद्धति के रूप में संज्ञान के सर्वाधिक सामान्य नियमों
को निरूपित करती है, इसलिए वह एक विज्ञान के विकास का सामान्यीकृत
दार्शनिक सिद्धांत होती है, उसकी सामान्य अध्ययन-पद्धति होती है।
दूसरा समूह है सामान्य पद्धतियां
( general methods )। सामान्य वैज्ञानिक पद्धतियां, जो सारे या अधिकतर
विज्ञानों में प्रयुक्त होती हैं, एक बड़े समूह की रचना करती हैं। ये
व्यापक वैज्ञानिक उसूलों ( principles ), नियमों तथा सिद्धांतों (
theories ) पर आधारित हैं और वैज्ञानिक संज्ञान ( cognition ) के सामान्य
और मौलिक लक्षणों को, स्वयं विचाराधीन वस्तुओं के सामान्य तथा सारभूत
लक्षणों को व्यक्त करती हैं। संज्ञान की सामान्य वैज्ञानिक पद्धतियों में
शामिल हैं प्रेक्षण, नाप-जोख ( measurement ) और प्रयोग, रूपकीकरण (
formalisation ), अमूर्त से मूर्त की ओर आरोहण ( ascent ), वस्तुओं की
ऐतिहासिक व तार्किक पुनरुत्पत्ति ( reproduction ), विश्लेषण और संश्लेषण,
गणितीय, सांख्यिकीय तथा अन्य पद्धतियां। प्रारंभिक तार्किक संक्रियाओं (
operations )तथा कार्य-विधियों के आधार पर, मनुष्य के व्यवहारिक कार्यों
की तार्किकता के परावर्तन के ज़रिये बनी हुई ये पद्धतियां इस मामले में आम
वैज्ञानिक महत्व की हैं कि वे वस्तुगत सत्य के, भौतिक जगत के नियमों व
नियमानुवर्तिताओं के संज्ञानार्थ एक महत्वपूर्ण शर्त हैं।
संज्ञान
की सार्विक और सामान्य पद्धतियां वस्तुओं के गहन ( in-depth ) तथा
सर्वतोमुखी ( all-round ) परावर्तन के लिए अपर्याप्त हैं, क्योंकि किसी भी
वस्तु की अपनी ही विशिष्टताएं, गुण ( quality ), अनुगुण, आदि होते हैं।
किसी भी विशेष समस्या के समाधान के लिए समुचित ठोस तरीक़ों और पद्धतियों के
चयन की पूर्वापेक्षा की जाती है। यही कारण है कि अपने ऐतिहासिक विकास के
दौरान कोई भी विज्ञान, विशेष ( particular ) वैज्ञानिक पद्धतियों
की एक प्रणाली का निरूपण करता है। यही पद्धतियों का तीसरा समूह है। इनमें
शामिल हैं अनुसंधान की पद्धतियां, जिन्हें एक या कई संबंधित विज्ञानों में
इस्तेमाल किया जाता है, जैसे भौतिकी में वर्णक्रमीय विश्लेषण-पद्धति,
पुरातत्व विज्ञान में उत्खनन की पद्धतियां, खगोलशास्त्र में राडार की
पद्धतियां, आदि।
सामान्य और विशेष पद्धतियों के बीच निरपेक्ष भेद (
absolute distinction ) नहीं है। जब कोई विज्ञान तरक़्क़ी करता है और पहले
से अधिक नियमानुवर्तिताओं ( uniformities ) को खोज निकालता है, तो उसकी
विशेष पद्धतियां, सामान्य वैज्ञानिक पद्धतियों के रूप में विकसित हो जाती
हैं। यह प्रक्रिया विज्ञानों के विकास के दौरान उनके एकीकरण ( integration
) से और भी आगे बढ़ती है। मसलन, तकनीकी और प्राकृतिक विज्ञानों के विकास से
गणितीय पद्धतियों के उपयोग का क्षेत्र विस्तृत हो गया और अब वे सामान्य
वैज्ञानिक पद्धतियां बन गयी हैं।
वैज्ञानिक संज्ञान की सारी पद्धतियां घनिष्ठता से अंतर्संबंधित
हैं और उनका एक दूसरी से पृथक अस्तित्व नहीं है। स्वाभाविक है कि भौतिक
विश्व के अध्ययन की प्रक्रिया में उन्हें भी उनके एकत्व ( unity ) में
लागू किया जाता है। साथ ही, उस एकत्व के दायरे में इनमें से प्रत्येक
पद्धति को किंचित स्वधीनता भी है और वे अपने ही नियमों के अनुसार काम करती
हैं। परंतु कोई भी वैज्ञानिक सिद्धांत ऐसी सार्विक, सामान्य और विशिष्ट
प्रस्थापनाओं ( prepositions ) पर आधारित होता है, जो भौतिक जगत के
तदनुरूप अनुगुणों व नियमों को परावर्तित करती हैं। फलतः, किसी भी
वैज्ञानिक अनुसंधान का सार्विक दार्शनिक और विशेष उसूलों, नियमों तथा
प्रवर्गों ( categories ) से एकसाथ निर्देशित होना आवश्यक है, पर सार्विक
दार्शनिक पद्धति वैज्ञानिक संज्ञान की अन्य सारी पद्धतियों पर परिव्याप्त
( permeate ) होती है, उनकी प्रकृति का निर्धारण करती है और संज्ञान की
प्रक्रिया का निर्देशन करती है।
सार्विक पद्धति के रूप में भौतिकवादी द्वंद्ववाद
( materialistic dialectics ) संज्ञान की अन्य पद्धतियों के साथ बंधा है
और उनकी अंतर्वस्तु होता है। इसके साथ ही, द्वंद्वात्मक भौतिकवादी पद्धति
अन्य वैज्ञानिक पद्धतियों पर भरोसा करती है और प्राकृतिक व सामाजिक
विज्ञानों की उपलब्धियों तथा पद्धतियों से समृद्ध बनती है। अगली बार से हम
वैज्ञानिक संज्ञान की सबसे ज़्यादा प्रचलित कुछ सामान्य पद्धतियों/विधियों
पर एक नज़र डालेंगे।
इस बार इतना ही।
जाहिर
है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई
द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।समय अविराम
1 टिप्पणियां:
सुंदर आलेख.
एक टिप्पणी भेजें
अगर दिमाग़ में कुछ हलचल हुई हो और बताना चाहें, या संवाद करना चाहें, या फिर अपना ज्ञान बाँटना चाहे, या यूं ही लानते भेजना चाहें। मन में ना रखें। यहां अभिव्यक्त करें।